द ब्लाट न्यूज़ । उत्तराखंड में भू-कानून के अध्ययन और परीक्षण के लिए गठित समिति ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी को सौंप दी।
रिपोर्ट में नदी-नालों तथा सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमणकारियों के खिलाफ कठोर दंड का प्रावधान करने, कुछ बडे़ कामों को छोडकर अन्य के लिए भूमि क्रय के स्थान पर लीज पर देने, परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेखों से जोड़ने जैसी सिफारिशें की गयी हैं।
पूर्व मुख्य सचिव सुभाष कुमार की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय समिति ने प्रदेश हित में निवेश की संभावनाओं और भूमि के अनियंत्रित क्रय-विक्रय के बीच संतुलन स्थापित करते हुए भू-कानून में संशोधन के लिए 23 संस्तुतियां की हैं।
इस मौके पर धामी ने कहा कि सरकार शीघ्र ही समिति की रिपोर्ट का गहन अध्ययन कर व्यापक जनहित व प्रदेश हित में भू-कानून में संशोधन करेगी।
गौरतलब है कि जुलाई 2021 में प्रदेश का मुख्यमंत्री पद संभालने के बाद धामी ने भू कानून के अध्ययन के लिए उच्चस्तरीय समिति का गठन किया था।
बद्रीनाथ- केदारनाथ मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय, पूर्व आईएएस अधिकारी अरुण ढौंडियाल व डी.एस.गर्व्याल के अलावा समिति में पदेन सदस्य सचिव के रूप में हाल तक सचिव राजस्व का कार्यभार संभाल रहे दीपेंद्र कुमार चौधरी बतौर सदस्य शामिल थे।
राज्य के हितधारकों, विभिन्न संगठनों, संस्थाओं से सुझाव आमंत्रित कर गहन विचार-विमर्श करने के बाद लगभग 80 पृष्ठों की अपनी रिपोर्ट तैयार करने के लिए समिति ने सभी जिलाधिकारियों से प्रदेश में अब तक भूमि क्रय के लिए दी गयी स्वीकृतियों के विवरण मांगे थे और उनका परीक्षण किया।
समिति ने नदी-नालों, वन क्षेत्रों, चारागाहों या अन्य सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण कर अवैध कब्जे, निर्माण या धार्मिक स्थल बनाने वालों के विरुद्ध कठोर दंड के साथ ही संबंधित विभागों के अधिकारियों के विरुद्ध भी कार्रवाई के प्रावधान की सिफारिश की है।
समिति ने कहा है कि ऐसे अवैध कब्जों के विरुद्ध प्रदेशव्यापी अभियान चलाया जाए।
समिति ने कृषि या औद्येानिक प्रयोजन हेतु खरीदी गयी कृषि भूमि के कुछ प्रकरणों में दुरूपयोग के मद्देनजर इसकी अनुमति जिलाधिकारी के स्तर से हटाकर शासन स्तर से दिए जाने की संस्तुति की है। इसी प्रकार, वर्तमान में सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम श्रेणी के उद्योगों हेतु भूमि क्रय करने की अनुमति भी जिलाधिकारी स्तर से हटाकर शासन स्तर पर ही दिए जाने की सिफारिश की गयी है।
वर्तमान में राज्य सरकार द्वारा पर्वतीय एवं मैदानी क्षेत्रों में औद्योगिक प्रयोजनों, आयुष, शिक्षा, स्वास्थ्य एवं चिकित्सा शिक्षा, उद्यान, पर्यटन एवं कृषि के लिए 12.05 एकड़ से ज्यादा भूमि आवेदक को देने की व्यवस्था को समाप्त करते हुए इसे हिमाचल प्रदेश की भांति न्यूनतम भूमि आवश्यकता के आधार पर दिए जाने की सिफारिश की गयी है।
समिति ने अपनी सिफारिश में कहा है कि बड़े उद्योगों के अतिरिक्त केवल चार या पांच सितारा होटल/ रिसॉर्ट, मल्टी स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, वोकेशनल/प्रोफेशनल इंस्टीट्यूट को ही भूमि क्रय करने की अनुमति दी जाए जबकि अन्य प्रयोजनों हेतु लीज पर ही भूमि उपलब्ध कराने की व्यवस्था की जाए।
उत्तराखंड में मौजूदा समय में कोई व्यक्ति स्वयं या अपने परिवार के किसी भी सदस्य के नाम बिना अनुमति के अपने जीवनकाल में अधिकतम 250 वर्ग मीटर भूमि आवासीय प्रयोजन हेतु खरीद सकता है। समिति ने सिफारिश की है कि परिवार के सभी सदस्यों के नाम से अलग-अलग भूमि खरीद पर रोक लगाने के लिए परिवार के सभी सदस्यों के आधार कार्ड राजस्व अभिलेखों से जोड़ दिए जए।
रिपोर्ट में भूमि, जिस प्रयोजन के लिए क्रय की गई, उसका उललंघन रोकने के लिए जिला/ मंडल/ शासन स्तर पर एक कार्य बल बनाने की अनुशंसा की गयी है ताकि ऐसी भूमि को राज्य सरकार में निहित किया जा सके।
संस्तुति में कहा गया है सरकारी विभाग अपनी खाली पड़ी भूमि पर साइनबोर्ड लगाएं।
सिफारिशों में कहा गया है कि विभिन्न प्रयोजनों हेतु खरीदी जाने वाली भूमि पर समूह ग व समूह घ श्रेणियों में स्थानीय लोगो को 70 प्रतिशत रोजगार आरक्षण सुनिश्चित हो तथा उच्चतर पदों पर उन्हें योग्यतानुसार वरीयता दी जाए।
वर्तमान में भूमि क्रय करने के पश्चात भूमि का सदुपयोग करने के लिए दो वर्ष की अवधि निर्धारित है और राज्य सरकार अपने विवेक के अनुसार इसे बढ़ा सकती है। इसमें संशोधन की सिफारिश करते हुए समिति ने इसे विशेष परिस्थितयों में एक वर्ष बढाकर अधिकतम तीन वर्ष करने को कहा है।
पारदर्शिता हेतु क्रय- विक्रय, भूमि हस्तांतरण एवं स्वामित्व संबंधी समस्त प्रक्रिया को ऑनलाइन करने तथा वेबसाइट के माध्यम से संबंधित जानकारी सार्वजनिक मंच पर रखने की संस्तुति भी की गयी है।
समिति ने सिफारिश की है कि प्राथमिकता के आधार पर ‘सिडकुल’ तथा अन्य औद्योगिक आस्थानों में खाली पड़े औद्योगिक भूखंड तथा बंद पड़ी फैक्ट्रियों की भूमि का आवंटन औद्योगिक प्रयोजन हेतु किया जाए।
प्रदेश में बन्दोबस्त की प्रक्रिया को दोबारा शुरू करने की सिफारिश की गयी है तथा कहा गया है कि धार्मिक प्रयोजन हेतु कोई भूमि क्रय या निर्माण किया जाता है, तो अनिवार्य रूप से जिलाधिकारी की रिपोर्ट के आधार पर शासन स्तर से निर्णय लिया जाए।