द्वापर युग में भगवान दत्तात्रेय ने किया था बाबा सिद्धनाथ पीठ की स्थापना 

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कुशीनगर। जनपद के पड़रौना नगर से पूरब पडरौना- तमकुही मार्ग स्थित बाबा सिद्धनाथ पीठ सिधुआं स्थान देश के नौ नाथो में से एक स्थान और चौरासी सिद्ध स्थानों में प्रथम स्थान माना जाता है। बाबा सिद्धनाथ की तपस्थली सिधुआं  स्थान स्थापना द्वापर युग में सती अनसूया के पुत्र भगवान दत्तात्रेय ने किया था। इस स्थान पर उस समय वीरान जंगल था और बड़ा ही रमणीक स्थान था। उन्होंने दुर्गा जी के योगेश्वरी रुप और महाकाली आदिशक्ति पिंड की स्थापना की। दत्तात्रेय सिधुआं बाबा ने इस स्थान पर वर्षों तक तप किया तथा यही धरती के अंदर समा गए थे। जहां सिधुआं बाबा के इस मंदिर के भीतर धरती में समाएं थे,वहीं उनकी समाधि बनी और तब से लेकर आज तक उस स्थान पर धुई जलती रहती है। उस राख को लोग अपने माथे पर बाबा का आशीर्वाद समझ कर लगाते हैं ।
सिधुआं स्थान पर माता योगेश्वरी और मां काली शक्ति का चबूतरे पर पिंड बना हुआ था,और उसी को लोग पूजा करते थे। पडरौना के निवासी और माता के भक्त कन्हैया लाल गुप्ता जिनकी कोई संतान नहीं थी।उन्होंने माता से मन्नत मांगा कि अगर मुझे पुत्र की प्राप्ति हुई तो वे मंदिर बनवाएंगे। माता की कृपा से उन्हें चार पुत्रों की प्राप्ति हुई,उन्होंने मंदिर निर्माण कराया जिस का युद्ध दो हजार दस में माता के भक्त अनिल तुलस्यान ने संगमरमर का भव्य आकर्षक मंदिर निर्माण कराया। मंदिर परिसर में स्थित महाकाली शक्ति और महाकाल के मंदिर निर्माण पांच वर्ष पहले हुआ है। महाकाल के मंदिर का निर्माण प्रसिद्ध चिकित्सक डॉ वीके.सिंह ने महाकाली मंदिर का निर्माण कराया है तो मंदिर के महंत योगेश्वर नाथ ने कराया है। यहां लोगों का आना जाना लगा रहता है । लेकिन नवरात्र और शिवरात्रि के दिन इसकी महत्ता बढ़ जाती है।
वर्तमान समय में जो यहां के मंदिर के महंत योगेश्वर नाथ त्रिपाठी पैंतालीस वर्षों से स्थान के विकास में लगे हुए हैं। इससे पूर्व इनके पिता भगवती बाबा सौ वर्षों तक स्थान की सेवा किया है।

 चौरासी सिद्ध पीठो में है सिधुआं स्थान का नाम-महंत योगेश्वर नाथ त्रिपाठी ;
 —- सिधुआं स्थान मंदिर के महंत योगेश्वर नाथ ने कहा कि सिधुआं स्थान की स्थापना द्वापर युग में हुई है। यह स्थान अघोर पंथ का है,और जूना अखाड़ा से संबंधित है,तथा नागा साधुओं के लिए पूजनीय है,तंत्र पूजा की दृष्टि से भी इस स्थान का नाम प्रसिद्ध है। बनारस के करपात्री जी महाराज ने भी यहां दर्शन करने के लिए आए थे। मंदिर का जिक्र आईने अकबरी व सजरे नेयाब समेत कई ग्रंथों में है। उन्होंने बताया बीते 16 वर्ष से मंदिर परिसर में वार्षिकोत्सव का कार्यक्रम आयोजित होता रहा है। इस बार वर्ष में भी बाबा श्री सिद्धनाथ का वार्षिक उत्सव मनाया जाना है। जिसकी तैयारियां चल रही है।  इस बार भव्य रुप से बाबा श्री सिद्धनाथ का वार्षिक उत्सव दो जून को मनाया जाएगा। इसमें यहां दूरदराज से आने वाले श्रद्धालु बाबा श्री सिद्धनाथ का दर्शन करने के बाद भव्य भंडारे में शरीक होकर भंडारे का प्रसाद ग्रहण करेंगे। उन्होंने मंदिर के बारे बताया कि कई दशक पहले अकबर को उस समय कोई चर्म से संबंधित बीमारी हो गई थी,जो इलाज के बाद भी ठीक नहीं हो रहा था।  उसकी यह बीमारी सिधुआं स्थान के पुष्प जल से निकली धारा जो पुष्पी सागर कहलाई । अकबर ने इसी में सागर में स्नान किया । इससे उसका चर्म रोग ठीक हो गया । इस स्थान की महत्ता को देखकर उसने इसे परगना घोषित किया और सिधुआं जोबना परगना का नाम दिया । जिसका जिक्र आईने अकबरी 168 नंबर पेज पर है सिधुआं जोबना के नाम से आज भी कुशीनगर में जमीन से संबंधित कार्य होते हैं। स्थान पर एक और ऊर्जा का संस्कार रहता है,कोई भी भगत अगर यहां कुछ देर तक ध्यान लगाए तो शरीर में उर्जा की तरंगे प्रवाहित होने लगती है और भक्त सुख शांति के अनुभवी होती है कोई भी श्रद्धालु अगर सिधुआं स्थान से सच्चे मन से कोई मनोकामना करे तो योगेश्वरी देवी और महाकाली आदिशक्ति तथा सिधुआं बाबा निश्चित ही पूरा करते हैं। इस स्थान को सिधुआं बाबा की तपस्थली भी कहते हैं।

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