श्रीलंका में सांस्कृतिक नरसंहार से हिंदुओं की प्रतीक और पहचान को खतरा : हिंदू संघर्ष समिति

 

द ब्लाट न्यूज़ हिंदू संघर्ष समिति ने श्रीलंका में तमिल हिंदुओं का दमन बंद करने और मंदिरों को तोड़कर बौद्धविहार बनाने की निंदा की है।

 

 

श्रीलंका में शोषित हालत में रह रहे हिंदुओं की आवाज शुक्रवार को नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशनल क्लब ऑफ इंडिया में बुलंद की गई। इस अवसर पर आयोजित गोष्ठी में हिंदू संघर्ष समिति के नेताओं ने कहा कि श्रीलंका में पुराने हिंदू मंदिर तोड़े जा रहे हैं। उन पर बौद्ध, सिंहली लोग कब्जा कर रहे हैं। उन्होंने पूर्वोत्तर श्रीलंका में हिंदू पहचान की रक्षा करने और सुरक्षा और स्थिरता बहाल करने के लिए केंद्र सरकार से भारत-लंका समझौते को पूरी तरह से लागू करने के लिए श्रीलंका पर दबाव डालने और तमिल हिंदुओं को उचित राजनैतिक सहभागिता दिलानेकी अपील की।

 

हिंदू संघर्ष समिति का कहना था कि श्रीलंका में चल रहे सांस्कृतिक नरसंहार से हिंदू प्रतीकों का मान और हिंदुओं की पहचान ख़तरे में हैं। कुरुंथौर-मलाई में बौद्ध स्तूप का निर्माण बंद हो और हिन्दू समाज को शिव मंदिर सौंपा जाए। तिरुकोनेश्वरम मंदिर की भूमि का अतिक्रमण बंद किया जाए। उन्होंने मांग की कि जब तक उत्तर-पूर्व के हिंदू तमिलों का सिंहलीकरण और बौद्धीकरण पूरी तरह से बंद नहीं हो जाता, तब तक भारत श्रीलंका को और सहायता देना बंद करे।

 

हिंदू संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण उपाध्याय ने कहा कि श्रीलंका के तमिल हिंदुओं के मानवाधिकार और धार्मिक स्वतंत्रता को लक्ष्य कर सांप्रदायिक हमले किए जा रहे हैं। इस सांस्कृतिक नरसंहार को राज्य प्रायोजित आतंकवाद कहना ठीक होगा। वहां तमिल हिन्दुओं के जख्मों को कुरेद कर नमक छिड़का जा रहा है। उन्होंने आरोप लगाया कि बौद्ध धार्मिक नेतृत्व ने हिंदुओं की संस्कृतिक पहचान ख़त्म कर, उनके मंदिरों और अन्य ऐतिहासिक महत्व के स्थानों पर अतिक्रमण कर उन पर सिंहली बौध्द चरित्र थोपना शुरू कर दिया है।

 

संघठन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष वरुण शर्मा ने कहा कि श्रीलंका उत्तर-पूर्वी प्रांत मुल्लातिवु में प्राचीन हिंदू मंदिर के स्थान पर बौद्ध विहार का निर्माण किया गया। श्रीलंका में 2009 में गृहयुद्ध की समाप्ति के बाद से, कट्टरपंथी बौद्ध भिक्षुओं द्वारा समर्थित श्रीलंकाई सरकार ने पुराने हिंदू मंदिरों के स्थलों पर बौद्ध पूजा स्थलों के निर्माण शुरू किया है। उन्होंने सुनियोजित सांस्कृतिक नरसंहार का आरोप लगाते हुए कहा हिंदू क्षेत्रों में सिंहली बौद्धों को बसाने की कोशिश की जा रही है।

 

समिति के राष्ट्रीय महासचिव विद्या भूषण ने कहा, 2021 की शुरुआत में कुरुन्थूर से 6 वीं शताब्दी के पल्लव-युग का शिवलिंग खुदाई में निकला था। फरवरी 2021 में वहां हिंदू मंदिर तोड़ा गया। जब हिंदू पक्ष इसके ख़िलाफ़ गया तो कोर्ट ने जगह के धार्मिक चरित्र में और कोई बदलाव न करनेका फैसला सुनाया।

 

हिंदू संघर्ष समित की राष्ट्रीय सचिव कल्पना सिंह ने कहा, श्रीलंका में हिंदू धर्मस्थलों को तोड़कर बौद्ध विहार और स्तूप बनाने का काम अनवरत जारी है। न्यायालय की अवमानना करते हुए मंदिर के परिसर में बौद्ध स्तूप बनाने का प्रयास जारी रखा गया। तमिल हिंदू आबादी ने जून 2022 में बुद्ध की मूर्ति और स्तूप का निर्माण शुरू होने पर जोरदार विरोध किया। कोर्ट ने जुलाई 2022 में निर्माण बंद करने और आंशिक रूप से निर्मित स्तूप हटाने के आदेश दिए। सेना, बौद्ध भिक्षुओं और पुरातत्व विभाग ने न्यायालय की अवमानना कर सितंबर, 2022 में निर्माण फिर से शुरू किया। अदालत ने अक्टूबर में पुरातत्व आयुक्त से रिपोर्ट तलब की है और पूछा है कि उन पर अदालत की अवमानना का आरोप क्यों नहीं लगाया जाना चाहिए।

 

हिंदू संघर्ष समिति की राष्ट्रीय संयुक्त सचिव पूनम झा ने कहा, त्रिंकोमाली का शिव को समर्पित थिरुकोनेश्वरम के प्राचीन तीसरी शताब्दी में बने हिंदू मंदिर को तोड़कर बौद्ध विहार बनाने की कोशिश की जा रही है। ये मंदिर ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व रखता है। पहले रावण ने यहां पूजा की। लंका विजय के बाद भगवान राम ने भी यहां पर भगवान शिव की अर्चना की है। उन्होंने कहा कि उत्तर-पूर्व के हिंदू तमिलों का सिंहलीकरण और बौद्धीकरण तब हो रहा है, जब श्रीलंका सबसे खराब आर्थिक संकट से गुजर रहा है।

 

 

 

 

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