लाल सागर : नौवहन में बाधा घातक

डॉ. सुरेन्द्र कुमार मिश्रा
यमन में हूती समुद्री लूटेरों से संबद्ध संघर्ष में निरंतर होती वृद्धि और लाल सागर में व्यावसायिक जलयानों पर जारी हमले बड़ी चुनौती के रूप में उभरे हैं।
अदन की खाड़ी में हूती विद्रोहियों ने 17 मार्च, 2024 के रोज एक और जलयान को निशाना बनाकर कथित रूप से हमला किया। हूती आतंकवादी इजराइल का समर्थन करने के लिए अमेरिका तथा ब्रिटेन को विशेष रूप से अपना विद्रोह प्रदर्शित करके इस क्षेत्र में घातक हमले कर रहे हैं।
यमन में हूती विद्रोहियों की तेजी के साथ बढ़ती आक्रामक गतिविधियों ने न केवल अपने विरोधियों को ही प्रभावित किया है, बल्कि लाल सागर के इस संकट से इस क्षेत्र से होने वाला समुद्री व्यापार भी बाधित हो रहा है। मालवाहक जलयानों का इस क्षेत्र से आवागमन बाधित हुआ है, वहीं वैल्पिक मार्ग का इस्तेमाल कर रहे दुनिया भर के देशों के मालवाहक जलपोत लंबी दूरी तय करके आवाजाही कर रहे हैं, जिससे उनकी लागत में इजाफा हो रहा है। उल्लेखनीय है कि अदन दक्षिणी यमन का बंदरगाह शहर है, जहां देश की निर्वासित सरकार है। हूती विद्रोहियों ने इसी इलाके पर अनेक बार ड्रोन और मिसाइलों से हमले किए हैं। परिणामस्वरूप अदन की खाड़ी से ईधन और अन्य मालवाहक जलयानों की आवाजाही बाधित हुई है। हूती विद्रोहियों का कहना है कि वे इजराइल को हमास के खिलाफ गाजा पट्टी में अपना आक्रमण बंद करने के लिए मजबूर करना चाहते हैं। लाल सागर में हूती विद्रोहियों के आक्रमण से वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की समस्या उत्पन्न हो गई है।
जलयान कंपनियां परेशान तथा डरी हुई हैं क्योंकि लंबा जलमार्ग अपनाने से उनका समय एवं लागत, दोनों बढ़ जाते हैं, जिसका प्रत्यक्ष और परोक्ष प्रभाव आयात-निर्यात पण्राली पर पड़ेगा। ये हमले वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए भी बड़ी और कड़ी चुनौती बन चुके हैं। अमेरिका से मिली एक जानकारी के अनुसार 23 दिसम्बर, 2023 को हूती विद्रोहियों ने लाल सागर से इजराइल जाने वाले सभी देशों के जलपोतों पर हमला करने की चेतावनी दी थी। लाल सागर क्षेत्र में अंतरराष्ट्रीय शिपिंग के रास्तों पर दो एंटीबैलेस्टिक मिसाइलें भी फायर करके इजराइल समर्थक देशों को आगाह किया था। सामरिक, आर्थिक, व्यापारिक और  कूटनीतिक दृष्टि से लाल सागर विश्व भर के सबसे संवेदनशील एवं महत्त्वपूर्ण समुद्री मागरे में गिना जाता है। स्वेज नहर भू-मध्य सागर को लाल सागर से जोड़ती है। स्वेज नहर से प्रति वर्ष 17000 से ज्यादा जलपोत अपना आवागमन करते हैं।
एक जानकारी के मुताबिक, लाल सागर से लगभग 12 प्रतिशत वार्षिक वैश्विक व्यापार किया जाता है। यदि हम भारत की बात करें तो हमारे देश का 200 अरब अमेरिकी डॉलर से ज्यादा का व्यापार स्वेज नहर और लाल सागर के रास्ते से होता है। लाल सागर जल-डमरू वैश्विक कंटेनर यातायात के 30 प्रतिशत और वैश्विक व्यापार के 12 प्रतिशत के लिए विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है। यूरोप के साथ भारत की लगभग 80 प्रतिशत वस्तुओं का व्यापार भी इसी मार्ग से होता है। इसी समुद्री मार्ग से भारत अपना 50 प्रतिशत निर्यात और 30 प्रतिशत आयात करता रहा है। वास्तव में लाल सागर में नौवहन की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की सामयिक आवश्यकता है।
अदन की खाड़ी में हूती विद्रोहियों ने इसी माह एक और जलयान को निशाना बनाकर जोरदार हमला कर दिया। ब्रिटिश सेना के ‘यूनाइटेड किंग्डम मैरीटाइम ट्रेड आपरेशंसÓ केंद्र ने इस बारे में बताया कि वास्तव में आकस्मिक हमला अदन के अपतटीय क्षेत्र में हुआ। अमेरिकी सेना की मध्य कमान के अनुसार यमन में हूती के नियंत्रण वाले क्षेत्र में पांच ड्रोन नौका और एक ड्रोन को तबाह कर दिया गया है। यह अभी तक नष्ट की जाने वाली ड्रोन नौकाओं की सबसे अधिक संख्या है जो असामान्य है। भारतीय नौसेना अरब सागर के विभिन्न क्षेत्रों में समुद्री सुरक्षा को सुदृढ़ बनाने के लिए अनेक अपने युद्धपोत तैनात किए हुए है।

