बिहार में जाति आधारित सर्वे में इन जातियों के आंकड़े ने चौंकाया…

जाति आधारित सर्वे के डेटा पर बिहार में सियासी घमासान शुरू हो गया है. सर्वदलीय बैठक में बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ने सर्वे के मैकेनिज्म पर सवाल उठाया है. सिन्हा ने कहा कि सर्वे की रिपोर्ट में पारदर्शिता जरूरी है. पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने भी सर्वे के आंकड़ों पर सवाल उठाया है. मांझी ने कहा कि सरकार की गलती की वजह से कई जातियों की संख्या में कमी आ गई है.

बिहार में सोमवार (2 अक्टूबर) को जाति आधारित सर्वे का डेटा जारी किया गया था. नीतीश कुमार ने इसके बाद सर्वदलीय बैठक बुलाई थी. मीटिंग में गहमागहमी को देखते हुए नीतीश कुमार ने अधिकारियों से इसमें सुधार करने के लिए कहा.

जानकारों का कहना है कि बिहार में कम से कम 5 ऐसी जातियां है, जिसके आंकड़े चौंकाने वाले हैं. इनमें भूमिहार, कायस्थ, शेख, बनिया और किन्नर प्रमुख रूप से शामिल है. बनिया समुदाय के नेताओं ने फिर से सर्वे कराने की मांग की है.

इन जातियों के आंकड़े आने के बाद बिहार का सियासी समीकरण 360 डिग्री का यूटर्न ले सकता है. ऐसे में आइए इस स्टोरी में इन्हीं 5 जातियों के बारे में विस्तार से जानते हैं…

1. भूमिहार- सबसे अधिक झटका भूमिहार बिरादरी के नेताओं को लगा है. अब तक भूमिहार जाति के नेता बिहार में खुद को 6 प्रतिशत के आसपास बताते थे, लेकिन हालिया रिपोर्ट में यह संख्या दावे का 50 प्रतिशत भी नहीं है.

जातीय सर्वे के मुताबिक बिहार में भूमिहारों की आबादी 2.85 प्रतिशत है. 1931 सर्वे में बिहार में भूमिहारों की आबादी करीब 3.6 प्रतिशत के आसपास था.

बिहार की सियासत में भूमिहार नेताओं का काफी दबदबा है. वर्तमान में विधानसभा में भूमिहार बिरादरी के 21 विधायक हैं. बिहार में विधानसभा सीटों की संख्या 243 है. इस हिसाब से देखा जाए तो करीब 9 प्रतिशत सीटों पर भूमिहारों का कब्जा है.

3 भूमिहार बिहार से लोकसभा सांसद हैं. इनमें बेगुसराय से गिरिराज सिंह, मुंगेर से लल्लन सिंह और नवादा से सांसद चंदन सिंह का नाम शामिल हैं. बिहार में लोकसभा की कुल 40 सीटें हैं.

बिहार के नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा भी भूमिहार बिरादरी से आते हैं. इसके अलावा जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष, कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भी भूमिहार समुदाय से हैं. नीतीश कैबिनेट में भूमिहार बिरादरी के विजय चौधरी मंत्री हैं.

आंकड़े आने के बाद बिहार में भूमिहारों के सियासी रसूख कम होने की बात कही जा रही है. बिहार में बेगुसराय, मुंगेर, नवादा और जहानाबाद में भूमिहारों का दबदबा है.

2. शेख- भारतीय मुसलमानों में शेखों की गिनती सवर्ण समुदाय में होती है. बिहार के मुसलमानों में यह आम धारणा थी कि राज्य में अंसारी की तुलना में शेख कम हैं. पसमांदा समाज के कई नेता भी गाहे-बगाहे इसका जिक्र करते रहते थे.

हालांकि, सर्वे रिपोर्ट ने सभी मिथकों को तोड़ दिया है. बिहार में शेख मुसलमानों की संख्या 3.8217 प्रतिशत है. यह मुसलमानों की कुल आबादी का 22 प्रतिशत है. बिहार में अंसारी मुसलमानों की संख्या 3.545 प्रतिशत है. अंसारी समुदाय पिछड़े वर्ग की कैटेगरी में शामिल है.

सवर्ण की सभी जातियों में शेख की आबादी सबसे ज्यादा है. बिहार में सवर्ण समुदाय की आबादी 15 प्रतिशत से अधिक है. इसमें शेख 3.86%, ब्राह्मण 3.66%, राजपूत 3.45% प्रमुख रूप से शामिल हैं.

पसमांदा राजनीति की वजह से शांत पड़े शेख समुदाय के नेता अब फिर से सक्रिय हो सकते हैं. सीमांचल और मिथिलांचल में शेख मुसलमानों की तादात अधिक है, जहां लोकसभा की करीब 15 सीटें हैं.

खासकर दरभंगा, मधुबनी, अररिया, कटिहार और किशनगंज में शेख मुसलमान सियासी रूप से काफी मजबूत माने जाते हैं.

3. बनिया- जातीय सर्वे में बनिया के आंकड़े ने भी सियासी जानकारों को चौंका दिया है. रिपोर्ट के मुताबिक बिहार में बनिया की आबादी 2.32 प्रतिशत है. 1931 के जनगणना की मानें तो बनिया की आबादी बिहार में करीब 0.6 प्रतिशत था.

