चीन की मंशा

 

-सिद्धार्थ शंकर-

मई 2020 में पूर्वी लद्दाख में चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) की घुसपैठ के बाद भारत और चीन के बीच पैदा हुआ तनाव अभी खत्म नहीं हुआ है। बीते दिनों भारत के दबाव के बाद चीन अपनी सेना पीछे हटाने को राजी हो गया था, मगर उसकी मंशा पर भारत को हमेशा संदेह रहा। अब यह संदेह सच में बदल गया है। पूर्वी लद्दाख में चीन भारत से लगने वाली अपनी सीमा के नजदीक आधारभूत ढांचे के विकास की गति तेज किए हुए है। चीन की इस तरह की हरकतों से साफ है कि सीमा विवाद को लेकर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आ रहा है। एक तरफ वह बातचीत से विवाद सुलझाने की बात करता है दूसरी तरफ घुसपैठ करना नहीं छोड़ रहा है। ताजा घटना उत्तराखंड के बाराहोती सेक्टर से लगे बॉर्डर की है, जहां चीन के 100 सैनिकों ने पिछले महीने लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल क्रॉस की थी। चीनी सैनिकों ने 30 अगस्त को घुसपैठ की थी और 3 घंटे वहां रहने के बाद लौट गए। इसका जवाब देते हुए भारतीय जवानों ने भी पेट्रोलिंग की थी। घोड़ों पर आए चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसकर तोडफ़ोड़ की और लौटने से पहले एक पुल भी तोड़ दिया। बता दें बाराहोती वही इलाका है जिसमें चीन ने 1962 की जंग से पहले भी घुसपैठ की थी। पिछले हफ्ते ही यह रिपोर्ट सामने आई थी कि चीन ने पूर्वी लद्दाख में एलएसी के पास करीब 8 लोकेशन पर अस्थायी टेंट जैसी रहने की व्यवस्था की है। पीपुल्स लिबरेशन आर्मी ने उत्तरी इलाके में काराकोरम पास के करीब वहाब जिल्गा से लेकर पीयु, हॉट स्प्रिंग्स, चांग ला, ताशिगॉन्ग, मान्जा और चुरुप तक शेल्टर बनाए हैं। यहां हर लोकेशन पर सात क्लस्टर्स में 80 से 84 तक कंटेनर्स बनाए गए हैं। पिछले दिनों डोकलाम के बाद लद्दाख में चीन को मात खानी पड़ी तो भारत के इसी दृढ़ इरादे के कारण कि उसकी दादागीरी को किसी भी कीमत पर सहन नहीं किया जाएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लेह दौरा देश के इसी दृढ़ इरादे को रेखांकित करने वाला था। यह उल्लेखनीय है कि डोकलाम के मुकाबले लद्दाख में चीन को कहीं जल्द समझ आ गया कि भारत से उलझना महंगा पड़ेगा। चीनी सेना लद्दाख से जिस तरह पीछे हटने को बाध्य हुई उससे दुनिया को यही संदेश गया कि चीन से आंखों में आंखें डालकर बात करने की जरूरत है। चीन के खिलाफ यह जो संदेश गया, उससे विश्व समुदाय में भारत की अहमियत तो बढ़ेगी ही, चीन की हरकतों से परेशान देशों का मनोबल भी बढ़ेगा। यह तो साफ हो गया है कि चीन अभी तक चीन सीमा विवाद सुलझाने का नाटक ही करता आ रहा है। भारत को इस नाटकबाजी पर पर्दा डालने के लिए सक्रिय होना होगा। इसी के साथ भारतीय सेना को चीन से लगती सीमा पर और अधिक सतर्कता भी बरतनी होगी। उसकी ओर से मित्रता, सहयोग और शांति की बातें करने के बाद भी उस पर यकीन नहीं किया जा सकता। चूंकि चीन भरोसे के काबिल नहीं रहा इसलिए उस पर आर्थिक निर्भरता कम करने का अभियान प्राथमिकता में बने रहना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों को धता बताने और अपनी खतरनाक विस्तारवादी प्रवृत्ति बरकरार रखने वाले चीन सरीखे देश पर आर्थिक निर्भरता जितनी जल्द खत्म हो उतना ही अच्छा। आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनना केवल इसीलिए आवश्यक नहीं है कि अहंकारी चीन की चुनौतियों का जवाब देना है, बल्कि इसलिए भी है, क्योंकि उससे ही हम अपनी तमाम आंतरिक समस्याओं का समाधान करने में सक्षम होंगे। वास्तव में आर्थिक रूप से सबल भारत ही विश्व समुदाय में अपनी सही पहचान स्थापित करने में समर्थ होगा। चीन ने लद्दाख में जो संकट खड़ा किया उसका सबसे बड़ा सबक यही है कि किसी भी मामले में हम उसके मोहताज न रहें और उसकी संवेदनशीलता की चिंता तभी करें जब वह हमारे हितों की परवाह करे। सरकार और साथ ही कारोबार जगत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि पहले कोरोना के कहर और फिर लद्दाख में टकराव के चलते चीन पर आर्थिक निर्भरता खत्म करने को लेकर जो कदम उठाने शुरू किए गए थे, वे शिथिल न पडऩे पाएं।

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