इंदौर:  कुशाभाऊ को इंदिरा की मेहनत भी नहीं हरा पाई  

इंदौर, :  भाजपा आज जिस मुकाम पर है उसे गढऩे में कई लोगों ने अपना खून-पसीना एक कर दिया। कुशाभाऊ ठाकरे भी उन खास लोगों में शुमार हैं जिन्होंने जनसंघ से भाजपा तक की मजबूती के लिए प्राण-प्रण से काम किया। पार्टी का इनके प्रति कृता भाव ही है कि वह इन्हें संगठन के पितृ पुरुष के रूप में पूजती है। आज का किस्सा ऐसी शख्सियत के नाम जिन्हें चुनाव हराने के लिए तब की सबसे ताकतवर नेता इंदिरा गांधी ने भी पूरा जोर लगा दिया था। कुशाभाऊ ठाकरे ने गांव-कस्बे और नगर-शहरों में घूम-घूमकर पार्टी के लिए युवा तैयार कर नया नेतृत्व गढ़ा जो आज सत्ता और संगठन की पहली कतार में शामिल है। 19 अगस्त 1922 को धार में जन्मे कुशाभाऊ ठाकरे की स्कूली शिक्षा धार में हुई। 1942 में वो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए। रतलाम, उज्जैन, मंदसौर, झाबुआ, चित्तूर, कोटा, बूंदी, झालावाड़, बांसवाड़ा, दाहोद जिले में संघकार्य को आगे बढ़ाया। मप्र बनने के बाद उन्हें संघ ने उज्जैन डिवीजन के संघ प्रचारक की जिम्मेदारी दी गई। इमरजेंसी के बाद कुशाभाऊ ठाकरे 1979 में खंडवा लोकसभा के उपचुनाव में उम्मीदवार बनाए गए। इस चुनाव को इंदिरा गांधी ने अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया और फिर उन्होंने ठाकरे को हराने के लिए अपना पूरा दम लगा दिया था। कांग्रेस प्रत्याशी शिवकुमार सिंह के पक्ष में प्रचार करने के लिए इंदिरा गांधी दिल्ली से मध्यप्रदेश पहुंच आई। वे दिल्ली से भोपाल पहुंची थीं, लेकिन वहां से खंडवा जाने के लिए जब हेलीकाप्टर नहीं मिला तो ट्रेन से होशंगाबाद पहुंची। इसके बाद उन्होंने खंडवा बुरहानपुर, मंधाता के गांवों का दौरा कर शिवकुमार सिंह को ताकत दी। हालांकि इंदिरा गांधी की सारी मेहनत बेकार गई और कुशाभाऊ ठाकरे को जनता ने अपना सांसद चुन लिया। वर्ष 1998 में कुशाभाऊ ठाकरे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। 28 दिसम्बर 2003 को उनका निधन हो गया।
अनिल पुरोहित

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