-अशोक भाटिया-
कोरोना की महामारी ने कई लोगों की जिंदगी निगल ली और तो और कई लोगों को अकेला कर दिया। कुछ इसी तरह का कोरोना का शिकार मुंबई अंधेरी के चांदिवली इलाके में रहने वाला परिवार भी हुआ. रेशमा तेन्त्रिल का हस्ता गाता परिवार चांदिवली के तुलिपिया सोयायटी में अपने पति शरद और 7 साल के बेटे गरुण और सास ससुर के साथ रहता था। कोरोना की चपेट में आने के बाद इसी साल के अप्रैल महीने में उनकी सास और ससुर की मौत हो गई. इसी बीच उनके पति शरद को भी कोरोना का संक्रमण हुआ और लंबे इलाज के दौरान 23 मई को उन्होंने भी दम तोड़ दिया। इस पूरी घटना के चलते रेशमा और उनका बेटा गरुण घर में अकेले पड़ गए थे। 21 जून को करीब ढाई बजे रात के करीब रेशमा ने अपने बेटे गरुण के साथ 12वीं मंजिल से कूदकर आत्महत्या कर ली। पुलिस के अनुसार उनके घर से एक सुसाइड नोट मिला, जिसमें उन्होंने बताया कि उनकी बिल्डिंग के 11वीं मंजिल पर रहने वाला उनको परेशान करता था. उनका कहना था कि रेशमा का लड़का खेलता है तो नीचे डिस्टर्बेंस होती है और इसी वजह से वो लोग इनकी बार बार शिकायत करते थे. इस वजह से परेशान होकर मैं आत्महत्या कर रही हूं।
कितना खतरनाक है किसी महिला का इसलिए सुसाइड करना क्योंकि उसे कोई पड़ोसी परेशान कर रहा था. वो भी उसके 7 साल के उस बच्चे के लिए जिसने अभी-अभी अपने पिता को कोरोना की वजह से खोया था. यह घटना इस समय के लोगों की सोच को उजागर करती है।इस कोरोना काल में जब लोगों को एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए, साथ देना चाहिए, इंसानियत दिखानी चाहिए तो भी लोग एक-दूसरे को परेशान कर रहे हैं. शिकायत कर रहे हैं, ताना मार रहे हैं, क्या सच में उनका जमीर एकदम मर चुका है. यह तो सिर्फ एक दिल को दहला देने वाली घटना है।सोचिए ऐसे कितने लोग होंगे जो किसी प्रताड़ना की वजह से इस हद तक तंग आ जाते हैं कि उनको मौत को गले लगाना पड़ता है. किसी को भी सुसाइड नहीं करना चाहिए भले हालात कैसे भी क्यों ना हो, लेकिन इस महिला की कहानी कलेजा चीर कर रख देती है।
एक हंसता-खेलता परिवार जिसमें बड़ों का आशीर्वाद था. एक पति का प्यार था और एक छोटे से बच्चे का दुलार था। अच्छी नौकरी, घर सब था. इस परिवार को क्या पता था कि इनके हंसती दुनिया को कोरोना की नजर लग जाएगी। पहले सास-ससुर कोरोना पॉजिटिव हुए और दुनिया छोड़ चले। उनकी सेवा करने में लगा उनका बेटा यानी महिला के पति भी कोरोना पॉजिटिव हो गए और कुछ ही दिनों में उनकी मौत हो गई। अब घर में सिर्फ महिला बची और उसका 7 साल का एक बेटा।कुदरत के कहर ने भले ही इस महिला और बच्चे की जिंदगी बक्श दी, लेकिन इनकी असली परीक्षी होनी जैसी बाकी थी। दरअसल, कोरोना की महामारी ने कई लोगों की जिंदगी छीन ली तो कई लोगों को अकेला कर दिया , उस समय उनकी मानसिक हालात क्या रही होगी आप अंदाजा लगा सकते हैं. जिस समय उन्हें लोगों के सपोर्ट और साथ की जरूरत थी वे अकेले पड़ गए थे. उस समय उनका पड़ोसी अयूब खान उन्हें परेशान करता था।
