अलीगढ़: सरकार NCERT को हथियार बनाकर सिलेबस कर रही है चेंज- इतिहासकार इरफान हबीब

द ब्लाट न्यूज़ अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एवं इतिहास की परख रखने वाले इतिहासकार इरफान हबीब NCERT की किताबों से इतिहास के साथ हो रही छेड़छाड़ को लेकर केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराते हुए कटघरे में खड़ा कर दिया हैं। उन्होंने कहा कि अमित शाह अपना नाम क्यों नहीं बदलते। शाह फारसी शब्द है। यह संस्कृत, हिंदी या अरबी शब्द नहीं है। अमित शाह को अपना नाम बदलना चाहिए। उसके बाद दूसरी जगह का नाम बदलें। उन्होंने कहा कि जब अमित शाह का नाम उस कल्चर से जुड़ा है तो फिर अमित शाह मुसलमानों को दीमक क्यों कहते हैं।

 

 

इसके साथ ही उन्होंने कहा कि UGC के चेयरमैन बीजेपी से ट्रेनिंग लेकर आए हैं। जिसके चलते यूजीसी के सेलेबस से अलाउद्दीन की प्राइस पॉलिसी को गायब कर दिया गया। प्राइस पॉलिसी मुसलमानों को प्रभावित नहीं करती थी बल्कि किसानों, लगान और बाजार पर भी असर करती थी। उन्होंने बताया कि इकोनामिक पॉलिसी भी सिलेबस से निकाल दिया है। कबीर, अबुल फजल को भी सेलेबल से निकाल दिया।

आपको बता दें कि भारतीय इतिहास कांग्रेस देश के इतिहास से छेड़छाड़ और उस पर हो रहे हमलों से काफी चिंतित है। इसको देखते हुए भारतीय इतिहास कांग्रेस ने “Assessing Our Past History” नाम से एक मुहिम चलाई हुई है। जिसके अंतर्गत आज देश के सुप्रसिद्ध इतिहासकार प्रोफेसर इरफान हबीब की पहल पर सेमिनार का आयोजन मैरिस रोड स्थित धर्मपुर कोटद्वार में किया गया। कार्यक्रम के प्रारंभ में इतिहास कांग्रेस के पदाधिकारी नदीम रिजवी ने कहा कि वर्तमान समय में जैसे प्राचीन इतिहास को खंगाला जा रहा है। उसमें अपनी विचारधारा रखने की कोशिश की जा रही है। भारत गंगा जमुनी तहजीब का देश है और उसको सहज मिटाया नहीं जा सकता हैं।

वहीं कार्यक्रम के मुख्य वक्ता प्रोफेसर इरफान साहब ने कहा कि वर्तमान समय में देश के प्राचीन इतिहास बदलाव किया जा रहा है। कहा जा रहा है कि आर्य भारत में ही जन्मे थे। उसके अलावा वह कहीं नहीं पाए जाते, जबकि वास्तविकता है कि आर्य पूरे विश्व में फैले हुए हैं जहां सभ्यता मौजूद है। इसी प्रकार देश के मौजूदा प्रधानमंत्री और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का कहना है कि वर्ष 2014 से पहले इस देश में कुछ नहीं हुआ, जो कुछ भी हुआ है वर्ष 2014 के बाद हुआ है और इसको इतिहास बनाना चाहते हैं, इरफान हबीब पूछते हैं कि वे किस आधार पर देश की मौजूदा स्थिति को कैसे अपना इतिहास बनाने की कोशिश कर रहे हैं। जब वह अपने मंसूबों में सफल होते नहीं दिख रहे हैं तो उन्होंने इस काम के लिए सरकारी स्वामित्व वाले पब्लिशिंग हाउस एनसीईआरटी को अपना हथियार बनाकर पाठ्यक्रमों में परिवर्तन कर रहे है। उन्होंने कहा कि यूजीसी के सेलेबस से अलाउद्दीन की प्राइस पॉलिसी को गायब कर दिया गया। प्राइस पॉलिसी मुसलमानों को प्रभावित नहीं करती थी, बल्कि किसानों, लगान और बाजार पर भी असर करती थी। उन्होंने बताया कि इकोनामिक पॉलिसी भी सिलेबस से निकाल दिया है। कबीर, अबुल फजल को भी सेलेबल से निकाल दिया। उन्होंने कहा कि यूजीसी के चेयरमैन बीजेपी से ट्रेनिंग लेकर आए हैं।

उन्होंने मुसलमानों से जुड़े स्थानों के नाम बदले जाने पर कहा कि अमित शाह अपना नाम क्यों नहीं बदलते। शाह फारसी शब्द है। यह संस्कृत, हिंदी या अरबी शब्द नहीं है। उन्होंने कहा अमित शाह को अपना नाम बदलना चाहिए। फिर दूसरी जगह का नाम बदलें। उन्होंने कहा कि जब अमित शाह का नाम है उस कल्चर से जुड़ा है तो फिर मुसलमानों को दीमक क्यों कहते हैं।

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