हर छह महीने में जम्मू-कश्मीर की राजधानी बदल जाती रही है. श्रीनगर को ग्रीष्मकालीन जबकि जम्मू को शीतकालीन राजधानी बनाया गया है. इस दौरान एक जगह से दूसरी जगह जो राजधानी जाती है, उसे दरबार परिवर्तन कहते हैं. सरकार ने 149 साल पुरानी इस परंपरा को बंद कर दिया है. जम्मू-कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती को इसे बंद करना बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगा है. पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) की अध्यक्ष महबूबा मुफ्ती ने इसे असंवेदनशील निर्णय करार दिया. उन्होंने कहा है कि दरबार परिवर्तन के सामाजिक एवं आर्थिक फायदे उस पर आने वाले खर्च से कहीं अधिक हैं. दरअसल इसमें कर्मचारियों को गर्मी में श्रीनगर और सर्दी में जम्मू जाना पड़ता है. दोनों जगह सरकार आवास उपलब्ध कराता है. इस प्रथा पर करीब 200 करोड़ रुपये का अतिरिक्त खर्च है. सरकार इस खर्च से बचने के लिए इस प्रथा को बंद करने का फैसला लिया है.
प्रथा रोके जाने वाले को जम्मू-कश्मीर की चिंता नहीं
महबूबा ने ट्वीट किया, दरबार परिवर्तन बंद करने का भारत सरकार का हाल का निर्णय छोटे विषयों में अतिसावधानी एवं बड़े विषयों में लापरवाही जैसा है. गर्मियों एवं सर्दियों में कार्यालय को इधर-उधर करने के सामाजिक एवं आर्थिक फायदे कहीं ज्यादा है. उन्होंने कहा, इससे स्पष्ट है कि ऐसे असंवेदनशील फैसले उन लोगों ने लिए हैं जिन्हें जम्मू कश्मीर के कल्याण की चिंता नहीं है. जम्मू कश्मीर प्रशासन ने पिछले महीने घोषण की थी कि उसने ई-कार्यालय को पूरी तरह अपना लिया है और साल में दो बार होने वाले दरबार परिवर्तन पर पूर्ण विराम लगा दिया गया है. दरबार परिवर्तन के तहत प्रशासन छह महीने जम्मू से और छह महीने श्रीनगर से चलता है और यह प्रथा 1872 में महाराजा गुलाब सिंह ने इन दोनों क्षेत्रों की अतिप्रतिकूल मौसम से बचने के लिए शुरू की थी.
GOIs recent decision to stop Darbar move is penny wise & pound foolish. Its economic & social benefits outnumber expenses incurred for moving the capital during summer & winter. Quite obvious that such insensitive decisions are taken by those who least care for J&K’s welfare.
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) July 3, 2021
149 साल पुरानी परंपरा है दरबार परिवर्तन
दरबार प्रथा की शुरुआत महाराजा गुलाब सिंह ने 1872 में की थी. परंपरा को 1947 के बाद से जम्मू-कश्मीर के राजनीतिक वर्ग ने जारी रखा था. उनका मानना था कि ये प्रथा कश्मीर और जम्मू के अलग भाषा और सांस्कृतिक वाले इलाकों में बातचीत के लिए पुल का काम करती है. पूर्व मुख्य सचिव बी.वी.आर सुब्रह्मण्यम ने 31 मार्च को कहा था कि सरकार ने विभागों में ई-ऑफिस शुरू करके कागज रहित ऑफिस में स्विच करने के लिए ठोस कदम उठाए हैं. 2020 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति रजनीश ओसवाल ने परंपरा को बंद करने का सुझाव देते हुए कहा था यह राजकोष पर बोझ है.
दरबार परिवर्तन बंद करने से 200 करोड़ का फायदा
सरकार का कहना है कि इस परंपरा को बंद करने से राज्य सरकार को हर साल 200 करोड़ रुपए का फायदा होगा. परंपरा खत्म करने के बाद 10 हजार कर्मचारियों को सरकार की तरफ से मिले जम्मू या कश्मीर में से किसी एक घर को खाली करना होगा. ये कर्मचारी अब एक जगह पर रहकर कई कामों को ऑनलाइन करेंगे. संपदा विभाग के आयुक्त सचिव एम राजू ने बताया कि 21 दिनों के अंदर किसी एक जगह के सरकारी घर को खाली करना होगा.