कोरोना काल ने लोगों के मानसिक स्वास्थय को हिलाकर रख दिया है. रेशमा खुद अपने पति के अंतिम संस्कार में शामिल ना होने से परेशान थीं, उनके इस तरह दूर चले जाने से वे डिप्रेशन में थी उपर से 7 साल का बच्चे ने अचानक अपने दादा-दादी और पापा को खोया था। ऐसे समय में 11वीं फ्लोर पर रहे वाला पड़ोसी हमेशा रेशमा की शिकायत कभी सोसाइटी तो कभी पुलिस में करता रहता। उसे बच्चे के खेलने से प्रॉब्लम थी। माना जात है कि एक पड़ोसी ही दूसरे पड़ोसी के काम आता है लेकिन यहां तो उसके तानों से तंग आकर दुनिया मेंं जीने से बेहतर मरना समझा।
रेशमा के घर में मिले सुसाइड नोट के अनुसार, बिल्डिंग में 11वीं मंजिल पर रहने वाला पड़ोसी परेशान करता था।वह कहता था कि जब लड़का खेलता है तो नीचे डिस्टर्बेंस होती है और इसी वजह से वे लोग बार-बार शिकायत करते थे. इससे परेशान होकर मैं आत्महत्या कर रही हूं। रेशमा ने यह भी लिखा कि उनका पड़ोसी उनकी शिकायत पुलिस में और सोसाइटी को भी करता था। सोसायटी ने रेशमा और शिकायतकर्ता अयूब खान को यह मामला आपस में सुलझाने को कहा था।अब भले ही पड़ोसी की गिरफ्तारी हो जाए या जेल हो जाए लेकिन जो गुजर गए उनको कैसे कोई वापस लाएगा। उस मासूम की क्या गलती थी. एक मां को किस हद मजबूर किया गया कि उसने अपने बच्चे के साथ बिल्डिंग से कूदकर जान दी। क्या कहा होगा उसने अपने छोटे से बच्चे से, शायह यह कि यहां से कूदने से पापा के पास पहुंच जाएंगे या फिर वह नींद में ही होगा जो हमेशा के लिए सो गया। कोरोना महामारी में एक-दूसरे का साथ दीजिए। अक्सर एक पड़ोसी दूसरे को देखकर जलता है। क्या भरोसा कब किसे सहायता की जरूरत पड़ जाए। आज उसके दुख में हंसने वाले याद रखना कल तेरा नंबर भी आ सकता है। महिलाओं को ताना मारना बंद कीजिए, पता नहीं वो किस दर्द से गुजर रही हैं। आज के समय में ऐसे ही लोगों की लाइफ में हजार दर्द हैं, आप इस दर्द का मरहम नहीं बन सकते तो ठीक है, लेकिन कम से कम उनके दर्द को नासूर तो मत बनाइए।
ऐसे मामलों में जहाँ सब कुछ लूट गया हो। घर में कमाने वाला कोई न बचा हो , असुरक्श्ता का डर हो वहां जब तक सरकार की सहायता पहुचें समाज व पड़ोसियों को सहायता करनी चाहिए। परपर सहकारी संस्था का कर्तव्य केवल सदस्यों से मेंटेनेंस लेकर संस्था चलाना ही नहीं उनके दुःख सुख में भी शामिल होना है वो भी खासकर इस लाकडाउन व कोरोना काल में। यह तो सिर्फ एक महिला की बात हो गई. ऐसी तमाम पत्नियों, बेटियों, बहनों, प्रेमिकाओं की कहानियां अनसुनी हैं. जिन्होंने अपनों का जीवन बचाने के लिए कोविड के दौरान जान लड़ा दी।