रामलीला महोत्सव में अयोध्या के कलाकारों द्वारा लंका दहन का किया गया मंचन…

Author:- Raj Kumar Sharma



सुल्तानपुर। भगवान श्रीराम अपनी पत्नी सीता और अपने छोटे भाई लक्ष्मण के साथ वन में जीवन व्यतीत कर रहे थे, तभी लंकापति रावण ने उनकी पत्नी सीता का हरण कर लिया। भगवान श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण माता सीता की खोज के लिए दर – दर भटक रहे थे, तब उनकी मुलाकात भगवान शिव के वानर अवतार हनुमान जी से हुई,वे प्रभु श्रीराम के सबसे बड़े भक्त थे। श्रीराम ने हनुमान जी को सीता हरण के बारे में बताया, तब वे श्रीराम और उनके भाई लक्ष्मण को किष्किन्धा के वानर राजा सुग्रीव के पास ले गए,वहाँ श्रीराम की वानर राज सुग्रीव के साथ मित्रता हो गई,सुग्रीव ने अपने भाई बालि के बारे में श्रीराम को बताया, जिसने सुग्रीव के राज्य तथा उनकी पत्नी को उनसे छीन लिया था, वह बहुत ही बलशाली था तब श्रीराम ने बालि का वध कर सुग्रीव को उनका राज्य एवं उनकी पत्नी को सम्मान सहित सौंपा, उसके बाद सुग्रीव ने श्रीराम से माता सीता को खोजने में मदद करने का वादा किया। दक्षिण दिशा में माता सीता की खोज करने के लिए बालि पुत्र अंगद, हनुमान, जामवंत भेजे गये। श्रीराम ने हनुमान को अपनी एक अंगूठी देते हुए कहा कि – हनुमान यह अंगूठी सीता को देना ,इसे देखकर सीता को विश्वास हो जायेगा और उनसे कहना कि भगवान राम जल्द ही आपको मुक्त कराने पहुँचेगें।

दक्षिण दिशा में चलते हुए सभी समुद्र के किनारे पहुंचते हैं वहीं इन सबकी मुलाकात जटायु के भाई सम्पाती से होती है,जब सम्पाती को अपने भाई की मृत्यु का समाचार माता सीता की रक्षा करते हुए रावण के हाथों हुई वह दु:खी होता है ,वह बताता है कि माता सीता अशोक वाटिका में है सभी समुद्र पार करने का उपाय सोच रहे होते हैं तभी जामवंत जी हनुमान जी को उनके बल की याद दिलाते है। इसी बीच उन्हें तीन राक्षसियों का भी सामना करना पड़ा जिन्हें रावण ने तैनात किया था, उनसे युद्ध कर उनका वध किया और वे लंका पहुँच गए.हनुमान जी लंका पहुँच कर माता सीता की तलाश करने लगे और तलाश करते – करते वे अशोक वाटिका पहुंचे, वहाँ उन्होंने देखा की माता सीता एक पेड़ के नीचे बैठी श्रीराम से मिलने के लिए दु:खी हैं, यह देख कर हनुमान जी माता सीता के पास गए और उन्हें श्रीराम के बारे में बताया,प्रभु श्रीराम के बारे में बताते हुए उन्होंने माता सीता को श्रीराम की अंगूठी दी और कहा – श्रीराम आपको यहाँ से मुक्त कराने जल्द ही आयेंगे,तब माता सीता ने अपना जुड़ामणि हनुमान जी को देते हुए कहा कि – ‘यह श्रीराम को दे देना और उनसे कहना कि उनकी सीता उनकी प्रतीक्षा कर रही है।

यह सब होने के बाद हनुमान जी ने माता सीता से कहा कि – मुझे बहुत भूख लगी है क्या मैं इस वाटिका में लगे फल खा सकता हूँ? तब माता सीता ने उन्हें आज्ञा दी,वे एक पेड़ से दूसरे पेड़ पर कूदते हुए फल खाने लगे और कुछ पेड़ गिरा दिए. यह देख कर वहाँ की देखभाल करने वाले योद्धा उनको पकड़ने के लिए भागे लेकिन हनुमान जी ने उन्हें भी नहीं छोड़ा, कुछ को मार डाला तो कुछ को घायल कर दिया, इस तरह उन्होंने पूरी अशोक वाटिका उजाड़ दी. जब यह खबर लंकापति रावण के पास पहुंची, तब उन्होंने अपने बहुत से योद्धाओं को उस वानर का वध करने के लिए भेजा,लेकिन हनुमान जी ने सभी योद्धाओं को बहुत ही आसानी से मार डाला और कुछ को घायल कर दिया, यह सब सुनते हुए रावण बहुत ही क्रोधित हुआ और उसने अपने पुत्र अक्षय कुमार को हनुमान का वध करने के लिए भेजा, किन्तु हनुमान जी ने उनके पुत्र अक्षय कुमार को भी नहीं छोड़ा और उसका वध कर दिया।


