कैसरगंज सीट से भाजपा के दांव से बड़े बड़ों के उड़े होश

UP : कयासबाजी… करामात और कद…। इन तीन शब्दों से कैसरगंज संसदीय क्षेत्र की अपनी खास पहचान है। अलबत्ता इस बार यहां सस्पेंस खत्म नहीं हो रहा है। राजनीतिक चक्रव्यूह में घिरे सियासी अखाड़े में हर पल रोमांच बढ़ता जा रहा है। सोमवार को चौंकाने के चस्के में रहे लोगों को हाथ मलते ही रहना पड़ा, वहीं लड़ाकों के दरबार के सन्नाटे ने भी नया सियासी संदेश देने की कोशिश की है।
मंगलवार को भी जितने मुंह उतनी बातें सुनने को मिलीं। फिलहाल पार्टियों की ओर से मंथन के सिवाय कोई संकेत मिलते नहीं दिखा। कैसरगंज संसदीय क्षेत्र में जो भी हालात हैं, वह भाजपा के दांव से ही बने हैं। भाजपा ने जिस कदर सांसें रोक रखी हैं, उससे बड़े -बड़ों के होश उड़े हुए हैं। पार्टी के अंदरखाने क्या चल रहा है, यह कौतुहल का विषय बना है।

दूसरे दलों के नेताओं की निगाहें जरूर टिकी हैं कि भाजपा की अगली चाल क्या होगी? लेकिन वह भी सटीक खबर से बेखबर हैं। सपा को तो पुराने दांव की उम्मीद है। यही कारण है कि उसने रण में मोर्चेबंदी तक शुरू कर दी है। यह अलग बात है कि दल से जुड़े तीन स्थानीय नेताओं और एक बाहरी संभावित दावेदार ने नामांकन पत्र भी ले लिया है। अलबत्ता नामांकन में सभी के कदम डगमगा रहे हैं।
कैसरगंज से बसपा के एक नेता ने भी नामांकन पत्र लेकर चौंकाने की कोशिश की है, जिसके कई निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं, जबकि भाजपा की ओर से सभी की निगाहें दिल्ली की सूची व हाईकमान से मिलने वाले निर्देश पर टिकी हैं।
इसके साथ ही सपा व बसपा ने अब सतर्कता भी बरतनी शुरू कर दी है, ताकि इंदौर और सूरत जैसे हालात न पैदा हो सकें। एहतियातन एक ही नहीं कई नेताओं से पर्चे भरवाने की तैयारी में ये दल मैदान साधने में जुटे हैं।

थमा रहा दाबमदाब का शोर, इंतजार करती रही सेना
चुनावी अभियान को धार देने के लिए मंगलवार से दिग्गज के दाबमदाब के ऐलान का असर नहीं दिखा। शोर थमा रहा, जबकि सियासी रण में सेना इंतजार कर रही। माना जा रहा है कि कुछ ऐसा हुआ, जिससे अचानक से सन्नाटा छा गया। कैसरगंज संसदीय क्षेत्र में वैसे भी किसी अन्य दावेदार की कोई दौड़ नहीं थी।
हैट्रिक के फेर में चल रहे अभियान से कुछ तो सियासी महौल बना था, जो फिर एक बार ठंडा होते दिखा, खैर माना जा रहा है कि बुधवार को एक बार फिर कैसरगंज के मैदान में जोर का शोर मचेगा। इसका भी इंतजार शुरू हो गया है। करनैलगंज के मनोज कहते हैं कि इसके सिवा और किया ही क्या जा सकता है? सब मौन हैं तो मतदाता भी चुप्पी साधे हैं। देखते हैं कि खेल होता है कि खेल बिगड़ता है।

पहुंच से दूर होती जा रही पकड़
मैदान लंबा है और समय कम। तीन मई तक नामांकन और 20 मई को मतदान। हर दिन समय घटता जा रहा है और मतदाताओं को साधने का दायरा भी सिमटता जा रहा है। इससे रणबांकुरों की धड़कनें तेज होती जा रही हैं। प्रचार- प्रसार का समय 15 दिन ही मिल सकेगा, ऐसे में वह क्या गुल खिला पाएंगे, इसका भी सवाल दावेदारों के जेहन में बार- बार उठ रहा है।
सपा से पर्चा लेने वाले एक नेता ने कहा कि देरी हो रही है, ऐसे में हर गांव में पहुंच पाना अब असंभव सा है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि समय बहुत ही कम बचा है। मजबूती के लिए दिन-रात एक करनी पड़ेगी। खैर इन सवालों से तीनों दल बेफिक्र हैं।

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