लखनऊ: कपूर्री ठाकुर की 100वीं जयंती पर गोष्ठी आयोजित

द ब्लाट न्यूज़ कपूर्री ठाकुर फामूर्ला देश के शोषित,वंचित, पिछड़ों और विशेषकर अल्पसंख्यकों में पसमांदा मुसलमानों के लिए लाभकारी है।
प्रधानमंत्री ने विगत 17 जनवरी को दिल्ली में आयोजित राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में दूसरी बार अपने कार्यकतार्ओं को पसमांदा मुसलमानों को पार्टी से जोड़ने और उनसे संवाद करने पर बल दिया था। हम पसमांदा मुस्लिम समाज प्रधानमंत्री की इस फिक्रमंदी का स्वागत करते हैं।
साथ ही  प्रधानमंत्री से धारा 341/03 पर लगी धार्मिक प्रतिबंध को हटाने की मांग के साथ 1950 की स्थिति बहाल करने का अनुरोध करते हैं।
उक्त बातें पसमांदा मुस्लिम समाज के राष्ट्रीय अध्यक्ष व पूर्व मंत्री अनीस मंसूरी ने मंगलवार को लालबाग स्थित संगठन कार्यालय में कपूर्री ठाकुर की 100वीं जयंती पर आयोजित गोष्ठी को सम्बोधित करते हुए कहीं। आगे उन्होंने कहा कि बिहार के समस्तीपुर जिले के पितौझिया (कपूर्री ग्राम)  में जन्मे कपूर्री ठाकुर के जीवन संघर्ष को भी भुलाया नहीं जा सकता।
इसकी सबसे बड़ी वजह तो यही है कि कपूर्री ठाकुर की पहचान अति पिछड़ा वर्ग के बड़े नेता की बना दी गई है। छोटी-छोटी आबादी वाली विभिन्न जातियों के समूह अति पिछड़ा वर्ग में 100 से ज्यादा जातियां शामिल हैं। इसमें भले अकेले कोई जाति चुनावी गणित के लिहाज से महत्वपूर्ण नहीं हो लेकिन सामूहिक तौर पर ये 29 फीसदी का वोट बैंक बनाती हैं। कपूर्री बिहार में एक सामाजिक आंदोलन के प्रतीक रहे हैं।
दरअसल,मंडल कमीशन लागू होने से पहले कपूर्री ठाकुर बिहार की राजनीति में वहां तक पहुंचे जहां उनके जैसी पृष्ठभूमि से आने वाले व्यक्ति के लिए पहुँचना लगभग असंभव ही था। वे बिहार की राजनीति में गरीब गुरबों की सबसे बड़ी आवाज बनकर उभरे थे। 24 जनवरी-1924 को समस्तीपुर के पितौंझिया (कपूर्री ग्राम) में जन्में कपूर्री ठाकुर बिहार में एक बार उपमुख्यमंत्री, दो बार मुख्यमंत्री और दशकों तक विधायक और विरोधी दल के नेता रहे।
1952 की पहली विधानसभा में चुनाव जीतने के बाद वे बिहार विधानसभा का चुनाव कभी नहीं हारे। अपने दो कार्यकाल में कुल मिलाकर ढाई साल के मुख्यमंत्रीकाल में उन्होंने जिस तरह की छाप बिहार के समाज पर छोड़ी है,वैसा दूसरा उदाहरण नहीं दिखता। खास बात ये भी है कि वे बिहार के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री थे,जिन्होंने सामाजिक बदलावों की शुरुआत किया।

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