सड़कों पर धूल बैठाने के लिए इस्तेमाल होगा ‘डस्ट सप्रेसेंट’…

द ब्लाट न्यूज़ । राजधानी की सड़कों पर उड़ने वाली धूल को बैठाने के लिए डस्ट सप्रेसेंट (विशेष रासायनिक घोल) का इस्तेमाल किया जाएगा। इसके छिड़काव से धूल को ज्यादा देर के लिए सतह पर बैठाया जा सकेगा। केन्द्रीय वायु गुणवत्ता आयोग के मुताबिक, इस संबंध में भारतीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) की ओर से विस्तृत अध्ययन किया जा रहा है।

यूं तो दिल्ली के प्रदूषण में सबसे ज्यादा हिस्सेदारी वाहनों से निकलने वाले धुएं की मानी जाती है। लेकिन, सड़कों पर उड़ने वाली धूल भी एक बड़ी वजह है। इसीलिए धूल उड़ने की रोकथाम के विशेष प्रयास किए जा रहे हैं। केन्द्रीय वायु गुणवत्ता आयोग के मुताबिक, अध्ययन के जरिए इस बात का पता लगाया जा रहा है कि डस्ट सप्रेसेंट धूल को उड़ने से रोकने के लिए किस हद तक कारगर है। प्राधिकरण की ओर से मई तक अध्ययन की रिपोर्ट जमा की जाएगी। जिसके बाद ही इसके बड़े पैमाने पर इस्तेमाल के बारे में फैसला लिया जाएगा।

क्या होता है डस्ट सप्रेसेंट : धूल को उड़ने से रोकने के लिए आमतौर पर पानी का छिड़काव किया जाता है। डस्ट सप्रेसेंट एक खास किस्म का घोल होता है, जिसे पानी में मिला दिया जाता है। इसके चलते धूल के कण ज्यादा भारी हो जाते हैं और जमीन पर बैठ जाते हैं। पानी के छिड़काव की तुलना में डस्ट सप्रेसेंट के छिड़काव से धूल को ज्यादा देर तक बैठाया जा सकता है।

सड़कों के किनारे हरियाली या पक्का करने के निर्देश : सड़कों के किनारे और बीच की जगहों पर अक्सर धूल जमा होती रहती है। केन्द्रीय वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग ने सड़क के किनारे और बीच की जगहों को या तो पक्का करने या फिर उनमें हरियाली लगाने के निर्देश भी सड़क का स्वामित्व या रख-रखाव का जिम्मा उठाने वाली संस्थाओं को दिया है।

 

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