द ब्लाट न्यूज़ । उच्चतम न्यायालय ने रिश्वत के एक मामले में जमानत याचिका पर सुनवायी के दौरान कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एच पी संदेश की ओर से जारी निर्देशों पर सोमवार को रोक लगा दी।
इन निर्देशों में राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) द्वारा दायर क्लोजर रिपोर्ट और एडीजीपी सहित अधिकारियों के सेवा रिकॉर्ड मांगना शामिल है।
प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति कृष्ण मुरारी और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने एक आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जमानत अर्जी के दायरे से बाहर कुछ ”अप्रासंगिक टिप्पणियां” कीं।
शीर्ष अदालत ने, हालांकि टिप्पणियों को हटाने और मामले को उच्च न्यायालय में किसी अन्य पीठ को स्थानांतरित करने से यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उसे ‘‘पक्षों को संतुलित करना’’ है।
पीठ ने कहा, ‘‘कर्नाटक उच्च न्यायालय के समक्ष उस कार्यवाही पर रोक लगायी जाती है, जो आरोपियों की जमानत अर्जी से संबंधित नहीं है। हम उच्च न्यायालय से आरोपी की जमानत याचिका पर विचार करने का अनुरोध करते हैं। इसे तीन सप्ताह के बाद सूचीबद्ध करें।’’
राज्य सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने एक आरोपी की नियमित जमानत अर्जी पर विचार करते हुए प्रतिकूल मौखिक टिप्पणी करने के अलावा एसीबी द्वारा 2016 से जांच किए गए अभियोजन/मामलों को बंद करने की रिपोर्ट और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (एडीजीपी) के गोपनीय सेवा रिकॉर्ड मांगने सहित अन्य निर्देश जारी किए थे।
शीर्ष अदालत उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति संदेश की प्रतिकूल टिप्पणी के खिलाफ कर्नाटक सरकार, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो के एडीजीपी सीमांत कुमार सिंह और जेल में बंद अधिकारी जे मंजूनाथ द्वारा दायर तीन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी।
उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने मौखिक रूप से एसीबी को “वसूली केंद्र” और सिंह को “दागी अधिकारी” कहा था।
न्यायमूर्ति संदेश ने महेश नाम के एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अपनी प्रतिकूल टिप्पणी के बाद अपने आदेश में स्थानांतरण की धमकी मिलने का भी दावा किया था और मामले में सुनवाई का दायरा बढ़ा दिया था।
एसीबी के एडीजीपी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने प्रतिकूल टिप्पणी को हटाने का अनुरोध किया।
जेल में बंद अधिकारी जे मंजूनाथ की ओर से पेश एक अन्य वरिष्ठ वकील एस नागमुथु ने आग्रह किया कि मामला किसी अन्य पीठ को सौंप दिया जाए।
प्रधान न्यायाधीश ने याचिकाओं पर नोटिस जारी करने का आदेश देते हुए कहा, ‘‘क्षमा करें, हमें पक्षों को संतुलित करना होगा। हमें किसी एक पक्ष का पक्ष लेते हुए नहीं दिख सकते।’’
हाल ही में, रिश्वत मामले में गिरफ्तार तत्कालीन बेंगलुरु शहर उपायुक्त मंजूनाथ ने न्यायमूर्ति संदेश द्वारा एक अन्य आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान “अनुचित टिप्पणी” किये जाने के बाद मीडिया ट्रायल का आरोप लगाते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था।
राज्य सरकार और एसीबी प्रमुख ने पहले उच्च न्यायालय के आदेश और टिप्पणियों के खिलाफ अलग-अलग याचिकाएं दायर की थीं।
शीर्ष अदालत ने 12 जुलाई को न्यायमूर्ति संदेश से मामले की सुनवाई तीन दिन के लिए टालने का अनुरोध किया था।
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक सिंह ने अपनी अलग याचिका में न्यायमूर्ति संदेश की प्रतिकूल टिप्पणी को हटाने और उच्च न्यायालय में कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी।
राज्य एसीबी की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने शीर्ष अदालत को बताया कि 2016 से एसीबी द्वारा जांचे गए अभियोजन/मामलों को बंद करने और एडीजीपी के गोपनीय सेवा रिकॉर्ड को तलब करने से संबंधित टिप्पणियां और निर्देश एक आरोपी की नियमित जमानत याचिका पर विचार करते हुए पारित किया गया है।
यह सब तब शुरू हुआ था जब एडीजीपी को 30 मई को उप तहसीलदार महेश पी एस की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संदेश के सामने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होने के लिए कहा गया था, जो शहर उपायुक्त (डीसी) कार्यालय में कार्यरत थे और एसीबी की छापेमारी के बाद उनके खिलाफ रिश्वत मामला शुरू हुआ था।
उच्च न्यायालय ने सवाल किया था कि तत्कालीन उपायुक्त मंजूनाथ को मामले में आरोपी क्यों नहीं बनाया गया, जिसके बाद अदालत से वादा किया गया कि उन्हें मामले में पक्षकार बनाया जाएगा।
उनतीस जून को मामले की अगली सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति संदेश ने यह गौर करने के बाद कि उपायुक्त को अभी तक पक्षकार नहीं बनाया गया है, एसीबी और एडीजीपी के खिलाफ टिप्पणी की।
चार जुलाई को, सिंह फिर से अदालत में पेश हुए जिस दौरान न्यायाधीश ने कहा कि एसीबी के खिलाफ उनकी इस टिप्पणी के बाद उन्हें स्थानांतरण की धमकी दी गई कि यह एक “वसूली केंद्र” बन गया है। उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें इस तरह की धमकियों की कोई परवाह नहीं है।