छायावादोत्तर कवियों में अज्ञेय अत्यंत महत्वपूर्ण कवि : डॉ उदय प्रताप सिंह

-‘अज्ञेय की सृजनशीलता’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित

प्रयागराज । हिन्दुस्तानी एकेडेमी के तत्वावधान में शुक्रवार को एकेडेमी स्थित गांधी सभागार में सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ पर पर केन्द्रित ‘अज्ञेय की सृजनशीलता’ विषयक राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। एकेडेमी के अध्यक्ष डॉ. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि छायावादोत्तर कवियों में अज्ञेय जी अत्यंत महत्वपूर्ण कवि गिने जाते हैं।

उन्होंने कहा कि अज्ञेय हिन्दी के महान रचनाकारों में गिने जाते हैं। साहित्यकार का वास्तविक स्वरूप उनमें देखा जा सकता है। संघर्ष से सृजन तक उनकी कविता यात्रा का पाट फैला हुआ है। तार सप्तक के अभिनव प्रयोग द्वारा उन्होंने साहित्य सेवा का नया अनुशासन गढ़ा था। साहित्य के हर विधा में उनका लेखन उनके उर्वर सर्जना का प्रमाण है।

मध्य प्रदेश (भोपाल) से आये प्रो. आनंद कुमार ने कहा कि अज्ञेय जी कविता के शलिका पुरूष माने जाते हैं। एक सर्जक एवं चिंतक के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है। छायावादोत्तर युग में प्रतिवाद के बाद तारसप्तक (1943) के प्रकाशन से उन्होंने एक नये काव्यान्दोलन का सूत्रपात किया, जिसे ‘प्रयोगवाद’ कहा गया। आगे चलकर ‘नयी कविता’ के रूप में जो काव्यान्दोलन सभी काव्य प्रवृत्तियों में आत्मसात कर आगे बढे़ उनके नायक अज्ञेय थे। उनकी सृजनशील आधुनिकता से हिन्दी कविता ही नहीं पूरा युग ही स्पंदित हुआ।

वरिष्ठ शिक्षाविद् डॉ. डी.पी. ओझा (प्रतापगढ़) ने कहा कि अज्ञेय चालीसोत्तर हिन्दी कविता के शलाका पुरूष हैं। आपनी सृजनशीलता के कारण अज्ञेय ने हिन्दी साहित्य में अद्वितीय योगदान दिया है। सत्रह कविता संग्रह, तीन उपन्यास, छह कहानी संग्रह, दो यात्रा वृतांत एवं दर्जनों निबंधात्मक कृतियों का सृजन करके हिन्दी साहित्य की अतिशय श्रीवृद्धि की है।

रचनात्मक कृतियों के अतिरिक्त सैनिक, विशाल भारत, दिनमान, प्रतीक, नवभारत टाइम्स, एवरी मैन्स के पत्रों का सम्पादन से लेकर चारों सप्तकों या फिर प्रतीक आदि का सम्पादन कर अज्ञेय जी का सम्पादन के क्षेत्र में भी कीर्तिमान स्थापित किया है। कहा कि ‘अज्ञेय हम लेखकों की बिरादरी के सिरमौर हैं।

आर्य कन्या डिग्री कालेज की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. कल्पना वर्मा ने कहा कि छायावाद के बाद प्रयोगवाद और नयी कविता के आधार स्तम्भ के रूप में जिसका नाम लिया जाता है वह अज्ञेय ही हैं। उपन्यास, कहानी, यात्रा वृतांत से लेकर काव्य जगत तक फैला हुआ है। कभी-कभी तो अज्ञेय को बहुत दूर तक छायावादी घोषित किया गया है। लेकिन अज्ञेय की बौद्धिकता उन्हें व्यक्ति और समाज दोनों से जोड़ती है। बावरा अहेरी और नदी के द्वीप के हवाले से इसे समझा जा सकता है।

कार्यक्रम का संचालन डॉ. विनम्रसेन सिंह एवं धन्यवाद ज्ञापन एकेडेमी के सचिव देवेन्द्र प्रताप सिंह ने किया। कार्यक्रम में उपस्थित विद्वानों में डॉ यासमीन सुल्ताना नकबी, डॉ. पूर्णिमा मालवीय, एकेडेमी के कोषाध्यक्ष दुर्गेश कुमार सिंह, जय कृष्ण राय ‘तुषार’, डॉ. अनिल कुमार सिंह, डॉ. सुजीत कुमार सिंह, पीयुष कुमार मिश्र ‘पीयुष’, एम. एस. खान, विवके सत्यांशु सहित शोधार्थी एवं शहर के गणमान्य लोग उपस्थित रहे।

 

 

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