विशेष सत्र क्या चुनावी इवेंट?

हरिशंकर व्यास
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की भाजपा का अर्थ हैं इवेंट क्रिएट पार्टी? सूखे तालाब की भी भरेपूरे बांध की झांकी बना डालना। हर मौके, बड़ी घटना को इवेंट में बदल देने का नाम भाजपा। प्रधानमंत्री विदेश जाते हैं तो उसे इवेंट बनाया जाता है। एयरपोर्ट के बाहर प्रवासी भारतीयों से नारे लगवाए जाते हैं। प्रधानमंत्री विदेश से लौटते हैं तो हवाईअड्डे पर हजारों लोगों को लेकर जेपी नड्डा इवेंट क्रिएट करते हैं। चंद्रयान-दो पूरी तरह से सफल नहीं हुआ तब भी इसरो के वैज्ञानिकों के आंसू पोंछने का इवेंट हुआ तो चंद्रयान-तीन की सफलता पर खुशी के आंसू बहाने का इवेंट हुआ। तभी जी-20 की बैठक महा इवेंट है। इसलिए इसकी शान में लगता है कि 18 से 22 सितंबर का विशेष सत्र भी एक इवेंट होगा। इसके आगे भी एक के बाद एक इवेंट। ताकि लोकसभा चुनाव तक लगातार इवेंट्स को देख जनता गद्गद भाव सोचे कि नरेंद्र मोदी के अलावा दूसरा है कौन?
यह संभवत: पहली बार है कि संसद के विशेष सत्र को बुलाने की घोषणा हुई लेकिन एजेंडा नहीं बताया गया। पहले भी संसद के विशेष सत्र होते रहे हैं। भारत छोड़ो आंदोलन के 50 साल पूरे होने पर, संविधान के 70 साल होने पर या जीएसटी लागू करने पर विशेष सत्र बुलाया गया था। लेकिन तब सबको विशेष सत्र का एजेंडा पहले से पता था। इस बार संसदीय कार्य मंत्री ने सिर्फ इतना कहा है कि पांच दिन का विशेष सत्र होगा और अमृतकाल में सार्थक चर्चा की उम्मीद है। अमृतकाल में सार्थक चर्चा का क्या मतलब निकाला जाए? अभी 11 अगस्त को संसद का मानसून सत्र खत्म हुआ। पर उसमें तो कोई सार्थक चर्चा नहीं हुई! मणिपुर जैसे ज्वलंत मुद्दे पर प्रधानमंत्री का बयान कराने के लिए विपक्ष को अविश्वास प्रस्ताव लाना पड़ा था। मतलब मानसून सत्र की 17 बैठकों में जब सार्थक चर्चा नहीं हुई तो पांच बैठकों में क्या सार्थक करना है?
सार्थक चर्चा के नाम पर बुलाई गई विशेष बैठक को लेकर सबके अपने अपने अनुमान हैं। लेकिन सबसे सटीक अनुमान यही है कि सरकार को इवेंट क्रिएट करना है। प्रधानमंत्री ने लाल किले से 2047 तक विकसित भारत और उसके बाद एक हजार साल के भव्य भारत की घोषणा की हुई है। सो भव्य भारत पर चर्चा कराई जा सकती है। इसका एक मकसद घरेलू और वैश्विक उपलब्धियों का डंका बजाना है। जी-20 की सफलता और चंद्रयान-तीन की सफलता को लेकर प्रधानमंत्री की जय-जयकार करनी है। उनको विश्वगुरू, विश्वमित्र या विश्वपिता की उपाधि से सम्मानित करना है। चूंकि नवंबर में पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं इसलिए उससे पहले ऐसा इवेंट करना है, जिसकी गूंज इन पांचों राज्यों में सुनाई दे। ध्यान रहे नवंबर के अंत तक इन राज्यों के चुनाव चलेंगे इसलिए संभव है कि संसद का शीतकालीन सत्र देरी से हो। पिछले साल भी गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव की वजह से संसद का शीतकालीन सत्र सात दिसंबर को शुरू हुआ था। इस साल तो पांच राज्यों के चुनाव हो रहे हैं इसलिए शीतकालीन सत्र में देरी स्वाभाविक होगी। उससे पहले विशेष सत्र बुला कर उपलब्धियों का गौरवगान एक चुनावी रणनीति हो सकती है।
