द ब्लाट न्यूज़ । कृषि और किसान कल्याण विभाग (डीए एंड एफडब्ल्यू) व अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (ईरी) ने दक्षिण एशियाई क्षेत्र में खाद्य व पोषण सुरक्षा सहयोग बढ़ाने के लिए समझौते पर हस्ताक्षर किए। ताकि वाराणसी स्थित ईरी के दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय केंद्र (सार्क) के द्वितीय चरण की गतिविधियां शुरू हो सके। इस समझौते पर कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री नरेन्द्र तोमर, सचिव मनोज आहूजा, संयुक्त सचिव (बीज और जीसी) अश्विनी कुमार व ईरी के महानिदेशक डा. जीन बेली ने किया।
भारत सरकार, आईसार्क के द्वारा सतत धान उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए भारत और अन्य क्षेत्रो में किये गई प्रयासों की सराहना करती है। कृषि मंत्री श्री तोमर ने कहा कि वो आशान्वित है कि हमारे सयुक्त प्रयास से किसानो की दशा में सुधार होगा तथा खाद्य और पोषण की सुनिश्चितता भारत और दक्षिण एशिया के अन्य क्षेत्रो में होगी। मनोज आहूजा ने आईआरआरआई, विशेष रूप से आईसार्क की प्रसंशा करते हुए कहा कि “विगत पांच वर्षो से कृषि क्षेत्र से संबंधित गंभीर मुद्दों के समाधान में आईसार्क भारत सरकार का सहयोगी रहा है।
यह समझौता हमारे देश और अन्य दक्षिण एशियाई क्षेत्र में कृषि एवं खाद्य क्षेत्र में सुधार के लिए मिलकर काम करने के नए तरीकों को अपनाने की प्रतिबद्धता है।” संयुक्त सचिव अश्वनी कुमार ने कहा कि “हम दक्षिण-दक्षिण सहयोग को बढ़ाने और फसल उत्पादन, बीज की गुणवत्ता और किसानों की आय बढ़ाने के लिए भारत और सब-सहारा अफ्रीका सहित अन्य दक्षिण एशियाई क्षेत्र में चावल उगाने वाले देशों की क्षमता को मजबूत करने में आईआरआरआई और आईसार्क की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकार करते हैं। हम कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए और भी अधिक वर्षों के सहयोग की आशा करते हैं।
आईआरआरआई के महानिदेशक बेली ने भारत सरकार के साथ इस नए सिरे से साझेदारी का स्वागत करते हुए कहा कि “भारत सरकार चावल-आधारित कृषि एवं खाद्य क्षेत्र की दक्षता, स्थिरता और समानता में सुधार करने में हमारी मुख्य रणनीतिक सहयोगी रही है। खाद्य असुरक्षा, कुपोषण और जलवायु परिवर्तन जैसी चुनौतियों का सामना और बेहतर समाधान प्रदान करने के लिए डा. जीन बेली ने समेकित प्रयासों और प्रतिबद्धताओं की आवश्यकता पर बल दिया।” द्वितीय चरण की गतिविधियां भारत सरकार और आईआरआरआई के बीच लंबे समय तक सहयोग करने की प्रतिबध्यता को दर्शती है। माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वाराणसी के राष्ट्रीय बीज अनुसंधान और प्रशिक्षण केंद्र के परिसर में आईसार्क की स्थापना को 2017 में मंजूरी दी थी।
पिछले पांच वर्षों से, केंद्र ने इस क्षेत्र में खाद्य उत्पादन को बनाए रखने में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। यह अपनी अत्याधुनिक प्रयोगशालाओ की सुविधाओं के माध्यम से निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों के साथ-साथ अनाज की गुणवत्ता, फसल उत्पादन और पोषण गुणवत्ता के लिए के लिए अनुसंधान प्रदान कर रहा है। आईसार्क ने चावल आधारित कृषि खाद्य प्रणालियों पर लघु पाठ्यक्रमों के माध्यम से ज्ञान हस्तांतरण को भी सक्षम बनाया है। मालूम हो कि दिसंबर 2021 में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पौधे के विकास चक्र में तेजी लाने और सामान्य परिस्थितियों में चावल के केवल एक से दो पीढ़ियों के मुकाबले प्रति वर्ष पांच पीढ़ियों के जनन लिए आईसार्क की नई स्पीड ब्रीडिंग सुविधा (स्पीडब्रीड) का उद्घाटन किया।
