जब टुनटुन की आवाज पर फिदा हो गए थे अख्तर अब्बास काजी, शादी करने पाकिस्तान से आ गए थे भारत

द ब्लाट न्यूज़ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में एक से बढ़कर एक कॉमेडियन हुए हैं, लेकिन टुनटुन का कोई मुकाबला नहीं है। टुनटुन 60 के दशक की पहली महिला कॉमेडियन थीं, जिनके पर्दे पर आते ही सिनेमाघर ठहाकों से गूंजने लगते थे।

 

 

अपने निराले अंदाज के लिए मशहूर टुनटुन की आज 19वीं डेथ एनिवर्सरी है। आज ही के दिन साल 2003 में अभिनेत्री ने दुनिया को अलविदा कह दिया था। दरअसल टुनटुन का असल नाम तो उमा देवी था, लेकिन मोटापे की वजह से उन्हें टुनटुन कहा जाने लगा था। टुनटुन एक प्लेबैक सिंगर भी रही हैं। उनके गाने और उनकी जिंदगी को लेकर आज हम आपको एक किस्सा बताने जा रहे हैं।

टुनटुन की हंसी तो सभी को याद होगी लेकिन, इस हंसी के पीछे काफी गम छुपे थे। टुनटुन के बहुत ही कम फैंस को ये बात पता होगी कि जब वह महज 4 साल की थी तो जमीन विवाद के चलते उनके माता-पिता को जान से मार दिया गया था। इसके बाद जब वह 9 साल की हुईं तो भाई की भी हत्या कर दी गई। अकेली टुनटुन अपने रिश्तेदारों के घर में रहने के लिए मजबूर हो गई थीं। कहा जाता है कि यहां उनसे नौकरानी की तरह घर का सारा काम कराया जाता था। टुनटुन को बचपन से गाने का बहुत शौक था। उन्होंने ठान लिया था कि जब भी कभी मौका मिलेगा तो वह नौशाद के लिए गाएंगी।  एक दिन चुपचाप वो रिश्तेदारों से भागकर मुंबई आ गईं। वहां उन्हें निर्देशक नितिन बोस के असिस्टेंट ने जव्वाद हुसैन का पता दिया। वो मुंबई आकर उनसे मिलीं और उन्होंने ही टुनटुन को पनाह दी। साल 1947 में जब देश का बंटवारा हो रहा था, उन दिनों कारदार फिल्म ‘दर्द’ बना रहे थे। तभी टुन टुन एक दिन बेरोकटोक उनके घर में जा घुसीं और उन्हीं से पूछ बैठीं कि कारदार कहां मिलेंगे, ‘मुझे गाना गाना है।’ दरअसल, टुन टुन फिल्मी तौर तरीकों से वाकिफ नहीं थी। टुनटुन का ये अंदाज कारदार को बहुत पसंद आया। कारदार ने नौशाद साहब के असिस्टेंट को बुलाया और टुनटुन का टेस्ट लेने को कहा। तब टुनटुन ने उन्हें फिल्म ‘जीनत’ का गाना ‘आंधियां गम की यूं चली’ सुनाया। टुनटुन का गाना उन्हें इतना पसंद आया कि उन्होंने 500 रुपए महीने की नौकरी पर उन्हें रख लिया। इसके बाद टुनटुन का पहला गाना अफसाना लिख रही हूं गाया था। टुनटुन का ये गाना एक पाकिस्तानी अख्तर अब्बास काजी को इतना पसंद आया कि वह अपना मुल्क छोड़कर भारत आ गए और टुनटुन से शादी कर ली। इसके बाद उन्होंने करीब 45 गाने गाए। बाद में घर की जिम्मेदारियों की वजह से उनको ब्रेक लेना पड़ा। हालांकि टुनटुन ने फिर से काम करने की सोची। इस समय नौशाद फिल्म ‘बाबुल’ बना रहे थे। उन्होंने टुनटुन से एक हास्य किरदार करने को कहा जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। इसी फिल्म में नौशाद साहब ने उमा देवी का नाम टुनटुन नाम दिया था। जो आगे चलकर उनकी पहचान बन गई। टुनटुन का किरदार लोगों को बेहद पसंद आया और देखते ही देखते वो एक कॉमेडी एक्ट्रेस बन गईं। इसके बाद तो उन्होंने करीब 200 फिल्मों में काम किया। साल 2003, 24 नवंबर को उन्होंने दुनिया को अलविदा कह दिया था। लेकिन आज भी वह लोगों के दिलों में बसती हैं।

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