मुंबई । बंबई उच्च न्यायालय ने शहर में बड़े पैमाने पर अवैध निर्माण के लिए महाराष्ट्र सरकार और मुंबई नगरपालिका को फटकार लगाते हुए कहा है कि ऐसा मालूम होता है कि “राज्य की संपत्ति कार्यपालिका की पैतृक संपत्ति है।”
मुख्य न्यायाधीश दीपांकर दत्ता और न्यायमूर्ति जी एस कुलकर्णी की पीठ ने पिछले साल पड़ोस के ठाणे जिले के भिवंडी नगर में एक इमारत के ढह जाने के बाद पूरे मुंबई नगरपालिका क्षेत्र (एमएमआर) में अवैध निर्माणों पर स्वत: संज्ञान लेकर जनहित याचिका (पीआईएल) पर सुनवाई करते हुए मंगलवार को ये टिप्पणियां कीं।
वरिष्ठ वकील अस्पी चिनॉय ने बृहन्मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के साथ यह दलील दी कि राज्य की झुग्गी पुनर्वास नीति ने अतिक्रमणकारियों को संरक्षण दिया है। इसलिए, नगर निकाय नगपालिका कानून के प्रावधानों के तहत उनके खिलाफ कार्रवाई नहीं कर सकती। उन्होंने कहा कि बाहरी प्राधिकरण के तौर पर बीएमसी की भूमिका सीमित है।
महाराष्ट्र सरकार की तरफ से पेश महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने उच्च न्यायालय को बताया कि राज्य सरकार की झुग्गी पुनर्वास नीतियों ने एक जनवरी 2000 से पहले बने और 14 फुट से कम उंचे ढांचों के विध्वंस के खिलाफ वैधानिक संरक्षण दिया हुआ है। उन्होंने बताया कि वैध फोटो पासधारक झुग्गी निवासियों के ढांचे को संरक्षित किया गया था और उन्हें झुग्गी पुनर्वास नीतियों के तहत ध्वस्त नहीं किया जा सकता था।
कुंभकोणी ने कहा कि एक के बाद एक आने वाली सरकारों ने अधिसूचित झुग्गी क्षेत्रों में बने घरों की सुरक्षा के लिए अंतिम तिथि को वर्ष 2000 तक के लिए बढ़ा दिया था। उच्च न्यायालय ने कहा कि इसके चलते सरकारी भूमि पर अतिक्रमणकारियों को वैधता दी गई। अदालत ने कहा, “जिस क्षण आप (राज्य) उन्हें लाभकारी योजना के तहत लाएंगे, राज्य की जमीनें और निगम की भूमि बट्टे खाते में चली जाती है।” अदालत ने टिप्पणी की, ‘‘ऐसा मालूम होता है कि राज्य की संपत्ति कार्यकारिणी की पैतृक संपत्ति है।” अदालत शुक्रवार को भी इस याचिका पर सुनवाई करेगी।
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