प्रयागराज:संगम तीरे बिखरे अवधी कविता के लोकरंग;कन्त नाहीं आए सखि,वसन्त ऋतु आय गै…..

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करछना (प्रयागराज)। माघ मेला परिक्षेत्र के अरैल तट स्थित इंण्डियन रेडक्रॉस सोसाइटी के पण्डाल में सोसाइटी एवं अखिल भारतीय अवधी समाज द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में पंहुचे कवियों ने संगम तीरे अवधी कविताओं का लोकरंग बिखेरे।
 मंच संचालन के दौरान लोकभाषा के चर्चित कवि अशोक बेशरम ने बसंती परिवेश का वर्णन करते हुए कहा फूले बनवेली,अठखेली करै कंजकली, मंजरी में कोयल मधुर गीत गायगै।संत सरसाइगै, दिगंत नभ छाए सखि, कंत नहीं आए री, वसंत ऋतु आय गै। कवि संतोष शुक्ला समर्थ में अवधी पद में लोक जीवन की व्यस्तता को कुछ इस प्रकार उजागर किया -रात दिना कै धावन धूपन, केहिसे बिपति सुनाई। समरथ हम एकलउता बेटवा, रोइ करी चहि गाई,केशव कहां कहां हम धाई। दिल्ली से आए कवि मनोज कप्तान ने भाग्य रेखाओं के परिवेश में भविष्य की चाहत में भटकते मन की व्यथा कुछ इस प्रकार उकेरी- बात हमारि खरी उतरै, बचवा यहिं बेरी बिधायक होई। शैलेंद्र जय के गीत ग़ज़लों में बसी वसन्त की अलौकिक छवि श्रोताओं द्वारा खूब सराही गई तो वहीं कानपुर के ओमप्रकाश शुक्ल के वासन्ती दोहों में बोनी बानी के लोकरंग ने खूब समां बांधा। इसके अलावा अन्य कवियों ने भी अपनी रचनाओं में सामाजिक विकृतियों और वर्तमान में राजनैतिक विसंगतियों पर कटाक्ष करते हुए लोगों को जी भर गुदगुदाया।
अध्यक्षता कर रहे राष्ट्रपति पदक से सम्मानित डॉ ओमशंकर मिश्र ने अवधी के लालित्य और रागात्मकता पर प्रकाश डालते हुए इसे संजोए रखने पर बल दिया।  आयोजकों द्वारा कार्यक्रम के उपरान्त सभी कवियों को उपहार भेंट कर सारस्वत सम्मान किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में स्थानीय श्रद्धालु एवं श्रोता मौजूद रहे।

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