अजमेर। एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने अजमेर जिला प्रशासन और नगर निगम अफसरों की हठधर्मिता पर कड़ा प्रहार किया है। नियमों को ताक में रखकर वेटलैंड एरिया में बनाए गए सेवन वंडर पार्क को छह महीने के भीतर और लव कुश उद्यान में बने फूड कोर्ट को 7 अप्रैल 2025 तक ध्वस्त करने का आदेश दिया है।
बता दें कि पिछली कांग्रेस सरकार में अफसरों ने पॉलिटिकल आकाओं को खुश करने के लिए इसमें जनता की गाढ़ी कमाई के करोड़ों रुपए बर्बाद कर दिए थे। भाजपा के कुछ स्थानीय नेता जो चुनाव के समय इन्हें अपनी उपलब्धियां बताकर श्रेय लेने का प्रयास कर रहे थे, अब मुंह छिपाते फिर रहे हैं।
जस्टिस अभय एस. ओका की अध्यक्षता वाली पीठ ने स्पष्ट किया कि किसी भी आर्द्रभूमि (वेटलैंड) पर हुए अतिक्रमण को हटाना अनिवार्य है। राजस्थान सरकार की इस दलील कि अवैध निर्माण को गिराने से सरकारी खजाने को भारी नुकसान होगा, को अदालत ने सिरे से खारिज कर दिया। इस आदेश के बाद राजस्थान सरकार और अजमेर जिला प्रशासन में खलबली मची हुई है। क्योंकि कोटा् स्थित चंबल रिवर फ्रंट का मामला भी इसी के समान है। वहां भी वेटलैंड एरिया में निर्माण किया गया है। उस पर 1500 करोड़ रुपए से ज्यादा राशि खर्च हुई है।
सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश State of Rajasthan Vs Ashok Malik मामले में पारित किया है। जहां राजस्थान सरकार की ओर से भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और राजस्थान के अतिरिक्त महाधिवक्ता (AAG) शिव मंगल शर्मा ने पैरवी की, जबकि अशोक मलिक ने अपनी बात स्वयं अदालत के समक्ष प्रस्तुत की।
सुप्रीम कोर्ट ने आर्द्रभूमियों की सुरक्षा की अनिवार्यता पर जोर देते हुए कहा, “यदि राज्यों को आर्द्रभूमियों को नष्ट करने की अनुमति दी गई, तो हम खुद को आपदा की ओर धकेल रहे हैं। सरकार का उद्देश्य जहां भी आर्द्रभूमि हो, वहां उसके संरक्षण और पुनर्स्थापन का होना चाहिए। किसी भी कीमत पर आर्द्रभूमियों की रक्षा की जानी चाहिए।”
यह मामला राजस्थान सरकार द्वारा दायर की गई अपील पर सुनवाई से जुड़ा था, जिसमें नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें दिसंबर 2021 में अनासागर झील को वेटलैंड घोषित करते हुए इसके पुनर्स्थापन के निर्देश दिए गए थे। अगस्त 2023 में, NGT ने झील के बफर ज़ोन में मौजूद सभी अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। लेकिन, अजमेर जिला प्रशासन और नगर निगम के अधिकारियों ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ते हुए अवैध निर्माण तोड़ने से इंकार कर दिया था। बल्कि वेटलैंड का मामला उठाए जाने के कारण अशोक मलिक और उनके परिवार को नाजायज रूप से तंग किया गया।
बता दें कि साल 2010 में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने देशभर में वेटलैंड का आनासागर झील को वेटलैंड घोषित करने का वैज्ञानिक आधारः
सर्वेक्षण किया और प्रत्येक राज्य का वेटलैंड एटलस तैयार किया। यह सर्वेक्षण पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित किया गया था और अंतरराष्ट्रीय वेटलैंड संरक्षण संधियों के लिए डेटा प्रस्तुत किया गया था। इस एटलस में अनासागर झील को एक महत्वपूर्ण वेटलैंड के रूप में मान्यता दी गई थी, जिसके आधार पर NGT ने झील के भीतर अवैध निर्माणों को हटाने का आदेश दिया।
सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले का प्रभाव राजस्थान में अन्य वेटलैंड क्षेत्रों पर बने निर्माणों पर भी पड़ सकता है। एक ऐसा ही मामला कोटा रिवर फ्रंट परियोजना का है, जो चंबल नदी के वेटलैंड क्षेत्र में निर्मित किया गया है। चूंकि ये वेटलैंड भी ISRO की वेटलैंड इन्वेंट्री का हिस्सा हैं, इसलिए कोटा रिवरफ्रंट परियोजना की वैधता भी अब संदेह के घेरे में आ गई है।
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