वाराणसी में सीएनजी नावों के संचालन से प्रदूषण में कमी, नाविकों की आय में वृद्धि

 

द ब्लाट न्यूज़ । उत्तर प्रदेश के वाराणसी में गंगा नदी में 500 सीएनजी नौकाओं से न केवल नदी के जल और वायु प्रदूषण में कमी आई है, बल्कि घाटों पर आगंतुकों को घुमाने वाले नाविकों की आय में भी वृद्धि हुई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी में सात जुलाई को अन्य परियोजनाओं के साथ ही सीएनजी से चलने वाली 500 नाव भी राष्ट्र को समर्पित की थीं।

गेल (गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड) के उप-महाप्रबंधक एनके द्विवेदी ने कहा कि गेल ने अपनी सामाजिक दायित्‍व पहल के अंतर्गत वाराणसी नगर निगम के सहयोग से पेट्रोल और डीजल से संचालित होने वाली नावों का रूपांतरण कर उन्हें सीएनजी से संचालन के लिए सक्षम बनाया है। उन्होंने कहा कि नावों के सीएनजी रूपांतरण से न केवल प्रदूषण कम हो रहा है, बल्कि ईंधन पर होने वाली बचत से नाविकों की आर्थिक स्थिति भी बेहतर हुई है।

द्विवेदी ने कहा कि अब तक 522 नावों को सीएनजी में बदला गया है और पर्यावरण संरक्षण में मदद के लिए स्वच्छ ईंधन से अधिक नौकाएं चलाने के लिए रूपांतरण का काम तेज गति से चल रहा है।

वाराणसी नगर निगम में कुल 657 नाव पंजीकृत हैं।

द्विवेदी ने बताया कि अब स्थानीय नाविक प्रतिदिन फिलिंग स्टेशन से 600 से 700 किलोग्राम सीएनजी की खपत कर रहे हैं।

वाराणसी के खिड़किया घाट पर दुनिया का पहला तैरता सीएनजी स्टेशन चालू हो गया है, जिसे पिछले साल दिसंबर से यहां ‘नमो घाट’ के नाम से भी जाना जाता है।

नई पहल के कारण जीवन में क्या बदलाव आया है, इस बारे में नाविक रोहित साहनी ने कहा, ‘पहले मैं हाथ से चलने वाली नाव चलाता था जो कि अधिक मेहनत और कम आय वाली होती थीं। आज हमारे पास दो नाव हैं और दोनों सीएनजी इंजन से लैस हैं।’

यह दावा करते हुए कि अब उनकी आय लगभग दोगुनी हो गई है, साहनी ने कहा कि सरकार के प्रयासों से पर्यटकों की संख्या में वृद्धि हुई है और वह अब सीएनजी से चलने वाली नावों के माध्यम से अधिक पर्यटकों को ले जाने में सक्षम हैं, जिससे आय में काफी वृद्धि हुई है।

वहीं, एक अन्य नाविक राजकुमार साहनी की भी ऐसी ही राय है। उन्होंने कहा, ‘पहले डीजल इंजन से चलने वाली नाव से बहुत अधिक धुआं निकलता था जिसकी शिकायत पर्यटक अक्सर किया करते थे। अब सीएनजी इंजन वाली नावों से होने वाला प्रदूषण कम हो गया है और ईंधन की लागत भी लगभग आधी हो गई है जिससे बचत बढ़ी है।’

इस संबंध में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के पूर्व प्रोफेसर और पर्यावरणविद बीडी त्रिपाठी ने कहा कि पहले गंगा में डीजल इंजन की जो नाव चलती थीं उनसे बहुत ज्यादा वायु और जल प्रदूषण होता था।

प्रोफेसर त्रिपाठी ने कहा, ”नाविक अपनी नावों में पुराने जनरेटर के इंजन का प्रयोग करते थे, जिसमें प्रयोग किया गया डीजल पूरी तरह जलता नहीं था और पानी को प्रदूषित करता था, जिससे जलीय जीवों को बहुत नुकसान पहुंच रहा था।”

उन्होंने कहा कि डीजल के पुराने इंजन से निकलने वाले धुएं में नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर और कार्बन जैसे जहरीले पदार्थ निकलते थे जो पर्यटकों की आंखों में जलन उत्पन्न करता था, जबकि अब नावों में नए सीएनजी इंजन लगाए जा रहे हैं जिससे ‘‘न के बराबर’’ नुकसान होता है।

वाराणसी स्मार्ट सिटी के परियोजना प्रबंधक सुमन कुमार राय ने कहा कि सीएनजी से चलने वाली नाव पर्यावरण के अनुकूल हैं और लगभग 50 प्रतिशत किफायती हैं।

राय ने कहा, ‘‘डीजल या पेट्रोल इंजन वाली छोटी/बड़ी नाव में सीएनजी इंजन लगाने में लगभग दो से ढाई लाख रुपये का खर्च आता है। दुनिया का पहला तैरता हुआ सीएनजी फिलिंग स्टेशन नमो (खिड़किया) घाट पर एक वाटर जेटी पर बनाया गया है।”

उन्होंने कहा कि इसकी विशेषता यह है कि यह बाढ़ और तेज धाराओं में भी जल स्तर के साथ तालमेल बिठाते हुए तैरता रहेगा।

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