बांधवगढ़ नेशनल पार्क: वन्यजीवों की मौत का अभयारण्य बना बांधवगढ़

द ब्लाट न्यूज़ प्राकृतिक हरियाली और दुर्लभ वन्य जीवों के लिए दुनिया भर में मशहूर राष्ट्रीय उद्यान बांधवगढ़ में आये दिन हो रही बाघ एवं तेंदुओं की मौत ने वन्यजीव प्रेमियों को चिंता में डाल दिया है।

 

 

सोमवार को पार्क में एक और बाघ की मौत हो गई। मृत बाघ की आयु लगभग 15 माह बताई गई है, जिसका शव परिक्षेत्र खितौली अंतर्गत गढ़पुरी बीट में पाया गया। गश्तीदल की सूचना पर उच्च अधिकारियों ने मौके पर पहुंच कर हालात का जायजा लिया। पोस्टमार्टम के उपरांत शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया। गढ़पुरी को मिला कर इस वर्ष बांधवगढ़ में होने वाली बाघ की यह सातवीं मौत है। हमेशा की तरह इस बार भी अधिकारी बाघ की मृत्यु टेरीटेरी फाईट  के कारण होना बता रहे हैं। उनका कहना है कि किसी बड़े बाघ के हमले में शावक की मौत हुई है।

तेदुओं की भी शामत
बाघों की तरह पार्क में तेदुओं की भी आये दिन मृत्यु हो रही है। बीते करीब दो महीनो में ही बांधवगढ़ में कम से कम पांच तेदुओं को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। बाघ की तरह तेंदुआ भी जंगल का बेशकीमती जीव माना जाता है। कभी पार्क में इनकी तादाद काफी ज्यादा थी, लेकिन अवैध शिकार और जंगली जानवरों से फसलों को बचाने के लिये फैलाए जाने वाले करंट से हुई सैकड़ों मौतों के कारण इनका दायरा संकुचित हो गया है।

कई बाघ-तेंदुए गायब
2022 में पार्क प्रबंधन ने एक दर्जन के आसपास बाघ और तेंदुओं के मारे जाने की पुष्टि की है। हलांकि जानकार इसी संख्या से इत्तफाक नहीं रखते। उनका दावा है कि विगत 11 महीनों में करीब दो दर्जन से भी ज्यादा बाघ और तेंदुओं की मृत्यु हुई है। अधिकारी असली आंकड़े को छिपा रहे हैं। सूत्रों के मुताबिक कई बाघ, तेंदुए और उनके शावक अभी भी लापता हैं। इनमें से अधिकांश की मौत होने का अनुमान लगाया जा रहा है।

पूरे पार्क में सक्रिय शिकारी

अधिकारियों के वेतन, ऐशो आराम तथा विभागीय अमले पर करोड़ों रुपये खर्च करने के बाद भी वन्य जीवों की संदिग्ध मौतों पर अंकुश नहीं लग पा रहा है। कभी शेरों के शिकार के लिये कुख्यात पारधियों और बहेलियों पर प्रबंधन की पैनी निगाह रहती थी, पर कई दिनों से इस तरह की कार्रवाई  रोक दी गई हैं। प्रबंधन की उदासीनता के कारण करीब एक वर्ष से पार्क क्षेत्र में शिकारियों, बहेलियों, पारधियों और वन्यजीव तस्करों की गतिविधियां लगातार देखी जा रही हैं।

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