ओडिशा और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री क्षेत्रीय विवाद की जांच के लिए समिति बनाने पर राजी

नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय को शुक्रवार को जानकारी दी गयी कि ओडिशा और आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्रियों की नौ नवंबर को बैठक हुई और वे 21 गांवों के अधिकार क्षेत्र से संबंधित विवाद पर गौर करने के लिए एक समिति गठित करने पर राजी हो गए।

ओडिशा सरकार ने शीर्ष अदालत को बताया कि मामले में ‘‘कुछ सकारात्मक प्रगति’’ हुई है।

न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर और न्यायमूर्ति सी टी रविकुमार की पीठ को ओडिशा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने बताया, ‘‘दोनों मुख्यमंत्रियों ने नौ नवंबर 2021 को मुलाकात की और वे मामले की जांच के लिए एक समिति गठित करने पर राजी हो गए हैं।’’

ओडिशा सरकार ने ‘‘विवादित क्षेत्र’’ वाले तीन गांवों में पंचायत चुनाव अधिसूचित करने के लिए आंध्र प्रदेश के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई किए जाने का अनुरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की है।

आंध्र प्रदेश के अधिकारियों की ओर से पेश वकील ने कहा कि बैठक बहुत मैत्रीपूर्ण माहौल में हुई लेकिन अवमानना के ‘‘मंडराते खतरे’’ से बचा जा सकता है। उन्होंने कहा कि अदालत अवमानना मामले को बंद कर सकती है और यह याचिकाकर्ता पर छोड़ सकती है कि वह फिर से अदालत आ जाएं।

पीठ ने कहा, ‘‘अवमानना की कार्रवाई को आगे बढ़ाना है, इसमें क्या दिक्कत है। अगर समझौता नहीं होता है तो अवमानना की कार्रवाई करनी होगी। यथास्थिति बनाए रखने का स्पष्ट निर्देश है। अगर उसका उल्लंघन होता है तो यह शिकायत है। अगर आप इसे हल करने में सक्षम नहीं है तो हमें इससे निपटना होगा।’’

आंध्र प्रदेश के अधिकारियों की ओर से पेश वकील ने कहा कि उन्होंने पहले ही कहा है कि कोई उल्लंघन नहीं हुआ।

मामले पर कुछ समय के लिए सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध करते हुए सिंह ने कहा कि इस मामले को कुछ समय के लिए टालने से विवाद को हल करने में मदद मिलेगी।

पीठ ने अपने आदेश में कहा, ‘‘राज्य प्राधिकारी सौहार्द्रपूर्ण समाधान निकालने के लिए उच्च स्तर पर बातचीत कर रहे हैं। हम जनवरी 2022 के पहले सप्ताह तक मामले पर सुनवाई स्थगित करते हैं।’’

‘‘कोशिया ग्रुप ऑफ विलेजिस’’ नाम से बुलाए जाने वाले 21 गांवों के अधिकार क्षेत्र पर विवाद सबसे पहले 1968 में शीर्ष अदालत पहुंचा था, जब ओडिशा ने एक दिसंबर 1920, आठ अक्टूबर 1923 और 15 अक्टूबर 1927 को जारी तीन अधिसूचनाओं के आधार पर दावा किया था कि आंध्र प्रदेश ने उसके अच्छी तरह से परिभाषित क्षेत्र का उल्लंघन किया।

न्यायालय ने दो दिसंबर 1968 को दोनों राज्यों को मुकदमे के निस्तारण तक यथास्थिति बनाए रखने का निर्देश दिया था।

 

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