सीएम भूपेश और टीएस सिंहदेव के बीच बढ़ी दूरिया, पढ़े पूरी खबर

छत्तीसगढ़ की सियासत में जय-वीरू की जोड़ी के नाम से चर्चित सीएम भूपेश और टीएस सिंहदेव के बीच अब दूरिया बढ़ गई है। ढाई-ढाई के मुख्यमंत्री का मामला और उसके बाद पंचायत विभाग से इस्तीफे ने कांग्रेस की अंदरूनी कलह को सड़क पर ला दिया। सत्ता, सिंहासन और सियासत का यह द्वंद्व अभी सुर्खियों में है। विधानसभा से लेकर चौक-चौराहों तक चर्चाएं हो रही है। मुख्य विपक्षी पार्टी भाजपा संवैधानिक संकट का हवाला देते अविश्वास प्रस्ताव ला रही है। कांग्रेस सब कुछ ठीक होने का दावा करती है, लेकिन रायपुर से लेकर देश की राजधानी दिल्ली तक छत्तीसगढ़ की लड़ाई का मामला पहुंच गया है। बदले राजनीतिक घटनाक्रम से जय-वीरू की जोड़ी के बीच दरार भी बढ़ती जा रही है।

बता दें कि छत्तीसगढ़ के पंचायत एवं स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने‌ 16 जुलाई को पंचायत मंत्री के पद से इस्तीफा देने के साथ यह कहते हुए खलबली मचा दी है कि उनके धैर्य की परीक्षा ली जा रही है। सिंहदेव के इस्तीफे के बाद मचा घमासान लगातार जारी है। इस बीच मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग मंत्री रविंद्र चौबे के हवाले कर दिया है, लेकिन सियासत में चर्चाओं का दौर अब भी जारी है। छत्तीसगढ़ के इस सियासी हालात की गूंज दिल्ली दरबार तक पहुंच गई है। पार्टी पदाधिकारी हाईकमान की तरफ से अनुशासनात्मक कार्रवाई पर निर्णय होने की बात कह रहे हैं, लेकिन जिस तरह के हालात छत्तीसगढ़ कांग्रेस में है। उसे देखते हुए यही लगता है कि आने वाले समय में दिल्ली में शक्ति प्रदर्शन से इनकार नहीं किया जा सकता।

भविष्य में कांग्रेस पार्टी की छवि पर पड़ेगा प्रभाव
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि छत्तीसगढ़ में ढाई-ढाई साल का विवाद, मंत्री का इस्तीफा और सत्ता में टकराव का असर कांग्रेस पार्टी पर पड़ेगा। कांग्रेस के भीतर मचा घमासान सार्वजनिक हो गया है। इस तरह की परिस्थितियां किसी भी राजनीतिक दल के लिए अच्छी नहीं होती। अब तो ढाई-ढाई साल वाली बात भी नहीं है, फिर भी सत्ता में खींचतान जारी है। सिंहदेव के पास अभी लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण, चिकित्सा शिक्षा, बीस सूत्रीय क्रियान्वयन, वाणिज्यिक कर (जीएसटी) का प्रभार है। सिंहदेव अपने प्रभार वाले बाकी विभागों में कैबिनेट मंत्री बने रहेंगे या उसे भी छोड़ देंगे यह बड़ा सवाल है। एक साल बाद छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होना है। ऐसे में इस तरह के घटनाक्रम से कांग्रेस की सेहत पर अच्छा प्रभाव नहीं पड़ेगा।

सीएम भूपेश ने पूछा था कालिया और सांभा कौन?
फरवरी 2019 के मैनपाट महोत्सव में टीएस सिंहदेव और सीएम भूपेश बघेल शामिल हुए थे। इस दौरान सीएम भूपेश बघेल ने कहा था कि महाराज साहब लक्ष्य तय करते हैं और हम सब उसे पूरा करते हैं। सिंहदेव ने कहा था कि हम सभी साथ हैं। यह तो जय-वीरू की जोड़ी वाली बात है। 2021 के मॉनसून सत्र के दौरान भी जय-वीरू की जोड़ी को लेकर सदन में ठहाके लगे थे। विपक्षी सदस्यों ने चुटकी भरे अंदाज में कहा कि जय-वीरू की जोड़ी। इस पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी त्वरित जवाब देते हुए कहा था कि जय-वीरू की जोड़ी तो ठीक है, लेकिन पहले ये बताइये कि कालिया और सांभा कौन है? दरअसल, यह हंसी-ठिठोली कांग्रेस विधायक बृहस्पत सिंह प्रकरण खत्म होने के बाद छत्तीसगढ़ विधानसभा में देखने को मिला था।

टीएस व भूपेश के बीच आखिर क्यों बढ़ती गई दूरियां
सरकार के ढाई साल पूरा होने के बाद जैसे ही मुख्यमंत्री बदलने की आंधी चली टीएस सिंहदेव खेमा को कमजोर करने की कोशिश शुरू हो गई। सिंहदेव समर्थक विधायक भी पाला बदलने लगे। टीएस सिंहदेव की अनुशंसाओं की फाइलें डंप की जाती रहीं। मंत्री के विभाग में दखल और सचिवों की कमेटियों का निर्णय जाहिर सी बात है किसी मंत्री के लिए यह सहज स्थिति नहीं है। इसे लेकर टीएस सिंहदेव लंबे समय से सरकार से खफा हैं। सरगुजा संभाग में टीएस समर्थकों पर पुलिस व प्रशासन द्वारा टार्गेटेड कार्रवाई और सिंहदेव के प्रशासनिक प्रोटोकॉल तक का पालन नहीं करने से उनकी नाराजगी और बढ़ी। प्रदेश स्तरीय दौरे के दौरान उन्हें हेलीकॉप्टर तक उपलब्ध नहीं कराया गया। दंतेवाड़ा-बस्तर में अफसर उनसे मिलने तक नहीं आए। लगातार उपेक्षा पर वह हमेशा कहते रहे हाईकमान निर्णय लेगा। सिंहदेव की इससे बेहतर स्थिति भाजपा के डॉ. रमन सिंह सरकार में थी, जब वे नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में थे।

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