मुश्किल में एमएमसीजी क्षेत्र

हिंदुस्तान लीवर से लेकर आईटीसी, मेरिको, बजाज कंज्यूमर केयर और ज्योति लैब्स तक को अगले सितंबर तक बिक्री बढऩे की संभावना नजर नहीं आ रही है। इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के नतीजों ने इन कंपनियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है।
आम उपभोग के सामान बनाने वाली (एफएमसीजी) लगभग सभी कंपनियां इस निष्कर्ष पर हैं कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बदहाली के कारण फिलहाल उनके कारोबार की संभावनाएं मद्धम हैं। हिंदुस्तान लीवर से लेकर आईटीसी, मेरिको, बजाज कंज्यूमर केयर और ज्योति लैब्स तक को अगले सितंबर तक बिक्री बढऩे की संभावना नजर नहीं आ रही है। इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही (सितंबर-दिसंबर) के नतीजों ने इन कंपनियों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। तेल, साबुन, सैंपू, टूथपेस्ट आदि जैसी रोजमर्रा की उपभोग वस्तुएं बनाने वाली इन कंपनियों का आधे से ज्यादा बाजार ग्रामीण इलाकों में है।
इसलिए जब ग्रामीण अर्थव्यवस्था चमकती है, तो इन कंपनियों का कारोबार भी चमकता है। वैसे शहरों में भी औसत आबादी की आमदनी का स्तर वैसा नहीं है, जो ग्रामीण बिक्री में गिरावट की भरपाई कर सके। तो इन कंपनियों की मुसीबत में जिस बात पर बार-बार रोशनी पड़ती है, वह ग्रामीण उपभोग का स्तर है। एमएमसीजी कंपनियों का आकलन है कि महंगाई, फसल बिक्री संबंधी समस्याओं और असामान्य मौसम ने वास्तविक ग्रामीण आमदनी में सेंध लगा रखी है।
हालात गंभीर बनाने में काफी हाथ सरकारी नीतियों का है। हम प्याज के बाजार के ताजा हाल पर गौर करें, तो इस परिस्थिति को बेहतर ढंग से समझ सकते हैं। प्याज के दाम बढऩे के कारण सरकार ने 31 मार्च तक उसके निर्यात पर रोक लगा दी थी। इसके बावजूद बाजार में फिर से प्याज की कीमतें 33 प्रतिशत बढऩे की खबर आई है। इसे देखते हुए (अखबारी रिपोर्टों के मुताबिक) सरकार निर्यात पर रोक कम-से-कम तीन महीने और बढ़ाने जा रही है।
इस तरह महंगाई के समय विश्व बाजार से ऊंची कीमत मिलने का जो फायदा ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मिलता, उससे उसे वंचित कर दिया गया है। ऐसा अक्सर अलग-अलग फसलों के साथ होता रहता है। सरकार की चिंता शहरी उपभोक्ताओं को लेकर रहती है। उसकी कीमत कृषि अर्थव्यवस्था से जुड़े लोग चुकाते हैं। इन दोनों हितों में कैसे तालमेल बने, इस दिशा में उचित प्रयास सरकार की तरफ से नहीं किए गए हैँ। नतीजतन, गांवों में मंदी है और उसका साया एफएमसीजी कारोबार पर भी पड़ रहा है।

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