हमारा नारी उत्थान का लक्ष्य एकांगी नहीं है, अपितु जब हम नारी की बात करते हैं, उनकी मर्यादाओं की बात करते हैं, तो इसका अर्थ पुरुष वर्ग द्वारा मर्यादाओं को अपने जीवन में सशक्त दृष्टि से उतारने पर जोर देना भी है। उदाहरणार्थ पतिव्रत धर्म की बात लें तो पतिव्रत धर्म की ही तरह पत्नीव्रत का महत्व और महात्म्य प्रतिपादित करने से है। हमारी प्राचीन संस्कृति कि पतिव्रत धर्म पालन करने से नारी को जो पुण्य और आध्यात्मिक लाभ मिल सकते हैं, वे सभी लाभ पुरुष को भी पत्नीव्रत धारण करने से मिलेंगे, यह मान्यता हमें गहराई से जन-जीवन में प्रतिष्ठित करना है।
क्योंकि परिवार सुदृढ़ता एवं दिव्यता देने के लिए अग्नि देवता को साक्षी देकर जिस पत्नी को अपनाया गया है उसे अर्धांगिनी मानकर आजीवन निवाहना ही पतिधर्म है, भले उसमें कमियां हों। पर लोगों ने आधी बात याद कर ली और आधी भूल गये। आज पतिव्रत धर्म की महिमा तो गाई जाती है, पर पत्नीव्रत को दबा दिया गया। हमारी सामाजिक क्रांति का मूल यह है कि परिवार को स्वर्ग बनाने वाले इन दोनों आधारों पतिव्रत और पत्नीव्रत को बिलकुल समान माना जाय और दोनों के लिए एक ही स्तर निर्धारित किया जाय।