महात्मा गांधी के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता: कुलपति

प्राणियों के प्रति दया भाव रखना ही अहिंसा: प्रोफेसर पी पी दुबे
गांधी जयंती पर मुक्त विश्वविद्यालय ने ली अहिंसा की प्रतिज्ञा
प्रयागराज  उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन मुक्त विश्वविद्यालय, प्रयागराज के मानविकी विद्या शाखा के तत्वावधान में सोमवार को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती व अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस पर ‘‘भारतीय संस्कृति में अहिंसा‘‘ विषय पर व्याख्यान आयोजित किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोफेसर प्रेम प्रकाश दुबे, निदेशक, कृषि विद्या शाखा ने कहा कि मन में किसी का अहित न सोचना ही अहिंसा है। इसी प्रकार कटु वाणी द्वारा दूसरों को नुकसान न पहुँचाना तथा सभी प्राणियों के प्रति दयाभाव रखना ही अहिंसा है। अहिंसा का सामान्य अर्थ है ‘हिंसा न करना‘।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए समन्वयक प्रोफेसर सत्यपाल तिवारी, निदेशक, मानविकी विद्याशाखा ने कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी कीे राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका थी। गांधी जी अहिंसा को बहुत बड़ी शक्ति मानते थे। अहिंसा को वीरों का आभूषण माना जाता है।
वाचिक स्वागत एवं विषय प्रवर्तन करते हुए डॉ. सतीश चन्द्र जैसल ने कहा कि सत्य सर्वोच्च कानून है तो अहिंसा सर्वोच्च कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि गांधी जी के ‘ईश्वर अल्लाह तेरो नाम‘ ‘सबको सम्मति दे भगवान‘ के गीत से भारतीय समाज में सदभावना का विकास होता है।
 कार्यक्रम में उपस्थित सभी प्राध्यापकगणों ने महात्मा गांधी की प्रतिमा पर पुष्प अर्पित करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की।
इस अवसर पर संयोजक उप निदेशक, मानविकी प्रोफेसर विनोद कुमार गुप्ता ने गांधी रिसर्च फाउंडेशन, जलगांव की अपेक्षा के अनुरूप कार्यक्रम में उपस्थित सभी लोगों को अहिंसा की प्रतिज्ञा  दिलाई।
कार्यक्रम का संचालन डॉ साधना श्रीवास्तव ने तथा आभार ज्ञापन डॉ. अतुल कुमार मिश्र ने किया। कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह के निर्देश पर आयोजन सचिव डॉ. दयानन्द उपाध्याय ने अन्य संकाय सदस्यों के साथ दो दिवसीय स्वच्छता कार्यक्रम को संपन्न करवाया। इस अवसर पर परिसर को साफ सुथरा तथा हरा भरा रखने का संकल्प लिया गया।
कुलपति प्रोफेसर सीमा सिंह ने अपने संदेश में कहा कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के विचार ही हमें एक सूत्र में बांध कर रख सकते हैं। महात्मा गांधी के अहिंसा के विचारों को जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। उनके सादगीपूर्ण व्यक्तित्व को आज की पीढ़ी को आत्मसात करना चाहिए।

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