रावण अपने पुत्र के वध की सूचना सुनते हुए और भी अधिक क्रोधित हुआ और उसने अपने दूसरे पुत्र इंद्रजीत को उस वानर को जिन्दा पकड़ कर सभा में लाने का आदेश दिया।हनुमान जी ने इन्द्रजीत को देखा तो वे समझ गए कि इस बार बहुत ही भयंकर योद्धा आया है वे उनसे युद्ध करने लगे, हनुमान जी ने एक पेड़़ उखाड़ कर उनकी तरफ फेंका और वे कुछ समय के लिए बेहोश हो गए, फिर होश में आते ही उन्होंने हनुमान से युद्ध जारी रखा और अपनी कई माया रचने लगे किन्तु हनुमान सबसे बचते हुए उनसे युद्ध करते रहे,इसके बाद इन्द्रजीत ने ब्रम्हास्त्र का प्रयोग किया, तब यह देख कर हनुमान जी ने सोचा कि वे इसका सामना नहीं कर पाएंगे, तब उन्हें ब्रम्हास्त्र लगते ही वे पेड़ से नीचे गिर गए, इन्द्रजीत ने हनुमान को नागपाश शक्ति से बांध दिया और सभा में ले गए।हनुमान को सभा में लाने के बाद उनकी मुलाकात रावण से हुई,रावण को देखकर हनुमान ने उसे बहुत ही अपशब्द कहें और वे हँस पड़े। यह देखकर रावण को गुस्सा आया और उसने हनुमान से कहा कि – तुम कौन हो, तुम्हेँ अपनी मृत्यु से डर नहीं लगता और तुझे यहाँ किसने भेजा है? तब हनुमान जी ने उससे कहा मुझे उन्होंने भेजा है, जो इस सृष्टि के पालन कर्ता हैं, जिन्होंने शिवजी के महान धनुष को तोड़ा, जिन्होंने बालि जैसे महान योद्धा का वध किया और जिनकी पत्नी का तुमने छल पूर्वक हरण किया है। हनुमान जी ने रावण से कहा कि तुम प्रभु श्रीराम से क्षमा मांग लो, उनकी पत्नी माता सीता को सम्मान के साथ वापस कर दो और लंका पर शांति से राज्य करो, यह सुनकर रावण हंसने लगा और कहने लगा कि – यह वानर तो बहुत ज्ञान की बातें करता है और उसने हनुमान से कहा कि – वानर तुम्हारी मृत्यु निकट आ रही है,हनुमान जी ने रावण से कहा कि – मेरी नहीं तुम्हारी मृत्यु निकट आ गयी हैं,
यह सुनकर रावण क्रोधित हुआ और उसने अपने योद्धाओं को हनुमान का वध करने का आदेश दिया और सभी उठ खड़े हुए।
रावण के भाई विभीषण ने उन्हें रोकते हुए रावण से कहा कि – यह दूत है और किसी दूत को सभा में मार डालना नियमों के खिलाफ है, रावण ने उन्हें रोका और सभी से पूछा कि इसे क्या सजा दी जाये,उनमें से एक योद्धा में कहा कि – वानरों को अपनी पूँछ बहुत प्यारी होता है क्यों ना इसकी पूँछ में कपड़ा लपेट कर तेल डालकर आग लगा दी जाए,रावण ने हनुमान की पूँछ पर आग लगाने का आदेश दिया। हनुमान की पूँछ पर कपड़ा लपेटा जाने लगा किन्तु उनकी पूँछ लम्बी होती चली गई, राज्य का सारा तेल और कपड़ा उनकी पूँछ में ही लग गया,फिर जैसे तैसे उनकी पूँछ में आग लगा दी और उन्हें छोड़ दिया। हनुमान जी की पूँछ में आग लगते ही उन्होंने एक महल से दूसरे महल कूदते हुए पूरी लंका में आग लगा दी,सिर्फ एक विभीषण का महल छोड़ कर उन्होंने पूरी लंका को जला डाला,जिससे पूरा नगर जल कर राख हो गया, फिर उन्होंने समुद्र में जा अपनी पूँछ की आग बुझाई और वापस लौट गए।कुशभवनपुर में चल रही ऐतिहासिक रामलीला महोत्सव के आज लंका दहन के अवसर पर 11 वे दिन श्री हरि ब्रत मिश्र ने बताया कि संत तुलसीदास उच्चतर माध्यमिक विद्यालय रामलीला मैदान में मुख्य अतिथि के रूप में सदर विधायक राज बाबू उपाध्याय, पुलिस अधीक्षक सोमेन वर्मा, रूपेश सिंह, सौरभ त्रिपाठी, संदीप पाठक,दिनेश चौरसिया, सतीश त्रिपाठी प्रधानाचार्य, अजित उपाध्याय,रिपु दमन सिंह, रमाशंकर विश्वकर्मा आदि संभ्रांत जन की उपस्थिति में भगवान का पूजन व आरती कर के आज के कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया।

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