द ब्लाट न्यूज़ उत्तराखंड के टिहरी जनपद के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर की दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है।
महानगरों में रहने वाले ग्रामीण कार्तिक की दीपावली के बजाय मंगशीर की दीपावली के लिए गांव आते हैं। इस दीपावली को मनाने की पीछे यहां के ईष्ट देवता गुरु कैलापीर हैं। उन्हीं के नाम से यहां पर मेला भी होता है। इस बार 22 और 23 नवंबर को बग्वाल (दीपावली) मनाई जाएगी, जबकि 24 नवंबर से तीन दिवसीय गुरु कैलापीर मेला शुरू होगा।
कार्तिक की बग्वाल (दीपावली) के ठीक एक माह बाद बूढ़ाकेदार क्षेत्र में मंगशीर की बग्वाल मनाई जाती है। बग्वाल के लिए 1001 भैले तैयार किए जाते हैं। इसे गांव में पास खेतों में सामूहिक रूप से खेला जाता है।
24 नवंबर को गुरु कैलापीर देवता की झंडी को मंदिर से बाहर निकाला जाएगा। इसके बाद ग्रामीण देव निशान के साथ खेतों में दौड़ लगाएंगे। यह ऐतिहासिक दौड़ आकर्षण का केंद्र रहती है। देवता का खेत मानते हुए इन खेतों में कोई मकान नहीं बनाता है।
मान्यता है कि आज से करीब 300 साल पहले हिमाचल से क्षेत्र का ईष्ट देवता गुरु कैलापीर गढ़वाल भ्रमण पर आए थे। उन्होंने विभिन्न जगहों पर भ्रमण किया। उन्हें बूढ़ाकेदार क्षेत्र का जंदवाड़ा नामक जगह भा गई। देवता ने वहीं निवास करने का निर्णय लिया। उस समय वह मंगसीर (मार्गशीर्ष) का महीना था।
इससे यहां के ग्रामीण काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने छिलकों को जलाकर देवता का स्वागत किया। तभी से मंगसीर माह में बूढ़ाकेदार क्षेत्र में दीपावली मनाई जाती है।
यह उत्सव दो दिन तक चलता है। इसके बाद तीन दिन का मेला भी आयोजित होता है।
बलिराज यानी मेले के पहले दिन गुरु कैलापीर देवता मंदिर से बाहर निकलकर ग्रामीणों को आशीर्वाद देते हैं। स्नान आदि के बाद देवता बाहर निकाले जाते हैं। इसके बाद फिर खेतों में दौड़ लगाने को ले जाए जाते हैं।
देवता के मंदिर से बाहर निकलने और प्रवेश का समय तय होता है। देवता दोपहर दो बजे देवता मंदिर से बाहर निकलते हैं। सूर्य अस्त होने से पहले वे मंदिर में प्रवेश करते हैं।