द ब्लाट न्यूज़ वर्तमान में प्रचलित इन्फोनोमिक्स यानी आंकड़ों पर आधारित अर्थशास्त्र का महत्व विश्वव्यापी हो गया है। डाटा आज एक बड़ी पूंजी है। यह डाटा का ही कमाल है कि गूगल और फेसबुक जैसी अपेक्षाकृत नई कंपनियां विश्व की बड़ी और लाभकारी कंपनियां बन गई हैं।
डाटा ही वह ईंधन है जो अनगिनत कंपनियों को चलायमान रखने के लिए जिम्मेदार है। वे चाहे तमाम तरह के एप्स हों या विभिन्न इंटरनेट मीडिया साइट्स, उपभोक्ताओं के लिए लगभग मुफ्त हैं।
असल में जो चीज हमें मुफ्त दिखाई दे रही है, वह सुविधा हमें हमारे संवेदनशील निजी डाटा के बदले मिल रही है। इनमें से अधिकांश कंपनियां उपभोक्ताओं द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों को संभाल पाने में असफल रहती हैं। इसका दुष्परिणाम आंकड़ों की चोरी और उनके दुरुपयोग के रूप में हमारे सामने आते रहते हैं। वर्ष 2020 में फेसबुक ने लगभग 86 अरब डालर और गूगल ने 181 अरब डालर विज्ञापन से कमाए। लगभग संपूर्ण विश्व में आज खोज का पर्याय बन चुकी कंपनी का नाम है गूगल। गूगल इंटरनेट का प्रवेश द्वार है और खोज-विज्ञापन के बाजार में इसका सर्वाधिक हस्तक्षेप है। अस्तित्व में आने के बाद से गूगल हमारे जीवन में घुसपैठ बढ़ाता रहा।
इसका दुष्परिणाम इस रूप में सामने आता है कि तरह तरह के स्मार्टफोन एप्स को इंस्टाल करते समय अधिकांश लोग इन तथ्यों पर ध्यान नहीं देते हैं कि इस दौरान किस स्तर की सतर्कता बरतनी चाहिए। यदि किसी उपभोक्ता ने मौसम का हाल जानने के लिए कोई एप डाउनलोड किया और एप ने उसके फोन में उपलब्ध सारे कांटेक्ट तक पहुंचने की अनुमति मांगी तो ज्यादातर लोग बिना यह सोचे कि मौसम का हाल बताने वाला एप हमारे कांटेक्ट की जानकारी क्यों मांग रहा है, उसे अनुमति दे देते हैं।
अब उस एप के निर्माता के पास किसी के स्मार्टफोन में उपलब्ध सभी कांटेक्ट तक पहुंचने की सुविधा मिल जाएगी। यानी एप डाउनलोड करते ही उपभोक्ता आंकड़ों में तब्दील हुआ, फिर उस डाटा ने और डाटा पैदा करना शुरू कर दिया। इस तरह देश में हर मिनट असंख्य मात्रा में आंकड़ों का सृजन हो रहा है, परंतु उसका बड़ा लाभ इंटरनेट के व्यवसाय में लगी कंपनियों को हो रहा है। ऐसे में आंकड़ों की सुरक्षा का बड़ा सवाल कायम है।