THE BLAT NEWS:
भोपाल। भाजपा के शासनकाल में सबका साथ सबका विकास के नारे को बुलंद करते हुए अधिकारियों ने एक नीति बना ली है जिसके चलते सरकारी योजनाओं की फर्जी आंकड़ों की रंगोली सजाकर मुख्यमंत्री ही नहीं बल्कि प्रधानमंत्री तक को गुमराह किया जा रहा है, इसी तरह से प्रदेश की केंद्र की हर घर में नल पहुंचाने की योजना का बढ़ा ढिंढोरा पीटा जा रहा है लेकिन हकीकत यह है कि अधिकारियों की फर्जी आंकड़ों की रंगोली सजाकर मुख्यमंत्री को खुश करने की नीयत से प्रदेश के 10855 गावों में से सिर्फ 489 गांवों में नल से जल पहुंचाने की कोई योजना नहीं बना पा रहे हैं यह अधिकारी और जिन गांवों में सरकारी आंकड़ों में नल से जल पहुंचाया जा रहा है, उनमें से आधे से अधिक गांवों में अब भी लोग बूंद-बूंद पानी को तरसने को मोहताज हैं? इन्हीं अधिकारियों की लापरवाही के चलते जिन आदिवासियों को मनाने और रिझाने में भाजपा दिन-रात एक कर रही है, उन्हीं आदिवासी बाहुल्य जिलों में आदिवासी जलसंकट से दोचार हो रहे हैं, यह स्थिति प्रदेश के डिंडौरी, मण्डला, अनूपपुर सहित तमाम आदिवासी बाहुल्य ग्रामों में बनी हुई है? यहां के आदिवासी जलसंकट से जूझ रहे हैं, बैतूल की स्थिति तो यह है कि यहां कमलनाथ सरकार में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी मंत्री जो अपने आपको सौभाग्यशाली होने का ढिंढोरा पीटते थे उन्होंने भी अपने जिलों के तमाम गांवों की समस्याओं का समाधान नहीं कर पाए थे? इस शिवराज सरकार में तो फर्जी आंकड़ों की रंगोली सजाकर मुख्यमंत्री को गुमराह कर सरकारी खजाने को चूना लगाने का दौर जमकर जारी है, स्थिति यह है कि आदिवासी बाहुल्य जिला झाबुआ व अलीराजपुर में तो जिले के आंगनबाड़ी और स्कूलों में नल-जल पहुंचने की योजना कागजों में तो तैयार हो गई लेकिन इन जिलों के गांवों में स्कूली बच्चों को पेयजल के संकट से जूझना पड़ रहा है? इस संबंध में जब प्रदेश के पीएचई विभाग के मुख्य सचिव संजय शुक्ला से की गई तो उनका कहना है कि हमारा काम तो योजना चालू करके विभाग को सौंपना है, फिर पानी आए या नहीं आए, इसकी जिम्मेदारी हमारी नहीं है? सवाल यह उठता है कि पीएचई विभाग के प्रमुख सचिव इस तरह के आदिवासी बाहुल्य जिलों में पेयजल की समस्या से जूझ रहे लोगों के सवाल पर इस तरह का जवाब देते हैं तो और अन्य जिलों की स्थिति क्या होगी? प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 24 अप्रैल को रीवा और सतना आ रहे हैं? उसी रीवा जिले को अभी से सूखाग्रस्त घोषित कर दिया गया है? यही स्थिति सतना जिले की भी है? सवाल यह उठता है कि अधिकारियों द्वारा फर्जी रंंगोली चलाने की नीति के चलते जब इन जिलों की यह स्थिति है और यहीं भाजपा की स्थिति भी खराब है? सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री की बहुप्रतीक्षित नल-जल योजना जिसके चलते उनके श्रीमुख से इलेक्ट्रानिक मीडिया पर रोज लोगों को जो विज्ञापन सुनने को मिल रहे हैं, जिसमें दावा किया जा रहा है कि नल-जल योजना से इस समस्या से करोड़ों लोगों को जल संकट से मुक्ति मिल चुकी है? लेकिन मध्यप्रदेश में आदिवायिों को रिझाने के लिये सरकार दिन-रात जुटी हुई है
