न्यायालय ने अंतरिम संरक्षण आदेश के बावजूद गिरफ्तारी पर आश्चर्य जताया

 

द ब्लाट न्यूज़ । उच्चतम न्यायालय ने एक व्यक्ति को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण आदेश दिये जाने के बावजूद महाराष्ट्र में एक कथित जालसाजी के मामले में पुलिस द्वारा उसके खिलाफ गैर-जमानती वारंट (एनबीडब्ल्यू) हासिल करने और बाद में उसे न्यायिक हिरासत में भेजने की कार्रवाई को सोमवार को ‘आश्चर्यजनक’ और ‘हैरतअंगेज’ करार दिया।

न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी की अवकाशकालीन पीठ ने कहा कि शीर्ष अदालत ने पिछले साल सात मई को उस व्यक्ति की एक याचिका पर नोटिस जारी किया था और कहा था कि इस बीच, उसे महाराष्ट्र के लातूर में दर्ज प्राथमिकी के सिलसिले में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।

न्यायालय ने निर्देश दिया कि यदि याचिकाकर्ता की गिरफ्तारी किसी अन्य मामले में जरूरी नहीं है तो उसे आज ही रिहा किया जाए तथा इस आदेश पर अमल से संबंधित रिपोर्ट आज ही पेश की जाए।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘..यह जानना दिलचस्प है कि इस अदालत के विशिष्ट अंतरिम आदेश के बावजूद कि याचिकाकर्ता को संबंधित प्राथमिकी के सिलसिले में गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, ..अभियोजन ने याचिकाकर्ता के खिलाफ गैर-जमानती वारंट हासिल किया और जब वह अदालत के सामने पेश हुआ, तो प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट ने 24 जून, 2022 को अपने आदेश में कहा कि गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण इस अदालत के आदेश से छह सप्ताह के बाद समाप्त हो गया।’’

शीर्ष अदालत याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उसने अपनी गिरफ्तारी का उल्लेख किया था और रिहाई के आदेश की अपील की थी।

पीठ ने कहा कि ऐसा लगता है कि छह सप्ताह की अवधि शीर्ष अदालत द्वारा पिछले साल सात मई के अपने आदेश में जारी नोटिस का जवाब देने की तारीख से संभवत: ली गई है।

न्यायालय ने कहा, ‘‘यदि, 24 जून, 2022 के आदेश के संदर्भ में मजिस्ट्रेट ने जो समझा है और यदि वह याचिकाकर्ता को न्यायिक हिरासत में लेने का एकमात्र कारण है, तो अभियोजन एजेंसी की प्रामाणिकता और इस अदालत के आदेश पर अमल के बारे में मजिस्ट्रेट की समझ चिंता का विषय बन गयी है।’’

पीठ ने मामले की सुनवाई के लिए सात जुलाई की तारीख मुकर्रर करते हुए कहा, “हालांकि, वर्तमान में, हम इस मामले में कोई अन्य टिप्पणी नहीं कर रहे हैं और इस आवेदन पर जवाब दाखिल करने के लिए राज्य सरकार को कुछ समय प्रदान करते हैं।”

पीठ ने यह भी कहा कि उसके (आज के) आदेश की जानकारी मेल के जरिये मजिस्ट्रेट को दी जाए और उसकी प्रति तत्काल उचित निर्देश के लिए राज्य सरकार के वकील को उपलब्ध कराई जाए।

न्यायालय ने मौखिक रूप से कहा, ‘‘यह आश्चर्यजनक और चौंकाने वाली सीमा से भी परे है, हमें अपने मजिस्ट्रेट को भी शिक्षित करना होगा।’’ पीठ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वकील से कहा, “यह आपकी प्रामाणिकता पर भी सवाल उठाता है। आप गैर-जमानती वारंट कैसे प्राप्त कर सकते हैं?”

शीर्ष अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता की हिरासत सीधे तौर पर शीर्ष अदालत के आदेश का उल्लंघन और अवज्ञा है।

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