इस दौरान वह असम के लोकप्रिय गमछे में नजर आए और भारत बायोटेक कंपनी की वैक्सीन लगवाई। उन्हें टीका लगाने वाली दो नर्स भी केरल और पुडुचेरी की थीं। वहीं भारत बायोटेक कंपनी के फाउंडर कृष्णा इल्ला तमिलनाडु के रहने वाले हैं। यही नहीं उनकी दाढ़ी की इन दिनों गुरु रवींद्रनाथ टैगोर से तुलना की जा रही है। इस तरह से देखें तो पीएम नरेंद्र मोदी ने एक टीका लगवाकर पूरे भारत समेत 5 चुनावी राज्यों को भी अहम संदेश दिए। सोशल मीडिया पर भी कुछ लोग इस संबंध में चर्चा कर रहे हैं।
इससे पहले रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में भी पीएम नरेंद्र मोदी ने तमिलाडु का जिक्र करते हुए कहा था कि उन्हें बेहद दुख है कि वह जिंदगी में तमिल भाषा नहीं सीख सके। पीएम मोदी ने कहा था कि तमिल दुनिया की सबसे पुरानी भाषाओं में से एक है। इस भाषा को न सीख पाने का उन्हें दुख है। कोरोना वैक्सीन लगवाने के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने नर्सों से बात भी की थी और उन्होंने कहा कि वैक्सीन लग गई, मुझे तो पता भी नहीं चला। नर्सों से उनकी बातचीत को लेकर एम्स के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा, ‘पीएम नरेंद्र मोदी चाहते थे कि नर्सिंग ऑफिसर्स सहज रहें। इसलिए वह उनसे बात कर रहे थे और हल्की-फुल्की बातें करते हुए मजाक कर रहे थे। उन्होंने उनकी लोकल लैंग्वेज में बात की और पूछा कि आप कहां कि रहने वाली हैं।’
डॉ. रणदीप गुलेरिया ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी का इस तरह से बातें करना नर्सों के लिए मददगार रहा क्योंकि वे नहीं जानती थीं कि वे किसे वैक्सीन लगाने जा रही हैं। गुलेरिया ने कहा कि पीएम नरेंद्र मोदी का टीका लगवाना अहम है। यह एक तरह से गेमचेंजर है। इससे लोगों को टीका लगवाने की प्रेरणा मिलेगी। हमने लोगों को वैक्सीन लगवाने की सुविधा के लिए सरकारी और निजी केंद्रों में बड़े पैमाने पर व्यवस्था की है। एम्स के निदेशक ने कहा कि पीएम मोदी ने टीका लगवाकर यह संदेश दिया है कि जब हमारी बारी आए तो हम भी लगवाएं और इससे पीछे न हटें। उन्होंने कहा कि 60 साल से अधिक की उम्र वाले और गंभीर बीमारियों से पीड़ित 45 साल से अधिक के लोगों को वैक्सीन लगवानी चाहिए।
सोशल मीडिया पर रवींद्रनाथ टैगोर से हो रही दाढ़ी की तुलना: गौरतलब है कि पीएम नरेंद्र मोदी की दाढ़ी बीते कुछ महीनों से बढ़ी हुई है और उनके इस नए लुक की तुलना अनायास ही गुरु रवींद्रनाथ टैगोर की दाढ़ी से की जा रही है। गुरु रवींद्रनाथ टैगोर को खासतौर पर पश्चिम बंगाल में बड़े आइकॉन के तौर पर देखा जाता है। ऐसे में उनकी इस तरह की दाढ़ी को चुनावी राजनीति में एक संकेत के तौर पर भी देखा जा रहा है।