सर्व समावेशी है शंकराचार्य का अद्वैत दर्शन स्वामी यतीन्द्रानंद सरस्वती…

संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में संत समागम एवं सौंदर्य लहरी पारायण

द ब्लाट न्यूज़। स्वामी यतीन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि आदि शंकराचार्य का अद्वैत दर्शन सर्व समावेशी है। शंकराचार्य प्रणीत अद्वैत दर्शन सभी मत संप्रदाय को जोड़ता है। स्वामी यतीन्द्रानंद सरस्वती रविवार को संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय में संत समागम एवं सौंदर्य लहरी पारायण महोत्सव को सम्बोधित कर रहे थे। श्री शंकराचार्य वांग्मय सेवा परिषद एवं वेदांत भारती के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित दो दिनी संत समागम के अन्तिम दिन स्वामी यतीन्द्रानंद सरस्वती ने कहा कि जिसमें संप्रदाय भेद न हो, वही जगद्गुरु है। उन्होंने कहा कि अहंकार रहित दान ही फलीभूत है। मुकुंद ही मुक्ति प्रदान करते हैं। परमात्मानंद सरस्वती महाराज ने कहा कि आदि शंकराचार्य का मोक्ष दर्शन यथार्थ है। उन्होंने ओंकारेश्वर में आदि शंकराचार्य की 108 फीट प्रतिमा एवं अनुसंधान केंद्र स्थापना का प्रस्ताव रखा। समागम में स्वामी अभयानंद सरस्वती ने कहा कि अद्वैत दर्शन सनातन है। आदि शंकराचार्य ने अद्वैत दर्शन को संयोजित किया।

उन्होंने कहा कि संकटकाल में भारतीय समाज संत की ओर आकांक्षा भरी निगाह से देखता है। संत समाज को अद्वैत परंपरा संरक्षण के लिए सदैव प्रयासरत रहना चाहिए। महोत्सव में स्वामी निर्भयानंद ने कहा कि राजनैतिक सामाजिक समस्याओं का निदान अद्वैत सिद्धांत से संभव है। उन्होंने कहा कि अद्वैत सिद्धांत मात्र दर्शन नहीं, विज्ञान भी है। भारतीय दृष्टिकोण में हमारे पूज्य संत महान वैज्ञानिक हैं। विदेशी वैज्ञानिक विज्ञान के क्षेत्र में जो भी खोज रहे किये हैं। उसे हमारे संत पांच हजार वर्ष पहले ही प्रस्तुत कर दिए थे। पद्मश्री ब्रह्मेशानंद ने कहा कि आज देश-विदेश में अनेक संत हिन्दू धर्म का प्रचार प्रसार कर रहे हैं लेकिन हिन्दू धर्म के हर पहलू को समझकर सही ढंग से पहुंचाने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि संत समाज के लिए शंकराचार्य का प्रचार सर्वोपरि है। संत समाज को समाज के हर क्षेत्र में आदि शंकराचार्य को पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए।

श्याम चैतन्य पुरी महाराज ने कहा कि कुछ विधर्मी भगवा चोला ओढ़कर भारतीय समाज को भ्रमित कर रहे हैं। समाज को सचेत करना संत जनों का दायित्व है। उन्होंने कहा कि सनातन भाष्य ग्रंथों का सरलीकरण करने की जरूरत है। महोत्सव में स्वामी विश्वेश्वरानंद गिरी आदि संतों ने भी विचार रखा। समागम की अध्यक्षता महा स्वामी शंकर भारती महाराज, संचालन महामंडलेश्वर चिदम्बरानंद सरस्वती महाराज ने किया। संगोष्ठी का शुभारंभ महास्वामी शंकर भारती महामंडलेश्वर चिदम्बरानंद महाराज, स्वामी पुण्यानंद ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर किया। संगोष्ठी में देश भर के एक हजार संत सम्मिलित हुए। इस अवसर पर डॉ. माधवी तिवारी , राजेश त्रिवेदी, दिग्विजय त्रिपाठी,अजय, जय प्रकाश आदि भी उपस्थित रहे।

 

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