कोलकाता । पश्चिम बंगाल में तीन दशक तक राज करने वाले वाम दल अब चुनावी राजनीति में अपनी जमानत भी नहीं बचा पा रहे हैं। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में वामपंथी पार्टियों ने कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने के बावजूद कुछ खास प्रदर्शन नहीं किया। हालांकि, माकपा-कांग्रेस गठबंधन ने भाजपा को जरूर नुकसान पहुंचाया। अब राज्य में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर वाम दलों ने पूरी तरह से संगठनात्मक पुनर्गठन की कवायद शुरू कर दी है। पश्चिम बंगाल में अपनी लगातार घटती राजनीतिक प्रासंगिकता और वोट बैंक के चलते, सीपीआई(एम) अपने संगठनात्मक ढांचे में बदलाव पर विचार कर रही है, जिसका मुख्य ध्यान जमीनी स्तर पर जनसंपर्क बढ़ाने पर होगा।
क्या है संगठनात्मक रणनीति?
पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने सोमवार को बताया कि राज्य भर में गठित विभिन्न कमेटियों की मौजूदा प्रणाली को समाप्त करने और स्थानीय और क्षेत्रीय समितियों की पुरानी प्रणाली में वापस जाने के प्रस्ताव पर चर्चा शुरू हो चुकी है। सीपीआई(एम) के एक राज्य समिति सदस्य ने कहा कि वर्तमान में शाखा समिति पार्टी की संगठनात्मक श्रृंखला में सबसे निचला स्तर है, और क्षेत्र समितियां शाखा समिति और जिला समिति के बीच की मध्यवर्ती स्तर पर काम करती हैं।
उन्होंने बताया कि वर्तमान क्षेत्र समिति प्रणाली को 2017 में स्थानीय और क्षेत्रीय समितियों को मिलाकर पेश किया गया था। उस समय यह तर्क दिया गया था कि कई संगठनात्मक पहलू होने की वजह से पार्टी कार्यकर्ताओं में लालफीताशाही की भावना पैदा हो रही थी और यह सुचारू कामकाज में बाधा डाल रही थी।
उन्होंने कहा, “हालांकि, अब यह महसूस किया जा रहा है कि नई प्रणाली जमीनी स्तर पर जनसंपर्क कार्यक्रमों को सुनिश्चित करने में प्रभावी नहीं है, जहां पार्टी कार्यकर्ता स्थानीय स्तर पर लोगों की दिन-प्रतिदिन की समस्याओं में शामिल होते हैं। इसलिए, पुरानी प्रणाली में वापस जाने पर चर्चा शुरू हो गई है।”
अगस्त में होगा फैसला
यह माना जा रहा है कि इस संगठनात्मक पुनर्गठन पर अंतिम निर्णय अगस्त के तीसरे सप्ताह में नदिया जिले के कल्याणी में पार्टी की विस्तारित राज्य समिति की बैठक में लिया जा सकता है, जब जिला समितियों की राय और बहुमत के आधार पर विचार किया जाएगा। राज्य समिति सदस्य ने कहा कि 2011 से हम लगातार संगठनात्मक कमजोरियों का मूल्यांकन कर रहे थे और आत्मनिरीक्षण के बाद महसूस हुआ कि समस्या जमीनी स्तर के जनसंपर्क में थी, जो कभी हमारे पार्टी का आधार हुआ करता था।