द ब्लाट न्यूज़ । दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) की ओर से दाखिल उस याचिका पर एक चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) एवं सांसद कार्ति चिदंबरम के करीबी सहयोगी का रुख जानना चाहा, जिसमें 263 चीनी नागरिकों के वीजा आवेदन को मंजूरी देने से जुड़े एक कथित रिश्वतखोरी मामले में निचली अदालत द्वारा उन्हें दी गई जमानत का विरोध किया गया है।
न्यायमूर्ति पूनम ए बंबा ने सीए एस भास्कररमन को नोटिस जारी करते हुए याचिका को 27 सितंबर को अगली सुनवाई के लिए सूचीबद्ध कर दिया।
जांच एजेंसी ने भास्कररमन को 18 मई को गिरफ्तार किया था और निचली अदालत ने उन्हें नौ जून को जमानत दे दी थी।
रिश्वतखोरी का यह कथित मामला साल 2011 से जुड़ा होने का आरोप है, जब कार्ति चिदंबरम के पिता पी चिदंबरम केंद्रीय गृह मंत्री थे।
सीबीआई ने आरोप लगाया है कि तलवंडी साबो पावर लिमिटेड (टीएसपीएल) के तत्कालीन सह-उपाध्यक्ष विकास मखरिया ने मानसा में निर्माणाधीन बिजली संयंत्र में काम कर रहे 263 चीनी कामगारों के लिए परियोजना वीजा फिर से जारी करने के वास्ते सीए से संपर्क किया था।
अधिकारियों के मुताबिक, जांच एजेंसी की ओर से दर्ज प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि मखरिया ने कार्ति के ‘करीबी सहयोगी/प्रतिनिधि’ भास्कररमन के माध्यम से उनसे संपर्क साधा था।
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि परियोजना वीजा 2010 में बिजली और इस्पात क्षेत्र के लिए पेश किया गया एक विशेष प्रकार का वीजा था, जिसे लेकर गृह मंत्री के रूप में पी चिदंबरम के कार्यकाल के दौरान विस्तृत दिशा-निर्देश जारी किए गए थे। हालांकि, इस वीजा को दोबारा जारी करने का कोई प्रावधान नहीं था।
प्राथमिकी में आरोप लगाया गया है कि टीएसपीएल द्वारा कार्ति और भास्कररमन को मुंबई स्थित बेल टूल्स लिमिटेड के माध्यम से 50 लाख रुपये की रिश्वत का भुगतान किया गया था।
इसमें दावा किया गया है कि भुगतान के लिए कथित तौर पर दो फर्जी बिलों का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें चीनी कर्मचारियों के लिए वीजा से संबंधित कार्यों को लेकर परामर्श और अन्य खर्चे दर्शाये गए थे।
प्राथमिकी में कहा गया है कि मखरिया ने बाद में ईमेल के जरिये कार्ति और भास्कररमन का आभार जताया था।