आदिवासियों में असंतोष का काम पीएचई विभाग के अधिकारियों द्वारा किया जा रहा है जिसके चलते अधिकारियों की स्थिति यह है कि राजधानी सहित जिलों के अधिकारी कार्यालयों में उपस्थित नहीं रहते और पीडि़त लोग उनकी कुर्सी को नमन करके चले जाते हैं? न अधिकारी पीडि़त व्यक्ति का फोन उठाते हैं ओर न ही कार्यालय में मिलते हैं, कार्यालय में जाओ तो एक ही जवाब मिलता है कि वह फील्ड पर हैं, विभाग के कर्मचारियों द्वारा जिस गांव का भ्रमण करने की बात की जाती है उसमें वह अधिकारी नहीं मिलते? इस तरह से लोक निर्माण विभाग में चल रही अधिकारियों की लापरवाही के चलते एक-एक बूंद पाने के लिये तरस रहे हैं और अधिकारियों की तो बात छोडि़ए विभाग के प्रमुख सचिव को इस समस्या से अवगत कराया जाता है तो वह उल्टा सीधा जवाब देकर यह दावा करते हैं कि प्रदेश में पानी की कोई समस्या नहीं है, जबकि यह सभी जानते हैं कि इन अधिकारियों के द्वारा फर्जी आंकड़ों की रंगोली सजाने के फाइलों के दम पर हमारे मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रोज जल संकट के समाधान का ढिंढोरा पीटते हैं लेकिन उनके ही विधानसभा क्षेत्र जहां उनके बुढ़ापे की काशी बहती है, इसके बाद भी उनके निर्वाचन क्षेत्र के कई गांवों के लोग मुख्यमंत्री से जलसंकट की शिकायत कई बार कर चुके हैं, लेकिन मुख्यमंत्री के पास समस्या का समाधान केवल अधिकारियों को हटाकर वाहवाही लूटने में रहता है, इससे समस्या का समाधान होने वाला नहीं है, उनकी जगह जिस अधिकारी को मुख्यमंत्री स्थापना करते हैं वह अपनी कलाकारी दिखाने में लग जाता है? लेकिन इसके बावजूद भी समस्या का समाधान नहीं हो पाता है? विभाग में चल रही इस तरी की नीतियों से जो सरकार यह दावा करते नहीं थकती कि वह 2024 तक प्रदेश के सभी गांवों में नल से जल उनके घरों में पहुंचा देंगे? सरकार के इस दावे की पीएचई विभाग के अधिकारियों की कार्यशैली की बदौलत संभव होते नहीं लगता? एक ओर इन अधिकारियों की कार्यशैली से घर में नल पहुंचाने की योजना का खर्च भी बढ़ रहा है और इस खर्च को बढ़ाने में प्रोत्साहन ऐसा लगता है कि विभाग के प्रमुख सचिव फर्जी आंकड़ों की रंगोली सजाकर मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार को गुमराह करने में लगे हुए हैं, ऐसी विभाग में चर्चायें चटकारे लेकर की जा रही हैं? वही दूसरी ओर अधिकारी इस योजना की फर्जी आंकड़ों की रंगोली सजाकर सरकारी खजाने को चूना लगाने में लगे में मस्त हैं? न वह जनता की समस्यायें सुन रहे हैं क्योंकि वह विभाग में बैठते ही नहीं है? सवाल यह उठता है कि यदि अधिकारियों की यही कार्यशैली रही तो आगामी गर्मी के मौसम में जलसंकट की आहट पूरे प्रदेश में मचने की संभावना है? यह सभी जानते हैं कि ग्वालियर संभाग के भिण्ड जैसे जिले में जहां एक हजार 1200 फीट की गहराई तक पानी मिलता है, ऐसे जिलों का क्या हाल होगा और सरकार के दावे की जिसमें वह 2024 तक प्रदेश के हर घर तक नल से जल पहुंचाने का ढिंढोरा पीटते हैं उस ढिंढोरे की भी हवा निकल सकती है? आगामी विधानसभा चुनाव में जिन आदिवासियों को रिझाने और मनाने में भाजपा जुटी हुई है, उन आदिवासी बाहुल्य जिलों के गांव में जब लोग एक-एक बूंद पानी के लिए तरसेेंगे तो असंतोष तो पनपेगा ही और पीएचई अधिकारियों की वर्तमान कार्यशैली का परिणाम भाजपा को विधानसभा चुनाव में भुगतना पड़ सकता है…?