लखनऊ: बच्चों पर कोरोना महामारी की मार : ट्रैफिकिंग में उत्तर प्रदेश शीर्ष पर

द ब्लाट न्यूज़ उत्तर प्रदेश, बिहार और तेलंगाना वे राज्य हैं जहां 2016 से 2022 के बीच सबसे ज्यादा बच्चों की ट्रैफिकिंग हुई है। लेकिन महामारी के बाद हालात और विकट हुए हैं। उत्तर प्रदेश में कोरोना काल के बाद ट्रैफिकिंग के मामलों में 350 फीसद का इजाफा देखा गया है। यह चौंकाने वाली जानकारी नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी द्वारा स्थापित संगठन कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेंस फाउंडेशन (केएससीएफ) और गेम्स24&7 की एक साझा रिपोर्ट चाइल्ड ट्रैफिकिंग इन इंडिया : इनसाइट्स फ्राम सिचुएशनल डाटा एनालिसिस एंड द नीड फॉर टेक-ड्रिवेन इंटरवेंशन स्ट्रेटजी  में सामने आई है। रिपोर्ट में इस आशंका की भी पुष्टि हुई है कि महामारी के पश्चात देश के हर राज्य में बच्चों की ट्रैफिकिंग में बेतहाशा बढ़ोतरी हुई है। सबसे खराब स्थिति उत्तर प्रदेश की है। यहां कोरोना से पूर्व 2016 से 2019 के बीच सालाना औसतन 267 बच्चों की ट्रैफिकिंग होती थी जो महामारी के बाद 2021-22 में 1214 तक पहुंच गई। प्रदेश में ट्रैफिकिंग के मामलों में बदायूं जिला पहले नंबर पर है जबकि इसके बाद हरदोई, बहराइच, बरेली और जौनपुर का नंबर है। रिपोर्ट के अनुसार जयपुर ट्रैफिकिंग के शिकार बच्चों को लाए जाने का सबसे बड़ा अड्डा है जबकि इसके बाद राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के चार जिलों का नंबर है।

यह रिपोर्ट 30 जुलाई को विश्व मानव दुर्व्यापार निषेध दिवस के मौके पर जारी की गई। बाल मजदूरी के शिकार बच्चों की हालत पर प्रकाश डालते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि 13 से 18 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे ज्यादातर दुकानों, ढाबों और उद्योगों में काम करते हैं लेकिन सौंदर्य प्रसाधन एक ऐसा उद्योग है जिसमें पांच से आठ साल तक के बहुत छोटे बच्चों से भी काम लिया जाता है।

इस रिपोर्ट में केएससीएफ और उसके सहयोगी संगठनों से 2016 से 2022 के बीच देश के 21 राज्यों के 262 जिलों से आंकड़े जुटाए गए हैं। चौंकाने वाले ये आंकड़े बताते हैं कि छुड़ाए गए 80 प्रतिशत बच्चों की उम्र 13 से 18 वर्ष के बीच थी। साथ ही 13 प्रतिशत बच्चे नौ से बारह साल के बीच थे जबकि पांच प्रतिशत बच्चे नौ साल से भी छोटे थे। केएससीएफ और इसके सहयोगी संगठनों के प्रयासों और हस्तक्षेप से 2016 से 2022 के बीच 18 साल से कम उम्र के 13,549 बच्चों को बाल श्रम और ट्रैफिकिंग से मुक्त कराया गया।  इससे भी कहीं ज्यादा रिपोर्ट में बाल मजदूरों का इस्तेमाल कर रहे उद्योगों का वीभत्स चेहरा भी सामने आया है। इसके अनुसार बाल मजदूरों का सबसे बड़ा हिस्सा होटलों और ढाबों में बचपन गंवा रहा है जहां 15.6 फीसद बच्चे काम कर रहे हैं। इसके बाद आटोमोबाइल व ट्रांसपोर्ट उद्योग में 13 फीसद और  कपड़ा व खुदरा दुकानों में 11.18 फीसद बच्चे काम कर रहे हैं।

देश में बच्चों की ट्रैफिकिंग के मामलों में लगातार इजाफा होने पर केएससीएफ के प्रबंध निदेशक रीयर एडमिरल, एवीएसएम (सेवानिवृत्त) राहुल कुमार श्रावत ने कहा, हालांकि यह बड़ी संख्या खासी चिंता का विषय है लेकिन इस तथ्य को झुठलाया नहीं जा सकता कि पिछले एक दशक में भारत ने जिस तरह से बच्चों की ट्रैफिकिंग से निपटने की दिशा में कदम उठाए हैं, उससे इस समस्या पर काबू पाने की उम्मीद जगी है। केंद्र, राज्य सरकारों और रेलवे सुरक्षा बल (आरपीएफ) और सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ)  जैसी कानून प्रवर्तन एजेंसियों की फौरी और त्वरित कार्रवाइयों से बाल दुर्व्यापार में संलिप्त तत्वों की धरपकड़ में मदद मिली है। साथ ही इससे बच्चों की ट्रैफिकिंग के खिलाफ जागरूकता के प्रसार में भी मदद मिली है। इससे बहुत से बच्चों को ट्रैफिकिंग का शिकार होने से बचाया जा सका है और इसकी वजह से दर्ज मामलों की संख्या में भी उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई है। लेकिन समस्या की व्यापकता को देखते हुए इसके समाधान के लिए एक कड़े और समग्र एंटी ट्रैफिकिंग कानून की आवश्यकता है। हमारी मांग है कि संसद इसी सत्र में इस कानून को पास करे।

हम समय नहीं गंवा सकते क्योंकि हमारे बच्चे खतरे में हैं।ट्रैफिकिंग की समस्या पर काबू पाने के लिए तकनीक आधारित हस्तक्षेप की फौरी जरूरत पर जोर देते हुए गेम्स24&7 के सह संस्थापक और सह मुख्य कार्यकारी अधिकारी त्रिविक्रम थंपी ने कहा,  साल के शुरू में हमने वादा किया था कि केएससीएफ के साथ हमारा समझौता वित्तीय सहयोग से परे जाते हुए कुछ ठोस काम करेगा। टेक्नोलॉजी लीडर के तौर पर बाजार में गेम्स24&7 की विशेष हैसियत और डाटा साइंस और एनालिटिक्स में विशिष्ट क्षमताओं का फायदा उठाते हुए हम बच्चों के उत्थान के लिए टिकाऊ समाधान पेश करेंगे।  इस वचनबद्धता के मद्देनजर हमारी इस समग्र और शोधपूर्ण रिपोर्ट का लक्ष्य कानून प्रवर्तन एजेंसियों को जरूरी सूचनाओं और तकनीकों से लैस करके बच्चों की ट्रैफिकिंग की समस्या के हल के लिए लक्षित समाधान पेश करना और इसके लिए जरूरी उपकरण मुहैया कराना है। यह रिपोर्ट न केवल भविष्य में सहयोग के नए रास्तों का खाका तैयार करती है बल्कि एक ऐसे भविष्य की कल्पना करती है जहां तकनीक उदात्त मानवीय मूल्यों की प्राप्ति का वाहक बनती है- और यह है हर बच्चे के लिए एक बेहतर भविष्य का वादा जिससे अंतत: हम एक सुरक्षित कल का निर्माण कर सकेंगे।

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