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लखनऊ । लखनऊ विश्वविद्यालय की तरफ से एक व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस व्याख्यान की प्रमुख वक्ता डॉ अनुरीमा भट्टाचार्य रही। डॉ. भट्टाचार्य दर्शन शास्त्र विभाग, नॉर्थ बंगाल विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उन्होंने हेगेल और मार्क्स के द्वंदात्मक पद्धति पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने अपने व्याख्यान में हेगेल की प्रमुख पुस्तकों की चर्चा करते हुए इस बात को रखने का प्रयास किया कि हेगेल किस तरह से कांट के दर्शन से आगे बढ़ते हैं। 
उन्होंने कहा कि सारा ज्ञान मानवीय अनुभूति से ही होता है और कोई भी विचार मौलिक नहीं होता, बल्कि सभी विचार अपनी संस्कृतियों से जन्म लेते हैं। साथ ही उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि ज्ञान की यात्रा तब तक पूर्ण नहीं होती जब तक कि हम किसी चीज के निषेध को न जाने। इस व्याख्यान कार्यक्रम में दर्शन शास्त्र विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. रजनी श्रीवास्तव एवं अन्य विभागीय शिक्षक व प्रो. राकेश चंद्रा, डॉ.राजेश्वर यादव, डॉ. राजेंद्र वर्मा, डॉ. प्रशांत शुक्ला, डॉ. ममता सिंह उपस्थित रहे। इसके साथ ही विभाग के शोधार्थियों तथा स्नातक तथा परास्नातक के छात्रों ने भी उत्साहपूर्वक भाग लिया।
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