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रूस अब भारत को सबसे ज्यादा कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाला देश बना गया है। अब तक इराक से भारत सबसे ज्यादा कच्चा तेल आयात करता था लेकिन मार्च में रूस से भारत का आयात इराक के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा हुआ।यूक्रेन पर हमला करने के बाद रूस अंतरराष्ट्रीय पाबंदियों का शिकार बना है और एक समय ऐसा लग रहा था जैसे उसकी पूरी अर्थव्यवस्था बिखर जाएगी। लेकिन उसके कच्चे तेल ने उसके बचा लिया है और दुनिया के दूसरे कई देशों की अर्थव्यवस्था भी बचा ली है। असल में कारोबार की यही खूबी होती है उसमें तमाम राजनीतिक सीमाएं मिट जाती हैं। सोचें, रूस के ऊपर अमेरिका और यूरोप में बड़ी बड़ी पाबंदियां लगा रखी हैं और उन पाबंदियों की वजह से रूस उनको कच्चा तेल नहीं बेच सकता है लेकिन वह भारत को कच्चा तेल बेच सकता है, जिसे रिफाइन करके भारतीय कंपनियां अमेरिका और यूरोप के देशों को बेच सकती हैं। गुड़ खाकर गुलगुले से परहेज की यह नीति सबको रास आ रही है। भारत को तेल की कीमत स्थिर बनाए रखने में इससे मदद मिल रही है तो अमेरिका और यूरोप को भी तेल व गैस की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित हो रही है और साथ ही रूस की आक्रामकता का विरोध करने की नीति भी जारी है।सबके फायदे वाली इस नीति का असर यह हुआ है कि रूस अब भारत को सबसे ज्यादा कच्चे तेल की आपूर्ति करने वाला देश बना गया है। अब तक इराक से भारत सबसे ज्यादा कच्चा तेल आयात करता था लेकिन पिछले महीने यानी मार्च में रूस से भारत का आयात इराक के मुकाबले दोगुने से भी ज्यादा हो गया। भारत ने रूस से मार्च में 16.4 लाख बैरल तेल आयात किया, जबकि मार्च में इराक से भारत का तेल आयात 8.1 लाख बैरल रहा। भारत को कच्चे तेल के आयात में इराक अब तीसरे स्थान पर चला गया है। दूसरे स्थान पर सऊदी अरब है, जिससे भारत ने पिछले महीने 9.86 लाख बैरल तेल आयात किया है। अमेरिका से भी भारत का कच्चे तेल का आयात कम हुआ है, जबकि अमेरिका को रिफाइन तेल के निर्यात में अच्छी खासी बढ़ोतरी हुई है।दुनिया के देशों ने अपनी जरूरत के लिए भारत को रूस से कच्चा तेल खरीदने और रिफाइन करके बेचने की अनुमति दी है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया में भारत हमलावर रूस के साथ खड़ा दिख रहा है। इससे अंतरराष्ट्रीय समुदाय के बीच भारत की छवि पर भी निश्चित रूप से असर हुआ है। दूसरे, रूस से सस्ता कच्चा तेल खरीदने का भारत के आम लोगों को कोई फायदा नहीं मिल रहा है। पिछले साल फरवरी में रूस से कच्चे तेल का आयात एक फीसदी से भी कम था, जो अब 34 फीसदी हो गया है लेकिन इस अवधि में भारत में तेल की कीमतों में कोई कमी नहीं आई है।
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