कोरोना वैक्सीन संजीवनी कैसे बनी…

-सिद्धार्थ शंकर-

द ब्लाट न्यूज़ | कोरोना महामारी से बचाव के लिए बनाई गई वैक्सीन भारत के साथ-साथ अन्य देशों के लिए संजीवनी साबित हुई है। इस वैक्सीन ने भारत में जहां 42 लाख से अधिक लोगों की जान बचाई है वहीं पूरी दुनिया में दो करोड़ से अधिक लोगों को मौत के मुंह में जाने से रोका है। लांसेट जर्नल के दिसंबर 2020 से दिसंबर 2021 तक के आंकड़ों में यह बात सामने आई है। शोधकर्ताओं ने कहा कि दुनिया में कोरोना से 3.14 करोड़ मौतों का अनुमान लगाया गया था लेकिन टीकाकरण की वजह 1.98 करोड़ की जान बचाई गई। अध्ययन का अनुमान है कि अगर विश्व स्वास्थ्य संगठन के 2021 के अंत तक दो या अधिक खुराक के साथ प्रत्येक देश में 40 प्रतिशत आबादी का टीकाकरण करने का लक्ष्य पूरा किया गया होता तो और 5 लाख 99 हजार 300 लोगों की जान बचाई जा सकती थी। अध्ययन के प्रमुख लेखक ओलिवर वाटसन ने कहा कि भारत के लिए, हमारा अनुमान है कि इस अवधि में टीकाकरण से 42 लाख से अधिक मौतों को रोका गया। भारत में कोरोना महामारी के दौरान 51 लाख से अधिक लोगों की मौत का अनुमान लगाया गया था लेकिन कोरोना टीकाकरण की वजह से लाखों लोगों की जान बचाई गईं। कोरोना के प्रति भारतीयों की सावधानी और समय पर वैक्सीन लेना ही रामबाण बना है। भारत महामारी की शुरुआत में पूरी दुनिया की नजरों में था और भयावहता का अंदाजा सभी लगा रहे थे, मगर जिस खूबी से भारत ने महामारी को पस्त किया, वह दूसरों के लिए मिसाल बन गया। आधुनिक चिकित्सा पद्धति का दावा करने वाले अमेरिका और अन्य यूरोपीय देश जब पस्त हो गए तब भारत ने अपने कौशल से महामारी को हराया। कोरोना को हराने में वैक्सीन को नजरअंदाज करना गलती होगी। सरकार के सख्त फैसले भी जीत में बड़ी भूमिका रखते हैं। फैसलों को लागू करने में कोरोना वॉरियर्स का भी रोल अहम है। भारतीयों की नियमों को मानने में दिखाई गई तत्परता भी कम नहीं आंकी जा सकती। इन सब में टीकाकरण अभियान निश्चित ही एक बड़ा और महत्वपूर्ण कदम है। महामारी की भयावहता और दुनियाभर में इसके कहर से इतना तो साफ हो गया था कि जब तक टीका नहीं आ जाता, तब तक बचाव संबंधी उपाय ही जीवन को बचाने में मददगार साबित हो सकते हैं। लॉकडाउन जैसे कदम भी इसीलिए उठाए गए थे, ताकि लोग घरों से न निकलें और संक्रमण का प्रसार न हो। इसलिए टीके को लेकर लंबे समय से इंतजार था। अमेरिका और यूरोप के ज्यादातर देशों की तस्वीर तो डराने वाली रही। भारत में भी संक्रमण से हुई मौतों का आंकड़ा डेढ़ लाख को पार कर चुका है। ऐसे में बिना किसी कारगर टीके के संभव ही नहीं था कि महामारी को शिकस्त दी जा सके। भारत की आबादी को देखते हुए टीकाकरण का काम चुनौती भरा रहा। सबको जल्द ही एक साथ टीका लगा पाना किसी भी सूरत में संभव नहीं था। इसलिए इसके लिए प्राथमिकता तय की गई। टीके के लिए शोध, परीक्षण से लेकर इसके निर्माण और देश में जगह-जगह पहुंचाने का काम भी कोई मामूली नहीं था। तैयार टीकों को सुरक्षित रूप से हर राज्य में भेजने के लिए वायुसेना की सेवाएं ली गईं। टीकाकरण के काम में कहीं कोई चूक न रह जाए, इसके लिए देश भर में कई बार पूर्वाभ्यास किए गए। भारत के वैज्ञानिकों, डॉक्टरों, स्वास्थ्य कर्मियों और इस महाभियान से जुड़े लोगों ने जिस जीवट के साथ काम किया, उसी का परिणाम है कि साल भर के भीतर ही कुछ गिने-चुने देशों के साथ हम भी टीका बनाने से लेकर उसे लगाने में सफल हो पाए हैं। इसे भी बड़ी कम बड़ी उपलब्धि नहीं माना जाना चाहिए कि भारत में बने टीकों का दुनिया के दूसरे देशों में हम निर्यात करने में भी सक्षम हैं। देश में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के टीके कोविशील्ड और भारत बायोटेक के टीके कोवैक्सीन के आपात इस्तेमाल को मंजूरी दी गई। हालांकि टीकों को लेकर कुछ विवाद भी खड़े हुए और इस कारण लोगों में भय और अविश्वास भी पैदा हुआ। लेकिन देश के चिकित्सा विशेषज्ञों और महामारी विशेषज्ञों ने टीके कारगर होने का भरोसा दिलाया। यही भरोसा अंत में भारत को जीत दिलाने में कामयाब रहा।

 

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