यह कटु सत्य है कि मरणोत्तर जीवन की अनुभूतियां संस्कारों के प्रभाव की ही प्रतिच्छाया होती हैं, इसलिए जिससे आत्मीयता का संस्कार अंकित हो उसकी भावनाओं पर लोकस्थ जीव प्रभावित होते हैं। कहा भी गया है कि मुक्त आत्माओं एवं पितरों के प्रति मनुष्य को वैसा ही श्रद्धाभाव रखना चाहिए …
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