चूंकि सरकार ने एजेंडा नहीं बताया है इसलिए अटकले है। अगर अटकलों की बात करें तो कोई बड़ा विधायी काम हो सकता है। सरकार कोई ऐसा बिल ला सकती है, जो पांच  राज्यों के विधानसभा चुनाव और अगले साल के लोकसभा चुनाव के लिए मास्टरस्ट्रोक की तरह हो। मिसाल के तौर पर महिला आरक्षण विधेयक हो सकता है। पिछले कुछ समय से सारे फैसले महिलाओं को लेकर किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री ने इसरो में महिला शक्ति को नमन किया तो रक्षाबंधन के मौके पर बहनों को तोहफा देने के लिए रसोई गैस सिलिंडर पर दो सौ रुपए की कमी की गई। मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान लाड़ली बहन योजना चला रहे हैं तो पिछले दिनों कर्नाटक में कांग्रेस ने गृह लक्ष्मी योजना शुरू की। संसद का विशेष सत्र ऐसे समय में हो रहा है, जब देश के बड़े हिस्से में गौरी-गणेश की पूजा होती है। सो, महिला बिल एक दांव हो सकता है। कांग्रेस ने इस बिल को लोकसभा में पास कराया था। राज्यसभा में वह अटका। सरकार ने सदन में इसे पास कराया तो स्वभाविक को कांग्रेस को समर्थन करना होगा जबकि महिला आरक्षण विरोधी मंडलवादी याकि लालू, नीतिश, अखिलेश जैसी पार्टियां विरोध करेगी। जाहिर है सरकार को महिला आरक्षण से इंडिया एलायंस में फूट पडने का विश्वास होगा तो महिलाओं की अखिल भारतीय वाहवाही मोदी के खाते में। दूसरी अटकल देश की संसदीय प्रणाली को बदल कर अध्यक्षीय प्रणाली बनाए जाने का बिल लाने की हैं। लेकिन यह भी पुरानी अटकल है।
इसके अलावा आरक्षण या आरक्षण के भीतर आरक्षण का दांव भी चला जा सकता है। नरेंद्र मोदी सरकार ने जस्टिस रोहिणी आयोग का गठन किया था, जिसने छह साल के बाद अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। इस रिपोर्ट के आधार पर अत्यंत पिछड़ी जातियों के लिए अतिरिक्त आरक्षण की घोषणा हो सकती है। बिहार से शुरू हुई जातीय जनगणना और आरक्षण की राजनीति को पंक्चर करने के लिए यह दांव चला जा सकता है। समान नागरिक संहिता की चर्चा अचानक थम गई थी लेकिन जिस तरह से सरकार ने जम्मू कश्मीर या नागरिक संहिता का कानून लाकर पास कराया वैसे ही समान कानून का बिल आ सकता है। एक देश, एक चुनाव के बिल की अटकल भी है लेकिन वह व्यावहारिक कारणों से संभव नहीं है। विपक्षी पार्टियां सरकार भंग करने को राजी नहीं होंगी, उत्तर प्रदेश सहित कई राज्यों में पिछले ही साल सरकार बनी है, वहां भी विधानसभा भंग करके फिर चुनाव में जाने की संभावना नहीं है। चुनाव आयोग को भी इसके लिए बहुत समय और बहुत ज्यादा संसाधन की जरूरत पड़ेगी। अगर लोकसभा चुनाव टले, इंदिरा गांधी की तरह नरेंद्र मोदी भी लोकसभा का कार्यकाल छह साल का कर दें तभी यह संभव हो सकता है।
विशेष सत्र को समापन सत्र बनाने और समय से पहले लोकसभा का चुनाव कराने की संभावना कतई नहीं है। कहा जा रहा है कि प्रधानमंत्री के प्रति बहुत सकारात्मक माहौल है और रेटिंग हाई है इसलिए समय से पहले चुनाव कराया जा सकता है। लेकिन असल में हाई रेटिंग की वजह से ही प्रधानमंत्री और भाजपा विपक्ष से कोई खतरा नहीं मान रहे हैं इसलिए चुनाव समय से होंगे। पांच राज्यों के साथ लोकसभा का चुनाव कराने की अटकल दूर की कौड़ी है। एक संभावना यह जताई जा रही है कि गणेश उत्सव के समय संसद के नए भवन में प्रवेश का इवेंट  भी क्रिएट किया जा सकता है।

Check Also

लोकसभा चुनाव : अहसास वोटर की ताकत का

चुनाव आयोग की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी भी 33 फीसद वोटर घरों से निकलते …