लोकनायक गणेश सर्वप्रथम पूज्य क्यों बने…

-ललिता नारायण उपाध्याय-

द ब्लाट न्यूज़ | क्या आप जानते हैं कि इस ब्रह्माण्ड में जो कुछ भी है, वह सब माता-पिता के रूप में मौजूद है और इसे सिद्ध भी किया जा सकता है। आपको शिवपुत्र गणेश की कहानी की ओर जाना होगा जिनकी पूजा हर शुभ कार्य में सबसे पहले की जाती है। उन्होंने माता पिता की सेवा और आदर करके जीवन में सबसे ऊंचा स्थान प्राप्त किया। एक बार सभी देवताओं के मध्य यह विवाद उठ खड़ा हुआ कि पृथ्वी पर पहली पूजा किसकी होनी चाहिए अर्थात् देवताओं का पूजन करते समय सर्वप्रथम किसे पूजा जाये। जब यह विवाद खड़ा हुआ तो सब हर देवता अपने आपको श्रेष्ठ और शक्तिशाली बतलाते हुये प्रथम पूज्य होने का दावा करने लगे। उस समय बात इतनी बढ़ गयी कि देवता आपस में शस्त्रों को टकराने लगे। देवऋषि नारद ने इस विवाद को शांतिपूर्वक निपटाने के लिये सबको भगवान शिव के पास चलने की सलाह दी। भगवान शिव ने जब देखा कि देवता आपस में लडने लगे हैं और यह मामला आसानी से सुलझने वाला नहीं है तब उन्होंने एक प्रतियोगिता आयोजित की और देवताओं से कहा कि आप अपने अपने वाहनों पर बैठकर ब्रहमाण्ड का एक चक्कर लगायें। इस दौर में जो विजयी होगा और जो सबसे पहले हमारे पास आयेगा, उस ही को प्रथम पूज्य माना जायेगा। दौड़ शुरू हुई। सभी देवता अपने वाहनों पर ब्रह्माण्ड का चक्कर लगाने के लिये निकल पड़े। श्री गणेश ने तत्काल उस प्रतियोगिता में भाग न लेकर पिता शिव और माता पार्वती की सात बार परिक्र मा की और उनके सामने हाथ जोड़कर खड़े हो गये। जब सब देवता परिक्र मा करके लौट आये, तब भगवान शिव ने घोषणा की कि हमारे पुत्र गणेश ने आज प्रतियोगिता जीत ली है। इसके साथ ही संसार के इस रहस्य का ज्ञान भी कराया कि माता पिता ही ब्रह्माण्ड्, सृष्टिकर्ता और ईश्वर के जीवित स्वरूप हैं। प्रतियोगिता समाप्त होने पर सभी देवी देवताओं ने इस तथ्य एवं सत्य को स्वीकार किया और श्रीगणेश को प्रथम पूज्य होने का मान व स्थान मिला। इस प्रकार श्री गणेश ने अपने बुद्धिबल से सब देवताओं में प्रथम पूज्य होने का स्थान प्राप्त किया।

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