कुशीनगर हवाई अड्डे का उद्घाटन : भगवान राम के अलावा बुद्ध से भी जुड़े हैं कुशीनगर के तार
उत्तर प्रदेश का कुशीनगर अब अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर से चमक बिखेरने के लिए तैयार है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज यहां बने अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट को राष्ट्र को समर्पित करने वाले हैं। इसके साथ ही कुशीनगर फिर से भारत के मानचित्र पर अपनी छाप बिखेरने लगेगा। कुशीनगर का इतिहास न केवल बेहद पुराना है बल्कि गौरवशाली भी है। ये सत्ता, शक्ति, धर्म और आस्था का प्रतीक रहा है।
इतिहास में यदि झांकें तो पता चलता है कि ये कभी मल्ल वंश की राजधानी हुआ करता था। ये उनके 16 जनपदों में से एक था। इसका उल्लेख चीनी यात्री ह्वेनसांग और फाहियान के यात्रा वृत्तांतों में भी उल्लेख मिलता है। आज का कुशीनगर कभी कौशाला राजवंश का हिस्सा हुआ करता था। इसका जिक्र वाल्मीकि रामायण में भी किया गया है। इसके मुताबिक ये भगवान श्रीराम के पुत्र कुश की राजधानी हुआ करती थी, जिसका नाम कभी कुशावती हुआ करता था।
कुशीनगर का जिक्र महापरिनिर्वाण सुत्त में भी मिलता है। ये गौतम बुद्ध के आखिरी दिनों का वर्णन समेटे हुए हैं। इसमें बौद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए चार जगहों को बेहद पवित्र बताते हुए कहा गया है कि यहां पर उन्हें जरूर जाना चाहिए। इनमें चार जगह जो बताई गई हैं उनमें लुंबिनी (नेपाल), बिहार का बोधगया, सारनाथ और कुशीनगर है। आपको बता दें कि इन चार जगहों का बौद्ध के जीवन से सीधा संबंध रहा है। लुंबिनी में उनका जन्म हुआ था, बोधगया में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, सारनाथ में उन्होंने पहली बार उपदेश दिया था और कुशीनगर में उन्होंने अंतिम सांस ली थी।
कुशीनगर एयरपोर्ट के बन जाने के बाद कपिलवस्तु की भी अहमियत बढ़ जाएगी। साथ हीश्रावस्ती, कौशांबी और संकिसा पहुंचने में भी आसानी होगी। बता दें कि कपिलवस्तु, लुंबिनी से करीब 82 किमी दूर है। वहीं सारनाथ की बात करें तो इसकी दूरी कुशीनगर से करीब 225 किमी है। आपको यहां पर ये भी बता दें कि बौद्ध से जुड़े तीर्थ स्थलों के दर्शन के लिए म्यांमार, बैंकॉक, नेपाल, सिंगापुर, श्रीलंका, कोरिया, भूटान, जापान से काफी संख्या में पर्यटक आते हैं।
कौशावती जहां बुद्ध से पूर्व कहा जाता था वहीं कुशीनारा बुद्ध काल के बाद बताया है। कुशीनगर केवल भगवान राम और बुद्ध से ही नहीं जुड़ा है बल्कि मौर्य काल, शुंगा, कुशान, गुप्त, और पाल वंश से भी इसका गहरा नाता रहा है। भारत के पहले आर्कियोलाजिकल सर्वेयर एलेक्जेंडर कनींगघम से भी कुशीनगर का संबंध देखने को मिलता है। यहां पर ही 1876 में भगवान बुद्ध की छह फीट से ऊंची प्रतिमा भी मिली थी। 1904-07 के बीच यहां पर खुदाई में बुद्ध से जुड़ी कई चीजें भी मिली थी। 1903 में बर्मा से जब धर्म गुरु चंद्रा स्वामी यहां पर आए तो उन्होंने यहां पर महापरिनिर्वाण मंदिर का निर्माण कराया था।