यह कम समय में लोकप्रिय भारतीय चावल की किस्मों में महत्वपूर्ण लक्षणों (जैसे, कम जीआई, जैविक और अजैविक तनाव के प्रति सहनशीलता) को स्थानांतरित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आईसार्क ने चावल मूल्य संवर्धन में उत्कृष्टता केंद्र (सीईआरवीए) भी स्थापित किया है जिसमें अनाज में भारी धातुओं की मात्रा और गुणवत्ता को निर्धारित करने की क्षमता वाली एक आधुनिक और परिष्कृत प्रयोगशाला शामिल है। केंद्र की महत्वपूर्ण उपलब्धियों में से एक, केंद्र टीम व ईरी मुख्यालय के संयुक्त प्रयासों के माध्यम से एक निम्न (ईरी 147 (जीआई 55) और एक मध्यवर्ती (ईरी 162 (जीआई 57)) ग्लाइसेमिक इंडेक्स (आई) चावल की किस्मों का विकास है। चूंकि अधिकांश चावल की किस्मों में जीआई अधिक होता है और अधिकतर भारतीय चावल का सेवन करते हैं जिससे कम जीआई चावल की किस्मों को लोकप्रिय बनाने से भारत में मधुमेह की बढ़ती स्थिति को नियंत्रित करने में सहायता मिलेगी।
आईसार्क के दूसरे चरण में उत्पादकों और उपभोक्ताओं की मांग को पूरा करने के लिए भारत और दक्षिण एशिया में सतत और समावेशी चावल-आधारित खाद्य प्रणालियों के विकास में तेजी लाने के उद्देश्य से अपने अनुसंधान और विकास कार्यो के विस्तार करने का प्रस्ताव रखा है। दूसरे चरण में उच्च उपज वाले तनाव-सहिष्णु और जैव-फोर्टिफाइड चावल के विकास, प्रसार और लोकप्रियीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा, विशेष रूप से उच्च जस्ता और कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स वाली चावल की किस्मो पर मुख्य फोकस केंद्रित होगा। इसके अलावा, आईसार्क आनुवंशिक लाभ बढ़ाने के साथ साथ नई किस्मों की उत्पादन और ग्राहक स्वीकृति बढ़ाने के लिए विशिष्ट और प्रमाणित अनाज गुणवत्ता की लाइनों को आगे बढ़ाने के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय चावल प्रजनन कार्यक्रमों में सहयोग करेगा। यह जलवायु-परिवर्तन सहिष्णु किस्मों और प्रौद्योगिकियों जैसे कि पर्यावरण के अनुकूल कृषि, बेहतर मृदा स्वास्थ्य प्रौद्योगिकियों, और मशीनीकृत डीएसआर में भी सहयोग प्रदान करेगा।
आईसार्क डिजिटल कृषि, कृषि-सलाहकार सेवाओं, और साझीकृत ज्ञान और क्षमता विकास के माध्यम से फसल प्रणाली की उत्पादकता और किसानों की आय में सुधार की दिशा में निरंतर प्रयासरत रहेगा जिससे की पर्यावरण के अनुकूल कृषि को बढ़ावा मिलेगा तथा युवाओं को कृषि-उद्यमिता में आकर्षित करेगा। आईसार्क निदेशक डा. सुधांशु सिंह ने भारत सरकार का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि “हम भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में अपने सहयोगिओं और अन्य हितधारकों के साथ कार्य करते हुए खाद्य और पोषण सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनुसंधान और विकास की दिशा में निरंतर प्रयासरत है। भारत और आईसार्क के एक साथ काम करने की यह नई प्रतिबद्धता हमें चावल आधारित कृषि खाद्य प्रणालियों को लाभान्वित और रूपांतरित करने के हमारे सयुक्त प्रयासों का एक अच्छा अवसर प्रदान करती है।”