नाटो के अफगान मिशन का मकसद बदल गया था : अधिकारी

ब्रसेल्स । अफगानिस्तान में नाटो के सुरक्षा अभियान का मकसद भटक गया था क्योंकि सैन्य संगठन को गरीब तथा संघर्षग्रस्त देश के पुनर्निर्माण में मदद करने के काम में भी लगा दिया गया था। अफगानिस्तान में दो दशक लंबे मिशन से मिले सबक पर विचार कर रही समिति के प्रमुख ने बुधवार को यह टिप्पणी की।

अभियान के लिए सहायक महासचिव जॉन मांजा तथा नाटो के 30 उप राष्ट्रीय दूत अफगानिस्तान में लगभग दो दशकों के काम पर एक रिपोर्ट तैयार कर रहे हैं। अफगान राष्ट्रपति के देश से भाग जाने और नाटो-प्रशिक्षित अफगान सेना के हथियार डाल देने के बाद दल को यह काम सौंपा गया था। तालिबान ने बिना खास प्रतिरोध के देश की सत्ता पर कब्जा कर लिया था।

मांजा ने यूरोपीय संघ के सांसदों से कहा कि उनकी टीम द्वारा चर्चा किए जा रहे बड़े मुद्दों में मिशन के मकसद में भटकाव भी शामिल है। उन्होंने कहा कि इस अध्ययन में सैन्य और राजनीतिक विशेषज्ञों से भी जानकारी ली जा रही है।

उन्होंने कहा कि शुरुआत में नाटो के 5,000 सैनिक थे जो राजधानी काबुल और उसके आसपास तैनात थे। लेकिन तीन साल के भीतर इसका ध्यान देश के पुनर्निर्माण के साथ “आतंकवाद के मूल कारणों से निपटने” पर केंद्रित हो गया।

मांजा ने कहा कि 2009 में तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा के आदेश पर नाटो सैनिकों की संख्या बढ़कर 100,000 से अधिक हो गई, वहीं अफगानिस्तान को मिलने वाली अंतराष्ट्रीय सहायता में भारी वृद्धि हुई थी। अतिरिक्त सहायता राशि के कारण वहां पहले से ही व्याप्त भ्रष्टाचार को और बल मिला।

मांजा ने अपनी समिति के काम के शुरुआती निष्कर्ष पिछले हफ्ते नाटो के रक्षा मंत्रियों के साथ साझा किए। वह 30 नवंबर- एक दिसंबर को गठबंधन के विदेश मंत्रियों की बैठक में अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंपेंगे।

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