विवाह संस्कार से परमार्थ यात्रा शुरू होती है – प्रेमभूषण जी महाराज

कानपुर, संवाददाता। सनातन धर्म और परंपरा में गृहस्थ जीवन में प्रवेश करने वाले अपने जीवन की परमार्थ यात्रा भी शुरूआत करते हैं। गृहस्थ आश्रम को सभी चार आश्रम में श्रेष्ठतम बताया गया है। सनातन परंपरा में विवाह संस्कार को समाज का मेरुदंड बताया गया है।

 

उक्त बातें कानपुर के मोतीझील पार्क में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के तीसरे दिन पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने व्यासपीठ से कथा वाचन करते हुए कहीं। सरस् श्रीराम कथा गायन के लिए विश्व प्रसिद्ध प्रेममूर्ति पूज्य प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री राम कथा गायन के क्रम में श्री राम जन्मोत्सव से जुड़े प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि भगवान को तर्क से नहीं जाना जा सकता है। पूज्य महाराज श्री ने कहा कि निरंतर भजन में रहने वाले की कभी मृत्यु नहीं होती है। इसलिए सामान्य व्यक्ति के लिए यह आवश्यक है कि वह अपने जीवन के सभी क्रियाओं में संयुक्त रहते हुए भजन में भी प्रवृत्त हों। महाराज जी का सत्कर्म सोचने से नहीं होता है सत्कर्म के लिए सोचने वाले सोचते रह जाते हैं लेकिन करने वाला तुरंत उस कार्य को पूरा कर लेता है। पूज्यश्री ने कहा कि मनुष्य अपने अर्थ और संपत्ति का उत्तराधिकारी तो बना जाता है लेकिन अपने परमार्थ पथ का उत्तराधिकारी कोई-कोई बना पाता है।


प्रेमभूषण जी महाराज ने श्री राम कथा गायन के क्रम में श्री राम के मानव शरीर धारण करने के कारणों और प्राकट्य से जुड़े प्रसंगों की चर्चा करते हुए कहा कि अपने जीवन काल में ही हमें अपने परमार्थ पथ का उत्तराधिकारी तैयार करने की आवश्यकता है, तभी तो कई पीढ़ियों तक परमार्थ चलता रहता है।


महाराज श्री ने कई सुमधुर भजनों से श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। हजारों की संख्या में उपस्थित रामकथा के प्रेमी भजनों का आनन्द लेते हुए झूमते नजर आए। यह कथा श्री बालाजी सेवा समिति के अध्यक्ष सुनील शुक्ला और प्रेस क्लब के अध्यक्ष अवनीश दीक्षित के संकल्प से आयोजित है। तीसरे दिन की कथा के दैनिक यजमान के रूप में डेप्युटी कमिश्नर श्री सुधीर श्रीवास्तव, सोना चांदी ज्वेलरी के मालिक राजेंद्र अग्रवाल और दीपा अग्रवाल तथा श्री पी एन द्विवेदी ने व्यासपीठ का पूजन किया।

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