जानिए जीनोम मैपिंग क्या है, हमारें साथ…

The Blat – हमारी कोशिकाओं के भीतर आनुवंशिक पदार्थ (Genetic Material) होता है जिसे हम DNA, RNA कहते हैं। इन सभी पदार्थों को सामूहिक रूप से जीनोम कहा जाता है। एक जीन के स्थान और जीन के बीच की दूरी की पहचान करने के लिये उपयोग की जाने वाली विभिन्न तकनीकों को ही जीन या जीनोम मैपिंग कहा जाता है।

अक्सर जीनोम मैपिंग का इस्तेमाल वैज्ञानिकों द्वारा नए जीन की खोज करने में मदद के लिये किया जाता है। जीनोम में एक पीढ़ी के गुणों को दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित करने की क्षमता होती है। ह्यूमन जीनोम प्रोजेक्ट के मुख्य लक्ष्यों में नए जीन की पहचान करना और उसके कार्य को समझने के लिये बेहतर और सस्ते उपकरण विकसित करना शामिल है। जीनोम मैपिंग इन उपकरणों में से एक है। मानव जीनोम में अनुमानतः 80 हज़ार से एक लाख तक जींस होते हैं। जीनोम के अध्ययन को जीनोमिक्स (Genomics) कहा जाता है।

 

 

मेंडल के वंशानुक्रम नियम : ग्रेगोर मेंडल को Father of Genetics कहा जाता है, उन्होंने 1865 में वंशानुक्रम के तीन नियम खोजे थे, जिन्हें मेंडल के नियम कहा जाता है। मेंडल के इन वंशानुक्रम नियमों में प्रभाव, अलगाव और स्वतंत्र वर्गीकरण के नियम शामिल हैं। इनमें से प्रत्येक को जीवाणु कोशिकाओं में केंद्रकीय परिवर्तन के विकास की अवस्था अर्थात् अर्द्ध-सूत्री विभाजन की प्रक्रिया (Meiosis) के माध्यम से समझा जा सकता है।

क्रैक किया DNA कोड : इसके लगभग 91 वर्ष बाद 1953 में जेम्स वाटसन, फ्रांसिस क्रिक, मॉरिस विल्किन्स और रोजालिंड फ्रेंकलिन ने दुनिया को DNA मॉलिक्यूल के गूढ़ अर्थ के बारे में जानकारी दी। इन्होंने DNA कोड को पढ़कर बताया कि इस मॉलिक्यूल में हमारी आनुवंशिक जानकारी रहती है, जो माता-पिता से बच्चों में हस्तांतरित होती रहती है। DNA कोड को पढ़ने में सफलता मिलने के बाद वैज्ञानिकों ने इस बात पर विचार करना शुरू किया कि क्या मनुष्य के DNA में एकत्र जानकारी के आधार पर प्रत्येक व्यक्ति के लिये अलग से दवा तैयार की जा सकती है। उस समय यानी 1953 में मानव जीन-समूह से इस तरह की सूचनाओं को प्राप्त करना असंभव था, लेकिन हाल के वर्षों में जींस को क्रमबद्ध करने में तकनीकी प्रगति के बाद ऐसा करना संभव हो गया है।

जीनोम मैपिंग के लाभ : जीनोम मैपिंग के माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि किसको कौन सी बीमारी हो सकती है और उसके क्या लक्षण हो सकते हैं। इससे यह भी पता लगाया जा सकता है कि हमारे देश के लोग अन्य देश के लोगों से किस प्रकार भिन्न हैं और यदि उनमें कोई समानता है तो वह क्या है। इससे पता लगाया जा सकता है कि गुण कैसे निर्धारित होते हैं तथा बीमारियों से कैसे बचा जा सकता है। बीमारियों का पता समय रहते लगाया जा सकता है और उनका सटीक इलाज भी खोजा जा सकता है।

इसके माध्यम से उपचारात्मक और एहतियाती (Curative & Precautionary) चिकित्सा के स्थान पर Predictive चिकित्सा की जा सकती है। इसके माध्यम से यह पता लगाया जा सकता है कि 20 साल बाद कौन सी बीमारी होने वाली है। वह बीमारी न होने पाए तथा इसके नुकसान से कैसे बचा जाए इसकी तैयारी पहले से ही शुरू की जा सकती है। इसे ही Predictive चिकित्सा कहा गया है। इसके अलावा बच्चे के जन्म लेने से पहले उसमें उत्पन्न होने वाली बीमारियों के जींस का पता भी लगाया जा सकता है और आवश्यक कदम उठाए जा सकते हैं। ज्ञातव्य है कि कुछ ऐसी बीमारियाँ होती हैं जिनका सही समय पर पता चल जाए तो उनकी क्यूरेटिव मेडिसिन विकसित की जा सकती है तथा व्यक्ति के जीवनकाल को बढ़ाया जा सकता है।

लेखक:- निलेश मिश्रा 

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