बिहार में बनिया जाति से आने वाले नेताओं का दावा खुद के 8 प्रतिशत होने का रहा है. समुदाय से आने वाले बीजेपी विधायक पवन जायसवाल ने विरोध करते हुए कहा है कि जरूरत पड़ी तो कोर्ट जाएंगे.

जायसवाल के मुताबित बिहार में जानबूझकर हमारे समुदाय के आंकड़ों में कमी कर दी गई है. उन्होंने आरोप लगाया कि राजनीतिक लाभ लेने के लिए महागठबंधन की सरकार ने यह खेल किया है.

बिहार की सियासत में बनिया समुदाय का काफी रसूख है. वर्तमान में समुदाय के (उपजातियों को जोड़कर) करीब 20 विधायक हैं. बनिया समुदाय को बीजेपी का कोर वोटर्स माना जाता है.

संपूर्ण वैश्य समाज बिहार के प्रदेश उपाध्यक्ष दिगंबर मंडल के मुताबिक वैश्य या बनिया जाति में कुल 56 उप जातियां आती है, लेकिन बिहार सरकार ने कई जातियों को अलग अलग करके जनगणना प्रकाशित किया है.

मंडल के मुताबिक बिहार में सबसे ज्यादा जनसंख्या वैश्य वर्ग का है, लेकिन सियासी वजहों से बिहार सरकार यह आंकड़ा छुपाना चाहती है, ताकि वैश्य समाज के अधिकारों से वंचित किया जा सके.

वैश्य समुदाय के नेताओं के मुताबिक 56 उपजातियों में तेली, हलवाई-कानू, लहेरी, कसेरा, महुरी, जायसवाल, माड़वाड़ी, सूढ़ी, वर्णवाल, पोद्दार, सोनार, केसरी, ठठेरा आदि शामिल हैं.

4. कायस्थ- जाति आधारित सर्वे में सबसे चौंकाने वाला आंकड़ा कायस्थों की है. रिपोर्ट के मुताबिक कायस्थ समुदाय की आबादी 7 लाख 85 हजार 771 (0.6%) है. 1931 के जातीय जनगणना में कायस्थों की आबादी 1.2 प्रतिशत के आसपास था.

इससे इतर आबादी को लेकर कायस्थ समुदाय के नेताओं का दावा करीब 4 प्रतिशत तक का था. कायस्थ समुदाय के नेताओं का दावा रहा है कि बिहार के लगभग दो दर्जन क्षेत्रों उनके बल पर किसी भी दल का उम्मीदवार जीत-हार सकता है.

हालांकि, रिपोर्ट आने के बाद सियासी चर्चाओं की दिशा ही बदल गई है. 0.6 प्रतिशत वाले कायस्थ समुदाय के लोगों का सियासी दबदबा अभी भी बरकरार है. वर्तमान में विधानसभा में 3 कायस्थ विधायक हैं. विधानसभा में उनका हिस्सेदारी 1.23 फीसदी है.

बिहार में कायस्थ समुदाय से आने वाले रविशंकर प्रसाद लोकसभा के सांसद हैं. कायस्थ समुदाय से आने वाले पवन वर्मा और आरके सिन्हा पूर्व राज्यसभा के सांसद हैं. बिहार में कायस्थ समुदाय से कृष्णवल्लभ सहाय और महामाया प्रसाद सिन्हा मुख्यमंत्री रह चुके हैं.

इसके अलावा शत्रघ्न सिन्हा भी राजनीति में हैं. बिहार से हारने के बाद सिन्हा बंगाल के आसनसोल से लोकसभा के सांसद हैं.

5. किन्नर- जातीय सर्वे के डेटा आने के बाद सबसे ज्यादा मुखर किन्नर समुदाय के लोग हैं. सर्वे में किन्नर समुदाय की संख्या सिर्फ 852 बताई गई है, जिसका समुदाय के लोगों ने विरोध किया है. किन्नर समुदाय के लोग पहले भी जातीय सर्वे के विरोध में कोर्ट जा चुके हैं.

किन्नर एसोसिएशन की रेशमा प्रसाद का कहना है कि जानबूझकर हम लोगों की संख्या को कम किया गया है. पहले तो सरकार हम लोगों को जाति में गिनकर गलत किया है और उसमें भी संख्या सही-सही नहीं बताया गया है.

किन्नर एसोसिएशन का दावा है कि बिहार में उनकी संख्या 41000 के आसपास है. रेशमा पत्रकारों से कहती हैं- सिर्फ पटना में 2-3 हजार किन्नर हैं. बिहार में 5 हजार से ज्यादा किन्नरों के पास वोटर कार्ड हैं, फिर हमारी संख्या 852 कैसे हो सकती है?

रेशमा का कहना है कि बिहार में कई किन्नरों के पास जातीय सर्वे की टीम गई ही नहीं, इसलिए इस तरह के आंकड़े सामने आए हैं. किन्नर समुदाय का कहना है कि जल्द ही मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिला जाएगा और फिर इस मुद्दे को उठाया जाएगा.

2020 के विधानसभा चुनाव में हथुआ सीट पर किन्नर समुदाय के एक नेता ने चुनाव लड़ा था. लोजपा टिकट से चुनाव लड़े मुन्ना किन्नर को इस चुनाव में करीब 10 हजार वोट मिले थे.

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