द ब्लाट न्यूज़ दिल्ली उच्च न्यायालय ने वर्ष 2011 में डीटीसी बस दुर्घटना में मारे गए एक व्यक्ति के परिवार को 19 लाख रुपये से अधिक के मुआवजे से संबंधित मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
उच्च न्यायालय ने कहा कि एक सार्वजनिक परिवहन उपक्रम से अप्रशिक्षित, अक्षम और बिना लाइसेंस वाले चालकों को जनता की सेवा में लगाए जाने की उम्मीद नहीं की जाती है। न्यायमूर्ति गौरांग कंठ की पीठ ने कहा कि बस चालक के पास ‘फर्जी‘ ड्राइविंग लाइसेंस था। वह लापरवाही से वाहन चला रहा था। यहां तक कि दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) उसे नियुक्त करते समय पूरी तरह से जांच पड़ताल करने के अपने कर्तव्य को निभाने में विफल रहा।
पीठ ने कहा कि तेज गति से और लापरवाही से डीटीसी बसों को चलाने के मामलों में कई लोग हताहत हुए हैं। एक सार्वजनिक नियोक्ता को अपने संभावित कर्मचारियों के पृष्ठभूमि की जांच करनी चाहिए और रोजगार की पेशकश करने से पहले चयनित उम्मीदवारों को विशेष प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता डीटीसी जैसे एक सार्वजनिक नियोक्ता से यह उम्मीद की जाती है कि वह रोजगार के लिए आवेदन करने वाले व्यक्ति द्वारा प्रस्तुत दस्तावेजों के सत्यापन को लेकर उचित सावधानी बरतेगा।
अदालत ने यह आदेश डीटीसी द्वारा एक मोटर दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण के उस आदेश के खिलाफ अपील पर दिया है, जिसमें 26 वर्षीय मृतक की पत्नी, पिता और नाबालिग बेटे को मुआवजे के रूप में 19 लाख रुपये से अधिक की राशि देने का निर्देश दिया गया था। अपील को खारिज करते हुए, पीठ ने कहा कि चूंकि डीटीसी ने चालक के कौशल को साबित करने के लिए कोई सबूत नहीं दिया और ड्राइविंग लाइसेंस की वास्तविकता के बारे में कोई आवश्यक दस्तावेज देने में भी विफल रहा, इसलिए वह अपने दायित्व से खुद को मुक्त नहीं कर सकता।