पुलिस के आगे सबकुछ जायज है, विस्‍तार से जानिए क्‍या है मामला

अलीगढ़। इसे पारंपरिक ढर्रा कहें या पुलिस की रीति…। जांच के नाम पर किसी भी व्यक्ति को हिरासत में ले लिया जाता है। अगर वो दोषी निकले तो जेल, अन्यथा उसका मानसिक उत्पीड़न का कोई जवाबदेह नहीं होता। सासनीगेट क्षेत्र से फरार नकली दवा बनाने वाले दूसरे आरोपित को भी पुलिस ने पकड़ लिया है। हालांकि अंदर की बात ये है कि दूसरे आरोपित को कार्रवाई के पहले ही दिन पकड़ लिया गया था। लेकिन, एक सप्ताह उसे इधर-उधर घुमाया गया और ठिकानों की तलाश की गई। वैसे ठीक भी है। आखिर उसकी निशानदेही पर पुलिस को इस नकली कारोबार की कमर तोड़ने में अहम सुबूत मिल गए होंगे। सिर्फ यही नहीं, शराब प्रकरण में भी हर मुल्जिम का यही हाल था। हिरासत में लेकर पहले उसे घुमाया गया। काम पूरा हुआ तो जेल भेज दिया। खैर, पुलिस करे तो सब जायज है। लेकिन, कानून से ऊपर जाना भी ठीक नहीं।

पूरे जिले की बात करें तो कैंपस वाली पुलिस ने सबसे ज्यादा दौड़ लगाई है। पुलिस एक को ढूंढकर फुरसत नहीं ले पाती तो दूसरा तैयार खड़ा रहता है। कभी कैंपस के छात्र की तलाश में दिल्ली में डेरा डाला गया तो कभी चोरों की तलाश में नेपाल तक दस्तक दी गई। छात्र मिला तो इतनी कवायद करना भी व्यर्थ सा लगा। वर्तमान में भी एक तरफ वैक्सीन कूड़े में फेंकने वाली महिला फरार है तो दूसरी तरफ गाड़ी की किस्त लेकर निकले युवक का भी कोई पता नहीं चला है। महिला की तलाश में पुलिस कासगंज, एटा, प्रयागराज और लखनऊ तक खाक छान आई है। अलीगढ़ में भी सुराग मिला। लेकिन, नतीजा कोई नहीं निकला। वहीं युवक के लिए क्वार्सी से लेकर हरदुआगंज का एक-एक सीसीटीवी खंगाल दिया। उसकी भी आखिरी लोकेशन हरदुआगंज में ही मिली थी। इतनी भागदौड़ के बीच थाने का कामकाज प्रभावित होना भी तय है।

इस साल ऊपर से नीचे तक नजर घुमाएं तो पुलिस विभाग में फेरबदल के बाद पूरी टीम बदल गई है। लंबे समय बाद एक बार फिर शहर में बदलाव हुआ है। सबसे महत्वपूर्ण थाने क्वार्सी और बन्नादेवी अब नए हाथों में हैं। अच्छी बात रही कि प्रभारियों के चयन में ज्यादा समय नहीं लगाया गया, नहीं तो कतार और लंबी हो जाती। गैरजनपद स्थानांतरित हुए पुलिसकर्मियों की बात करें तो धुरंधर जोड़ी काफी चर्चाओं में रही थी। हर केस में इस जोड़ी का जिक्र जरूर किया जाता था। कई सालों में दोनों को एनकाउंटर स्पेशलिस्ट व साइबर का मास्टर के भी नाम दिए गए। नतीजतन, दोनों ने समय-समय पर बड़े केस सुलझाकर अधिकारियों का भरोसा जीता। आखिरकार दोनों को महत्वपूर्ण थानों की जिम्मेदारी मिली। लेकिन, जाते-जाते जोड़ी का एक हिस्सा शराब प्रकरण की भेंट चढ़ गया। खैर, जो सजा मिलनी थी मिली, मगर अच्छे कार्यों को भी भुलाना नहीं चाहिए।

अवैध शराब के खिलाफ अलीगढ़ में एक माह के अंदर कमरतोड़ कार्रवाई की गई है। अवैध काम करने वाले बड़े माफिया से लेकर छोटे स्तर का आरोपित भी शिकंजे में आ गया। पुलिस का भौकाल इतना तगड़ा है कि कोई चूं भी नहीं कर पा रहा। इसके बावजूद अवैध शराब पकड़ी जाए तो चर्चाएं होने लगती हैं। ये पुलिस के आंकड़े बताए रहे हैं। आएदिन किसी को किसी को अवैध शराब के पकड़कर जेल भेजा जा रहा है। इसका मतलब है कि कारोबार अब भी बदस्तूर जारी है। आखिर शराब का खात्मा होने के बाद इन आरोपितों की इतनी मजाल कैसे हो रही है। दूसरी तरफ पुलिस की ओर से अब तक पकड़ीं गईं अवैध फैक्ट्रियां भी सवाल खड़े कर रही हैं। आखिर कार्रवाई के बीच फैक्ट्रियां किसकी शहर पर संचालित हो रही थीं। क्या सैकड़ा पार लोगों की मौतों के बाद भी आरोपितों को पुलिस का खौफ नहीं था?

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