इंदौर: चार दिन में जूता फटा, 2000 के बदले देने होंगे 13500 रुपए

द ब्लाट न्यूज़ दो हजार रुपए में खराब जूता बेचने पर इंदौर जिले के मेडिकल व्यापारी ने नामी शू कंपनी कोलम्बस के खिलाफ सात साल तक कानूनी लड़ाई लड़ी जीत भी गए। अब उपभोक्ता फोरम ने कंपनी और दुकानदार पर जुर्माना लगाने के साथ ही ब्याज सहित जूतों की कीमत चुकाने के आदेश दिए है। यह हर्जाना राशि करीब 13 हजार 500 रुपए बनती है। मामला वर्ष 2016 का है। जूता कंपनी ने बचाव में कहा था कि जूते की उम्र उसकी इस्तेमाल पर भी निर्भर करती है। यदि कोई पानी में ज्यादा पहने, रफ उपयोग करे या कूदे-फांदे तो वह जल्दी खराब हो सकता है। इस पर कोर्ट ने कहा कि जो शू बेचे गए हैं, यह स्पोर्ट्स के ही हैं। इनका  इस्तेमाल दौडऩे, भागने में ही तो होगा।

 

 

इसका मतलब है कि बेचे गए जेूते की क्वालिटी खराब थी। मेडिकल से जुड़े व्यापारी धर्मेन्द्र शुक्ला के  एडवोकेट हरीश शर्मा बताते हैं कि कोलम्बस कंपनी स्पोर्ट्स शू बनाती है। इनके टीवी में विज्ञापन भी आते हैं कि इनके द्वारा बनाए गए जूते बहुत मजबूत होते हैं ओर सालों साल चलते हैं। क्वालिटी और कीमत में कोई समझौता नहीं किया जाता है। इन विशेषताओं से प्रभावित होकर महू निवासी धर्मेन्द्र शुक्ला ने यहां के न्यू प्रफुल्ल स्पोर्ट्स स्टोर से शू खरीदे। शू की कीमत दो हजार रुपए से अधिक थी। दुकानदार ने ये आश्वासन दिया था कि कोलम्बस कंपनी के यह शू कम से कम दो तक तो चलेंगे। लेकिन शू एक महीने भी नहीं चले। चार दिन में हीशू का तलवा तो उखड़ा ही साथ ही ऊपरी हिस्सा भी फट गया। इसकी शिकायत धर्मेन्द्र शुक्ला ने दुकानदार से की। इस पर दुकानदार ने अभद्रता करते हुए उन्हें रवाना कर दिया। शिकायत भी की गई लेकिन कहीं से कोई कार्रवाई नहीं हुई तो शुक्ला ने कंज्यूमर कोर्ट में केस कर दिया।

इसमें कोलम्बस शू कंपनी ओर जूता बेचने वाले दुकानदार को पार्टी बनाया गया। न्यायालय में जूता कंपनी की तरफ से तो कोई हाजिर नहीं हुआ, लेकिन विक्रेता हाजिर हुइा और उसने सारी जिम्मेदारी कम्पनी पर डाल दी। उसका कहना था कि कंपनी ने ही गलत बनाया है तो मैं क्या करूं। उसने ये स्वीकार कर लिया कि सारी गलती कंपनी की है। इसके बाद कोर्ट ने इंदौर के एक जूता निर्माता से जूते की जांच करवाई तो पता चला कि जूते में लगाया गया चमड़ा बहुत पुराना और आउटडेटेड है। मैन्युफेक्चरिंग के लिए जो पेस्टिंग की गई है वो घटिया क्वालिटी की है। इन सारी बातों को रिकार्ड पर मानते हुए, उपभोक्ता न्यायालय ने शुक्ला के पक्ष में फैसला दिया है। जूता कम्पनी और जूता विक्रेता पर पांच-पांच हजार रुपए का हर्जाना भी लगाया है साथ ही जूते की कीमत ब्याज सहित एक महीने के अंदर चुकाने के लिए कहा है। शुक्ला ने 2016 में यह केस लगाया था। धर्मेन्द्र शुक्ला ने कहा कि हमने कोलम्बस कंपनी का जूता 28 अगस्त 2016 को महू की न्यू प्रफुल्ल स्टोर्स से खरीदा था। उसके बाद इंदोर की उपभोक्ता फोरम कोर्ट में केस लगाया। मैंने सोच लिया था कि लड़ाई लडऩा है और हमें न्याय मिला।

केस के दौरान बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा। कई बार महू से इंदौर आना-जाना किया। इस दौरान तब अजीब स्थिति बन गई जब जूता कंपनी ने अपना जवाब दिया। उसने कहा कि हर जूते की लाइफ उसके इस्तेमाल पर भी टिकी होती है। यदि कोई रफ यूज करेगा या बारिश में ज्यादा पहनता है या फिर कूदता-फंदता है। जल्दी खराब हो सकता है। इसमें कंपनी की क्या गलती है। कोर्ट ने इसे संज्ञान में लेते हुए फैसले के वक्त कहा है कि स्पोर्ट्स शूज का इस्तेमाल खेलने के लिए ही होता है। दो साल चली प्रक्रिया – दो साल से प्रोसेस चलती रही और कम्पनी अपना मुंह छिपाती रही और दुकानदार ही जैसे-तैसे आगे आया। लेकिन वो भी अपनी बात को साबित नहीं कर पाया कि उसने घटिया जूता किस प्रकार से बेचा। इससे वे प्रमाणित होता है जितनी भी मैन्युफेक्चरिंग कंपनी और विक्रता हैं, डिस्ट्रीब्यूटर्स हैं। होल सेलर हैं वे उपभोक्ता से बहुत सी चीजें छिपाते हैं। अपने घटिया माल को भी अचछा बताकर, उस पर पैकिंग अच्छा लगाकर बेच देतेहैं और अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लेते हैं। जब उपभोक्ता परेशान होता है तो पुलिस के सहयोग से उपभोक्ता की अवाज को दबा दिया जाता है।

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