समुद्री टोह लेने के लिए विमानों की भी तैनाती कर दी गई है। भारतीय तट से लगभग 1400 समुद्री मील (लगभग 2600 किलोमीटर) दूर लगातार लगभग 40 घंटे तक चलाए गए अपने अभियान के दौरान उसने न केवल माल्टीज ध्वज वाले अपहृत व्यापारिक जलयान एम. वी. रूएन के चालक दल के 17 सदस्यों को सुरक्षित रिहा कराया, बल्कि 35 सोमालियाई समुद्री लुटेरों को भी आत्मसमर्पण के लिए बाध्य कर दिया। इस अभियान में भारतीय वायु सेना ने भी सक्रिय भूमिका निभाई जिसने सी-17 एयरक्राफ्ट के जरिए मार्कोस (विशेष समुद्री कमांडो) को एम. वी. रूएन पर एयर ड्राप करवाया। इस एयर क्राफ्ट के सक्रिय सहयोग से दो लड़ाकू नौकाओं को भी उनके सटीक स्थान तक पहुंचाया। भारतीय नौसेना ने अनेक विदेशी जलयानों की सुरक्षा में भी सहयोग दिया है और उन्हें हूती विद्रोहियों के कब्जे से छुड़वाया है।
उल्लेखनीय है कि जलयान एमवी रूएन का विगत वर्ष 14 दिसम्बर को सोमालिया के समुद्री डकैतों द्वारा अपहरण कर लिया गया था। भारतीय नौसेना ने मजबूत कूटयोजना के साथ समर तंत्र अपना कर यह अभियान सफलता के साथ पूरा किया। बुल्गारिया की विदेश मंत्री मारिया ग्रेब्रियल ने अपहृत जलयान और उसके  सात नागरिकों सहित चालक दल के सदस्यों को सुरक्षित बचाने के लिए भारतीय नौसेना का आभार व्यक्त किया। इसके प्रतिउत्तर में भारत के विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा-‘दोस्त इसी के लिए होते हैं।Ó वास्तव में यह जलपोत लगभग 10 लाख अमेरिकी डॉलर की कीमत वाला तथा करीब 37800 टन माल ले जाने की क्षमता से युक्त है। इस अभियान में भारतीय नौसेना के युद्धपोत आईएनएस कोलकाता की विशेष भूमिका रही क्योंकि उसने एम. वी. रूएन जलपोत के स्टीयरिंग सिस्टम और नेवीगेशनल सहायता व्यवस्था को अक्षम बना दिया था।
नि:संदेह लाल सागर में हूती विद्रोहियों की घातक गतिविधियों के कारण जहां इस क्षेत्र से होकर की जाने वाली तेल आपूर्ति में व्यवधान पड़ा है, वहीं विदेश व्यापार भी प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से प्रभावित हुआ है। इस संकट से उभरने के लिए लाल सागर में सभी प्रकार के जलपोतों की स्वतंत्रता सुनिश्चित करने की सामूहिक और सामयिक जरूरत है। आसपास के समुद्री मागरे की सुरक्षा के लिए सभी देशों को समय रहते सजग, सतर्क और सशक्त बनाना होगा ताकि आर्थिक और व्यापारिक विरोधी गतिविधियों पर समय रहते सही ढंग से लगाम लगाई जा सके।

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